कर्नाटक सरकार जब टीपू सुलतान का जन्मदिन मना रही है तो तथाकथित हिन्दुत्ववादी इतिहास के इस महानायक की चरित्र हत्या कर रहे हैं। इन मुखौटाधारियों की पोल खुल चुकी है इसीलिए दिल्ली, बिहार में बुरी तरह पराजित होने के बावजूद कोई सबक नहीं ले रहे हैं। लेखक – रणधीर सिंह सुमन
टीपू सुल्तान मैसूर का शासक था। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी को कई बार पराजित किया था और टीपू सुलतान के खिलाफ निज़ाम हैदराबाद व मराठा, अंग्रेजों के साथ शामिल रहते थे। उसके बावजूद टीपू सुलतान हरा पाने में अंग्रेज असमर्थ थे और मजबूर होकर उन्होंने मंगलौर संधि कर ली थी।
टीपू हिंदू होते तो शिवाजी के बराबर दर्जा मिलता
सबसे बड़ी बात यह है कि अन्य तत्कालीन शासक टीपू सुलतान की मदद अंग्रेजों के खिलाफ नहीं कर रहे थे। आज उसी टीपू सुलतान की चरित्र हत्या सम्बन्धी बहुत सारी कहानियां, जो कई वर्षों से नागपुर की इतिहास की प्रयोगशाला में तैयार की जा रही थीं, उनको सोशल मीडिया में काफी पहले से प्रकाशित किया जा रहा था। टीपू सुलतान को कट्टरवादी मुसलमान तथा हिन्दुओं का विरोधी साबित करने के लिए नागपुरी कार्यकर्त्ता तरह-तरह की अफवाहें फैला कर झूठ को सत्य बनाने का काम कर रहे हैं।
टीपू सुल्तान की राम नाम लिखी अंगूठी नीलाम
टीपू सुलतान जब निजाम की गद्दारी के कारण 1799 में श्रीरंगपट्टनम में शहीद हुआ तो उसके हाथ की उँगलियों में पहनी हुई अंगूठी जिसमें राम लिखा हुआ था, एक अंग्रेज जनरल ने निकाल लिया था जिसकी नीलामी अभी कुछ वर्ष पूर्व इंग्लैंड में हुई है लेकिन संघी दुष्प्रचारक आज टीपू सुलतान को हिन्दू विरोधी साबित करने के लिए तरह-तरह की कहानियां फैला रहे हैं। टीपू सुल्तान को भारत में ब्रिटिश शासन से लोहा लेने के लिए जाना जाता है।
टीपू सुल्तान की जयंती बनाने पर खड़ा हुआ विवाद
टीपू की शहादत के बाद अंग्रेज़ श्रीरंगपट्टनम से दो रॉकेट ब्रिटेन के ‘वूलविच संग्रहालय’ की आर्टिलरी गैलरी में प्रदर्शनी के लिए ले गए। सुल्तान ने 1782 में अपने पिता हैदर अली के निधन के बाद मैसूर की कमान संभाली थी और अपने अल्प समय के शासनकाल में ही विकास कार्यों की झड़ी लगा दी थी।
उसने जल भंडारण के लिए कावेरी नदी के उस स्थान पर एक बाँध की नींव रखी, जहाँ आज ‘कृष्णराज सागर बाँध’ मौजूद है। टीपू ने अपने पिता द्वारा शुरू की गई ‘लाल बाग़ परियोजना’ को सफलतापूर्वक पूरा किया।
अँग्रेजों की फौज घबराती थी टीपू सुलतान से !
टीपू निःसन्देह एक कुशल प्रशासक एवं योग्य सेनापति था। उसने ‘आधुनिक कैलेण्डर‘ की शुरुआत की और सिक्का ढुलाई तथा नाप-तोप की नई प्रणाली का प्रयोग किया। उसने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘स्वतन्त्रता का वृक्ष‘ लगवाया।
समय रहते हुए यदि जागरूक लोग नहीं चेते तो निश्चित रूप से इस देश के इतिहास को संघी प्रयोगशाला हिन्दू और मुसलमान के आधार पर विभक्त कर देगी और मुस्लिम शासकों द्वारा किये गए अच्छे कार्यों को वह हिन्दू विरोध में बदल देगी। इसका मुख्य कारण यह है कि संघी प्रयोगशाला के लोगों का चेहरा भारतीय इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी या अंग्रेजों की चापलूसी करने का ही रहा है। इनके पास कोई नायक नहीं है इसलिए भारतीय इतिहास के महानायकों को यह लोग खलनायक की भूमिका में बदल देना चाहते हैं। इसके लिए इतिहास इन्हें माफ़ नहीं करेगा।
कर्नाटक सरकार जब टीपू सुलतान का जन्मदिन मना रही है तो तथाकथित हिन्दुत्ववादी इतिहास के इस महानायक की चरित्र हत्या कर रहे हैं। इन मुखौटाधारियों की पोल खुल चुकी है इसीलिए दिल्ली, बिहार में बुरी तरह पराजित होने के बावजूद कोई सबक नहीं ले रहे हैं। साभार – hastakshep.com