तो इस गरमी में पीने का पानी भरपूर मिलेगा और बिजली चैबीस घंटे। शहर-गांव गुलजार होंगे, रातों की नींद हराम नहीें होगी। ऐसा ऐलान किया है बिजली वाले बड़े साहब ने, जो विद्युतशास्त्र के आर्थिकज्ञान वाले घपले-घोटालों के मोटे-मोटे बहीखाते अपनी ठंडी वाली कार में रखे अशोक मार्ग से कालीदास मार्ग के लगातार, बार-बार चक्कर लगाने में मसरूफ़ हैं। इधर सूर्यदेव की भृकुटी दो दिन क्या तनी…. राजधानी में त्राहिमाम… दसियों लाख की आबादी पीने के पानी के लिए हलकान। गलियों से लेकर बहुखण्डी भवनों तक में अंधेरा पसर कर फैल गया। रक्तचाप, मधुमेह के मरीजों से लेकर स्वस्थ्य व नब्बे किलो वजन वाले भी गरमी, मच्छरों के हमलों से बेचैन। बाकी सूबे की आबादी हर साल की तरह इस साल भी भगवान भरोसे है।
नगर विकास महकमा अपने जिम्मे के काम सफाई, अतिक्रमण और विकास में पूरी मुस्तैदी से रामपुर, इटावा, आजमगढ़, मैनपुरी, कन्नौज में जुटा है। बचे हुए समय में अपने मंत्री के तोहफे वापस लाने, उनके बयान लिखने और अखबार के दफ्तरों में पहुंचाने में ब्यस्त है। और मौसम है कि पूरी तरह से बेइमानी पर अमादा। हर चैथे दिन बादल-बरखा-तूफान का तांडव। शहरों में जलभराव से लेकर मच्छरों की जनसंख्या विस्फोट के साथ संक्रामक रोगों की आमद का खतरा। गांवों में खेत-खलिहान बर्बाद, किसान मरने को मजबूर। सरकार आइजीपीएल और फैशन शो में मस्त है। किसानों को मुआवजे के नाम पर इंचीटेप से नापी गई जमीन के हिसाब से हजार-पांच सौ के चेक थमाएं जा रहे हैं, वो भी बैंक से बैरंग लौट रहे हैं। अब उनकी जांच होगी। ऐसे में बर्बाद भूखा किसान फांसी के फंदे पर नहीं झूलेगा? मजा तो इस बात का है कि किसानों की तकलीफें सुनने की जगह उन्हें लाठियों से पीटा तक जा रहा है। नब्बे फीसदी किसान कर्जदार है, सिर्फ अखबारी बयानों के जरिए लगान, बिजली-पानी शुल्क ऋण माफी की बातें की जा रही है।
अस्पतालों में डाक्टर से लेकर आया, चैकीदार तक मरीजों और उनके तीमारदारों से आये दिन मारपीट कर रहे हैं। बीमारों को लूटने-ठगने के अलावा बाकायदा दवाओं, लहू और लाश के कारोबार में लगे डाॅक्टर्स सड़कों पर इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाकर सरकार को ब्लैकमेल करने के साथ अपने को वोटबैंक साबित करने की जिद ठाने है। यही जिद सूबे के वकील साहबान, निजी स्कूलों के संचालक व सरकारी स्कूलों के मास्टर साहब भी ठाने हैं। अकेले राजधानी लखनऊ में आये दिन वकीलों के झगड़े, मारपीट की वारदातें इतने अधिक बढ़ गये हैं कि लखनऊ को दुनिया के मानचित्र पर बार-बार शर्मसार होना पड़ता है। व्यापारी नेता बनवारीलाल कंछल से कचहरी परिसर में की गई मारपीट को लखनऊ की किस रवायत या किस तहजीब से परखा जायेगा? आये दिन होने वाली वकीलों की हड़तालें और उस दौरान कानून के विद्वानों द्वारा कानून का मखौल उड़ाने के साथ हिंसक आचरण करना, कानून की किस किताब के किस पन्ने पर दर्ज है?
गरीब बच्चों के निजी स्कूलों में पढ़ने का हक नहीं है? क्या महज इसलिए कि उनकी गरीबी से अमीर बाप के बेटों को समय से पहले गरीबी से पहचान हो जाएगी या गरीब के बेटे भी अमीरों की औलादों के बराबर हो जाएंगे? इसी आशंका से ग्रस्त निजी स्कूलों के संचालक अदालत में इंसाफ की गुहार लगाने जा रहे है ? मोटी-मोटी तनख्वाह उठाने वाले मास्टर साहबान बच्चों के पढ़ाने से अधिक राजनीति में, कोचिंग क्लास चलाने में या नकल कारोबार में साझीदारी करने में अधिक दिलचस्पी रखते हैं? यह महज आरोप नहीं है वरन् सरकारी स्कूलों के हालात इसके सच्चे गवाह हैं। एक बात और जो इससे भी अधिक कड़वी है, मेरे मित्र व उप्र सरकार के पूर्व मंत्री डाॅ सरजीत सिंह डंग ने ‘अखबार मेले‘ में दिये गये अपने भाषण में कही थी, ‘जो स्वंय नकल करके पास होकर जोड़-तोड़ लगाकर शिक्षक की नौकरी पा गया भला व बच्चों को क्या पढ़ाएगा और कैसी नई पीढ़ी तैयार करेगा‘।
बहरहाल, राजनीति के ‘स्लम एरिया‘ में अपने-अपने छप्परों के नीचे लिखा-पढ़ी करके या यूं कहें कि वोटरों की रजिस्ट्री अपने नाम दर्ज कराके जश्न मनाने के दौर दौरे में 2017 में होने वाले चुनावों का पंचांग और सूबे में आने वाली नई सरकार के वास्तुशास्त्र का अध्ययन जारी है। ऐसे में जो चुप रहेगा वो भीष्म पितामह की संज्ञा से निंदनीय होगा, इसलिए आदमी को और उसके नातेदारों को खबरदार करते रहना राष्ट्रधर्म होगा।
लेखक – राम प्रकाश वर्मा