पिछले दिनों गुजरात चुनाव के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शान में गुस्ताखी करते हुए उन्हें ‘नीच आदमी जैसे शब्द से संबोधित किया था। किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के बारे में ऐसी भाषा का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए। खासतौर पर देश के प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति के लिए तो ऐसे शब्द हरगिज़ शोभा नहीं देते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘राजनैतिक कौशल का परिचय देते हुए ‘नीच आदमी शब्द को ‘नीच जाति के शब्द के रूप में परिवर्तित करते हुए गुजरात चुनाव में अपनी डूबती हुई नैया को पार लगा लिया।
अय्यर की यह भाषा कांग्रेस आलाकमान को पसंद नहीं आई और आनन-फानन में उन्हें पार्टी से निष्कासित कर उन्हें उनकी बदज़़ुबानी की सज़ा दी गई। निश्चित रूप से सभी राजनैतिक दलों के आलाकमान को देश के राजनैतिक चरित्र तथा इसकी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए इस प्रकार के अपशब्दों या असंसदीय भाषा बोलने वाले,सरेआम गालियां बकने वाले अथवा किसी व्यक्ति या समुदाय हेतु जान-बूझ कर बदज़ुबानी करने वाले नेताओं के विरुद्ध न केवल संगठनात्मक स्तर पर इसी प्रकार की सख्त कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि समाज में न$फरत फैलाने वाले नेताओं के विरुद्ध तो कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
परंतु ऐसा देखा जा रहा है कि देश में सक्रिय हिंदूवादी संगठनों से जुड़े अनेक नेतागण इस समय पूरे देश में घूम-घूम कर सार्वजनिक रूप से ऐसे बयान दे रहे हैं जोकि न केवल दूसरे समुदाय के लोगों को सामूहिक रूप से आहत करने वाले हैं बल्कि ऐसे वक्तव्यों से भारतीय संविधान का भी मज़ा$क उड़ाया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर धर्मनिरपेक्ष अथवा सेक्यूलर शब्द हमारे देश के संविधान की आत्मा के रूप में दर्ज है।
हमारे देश का पूरा का पूरा स्वरूप,इसकी सामाजिक संरचना,यहां के धार्मिक विश्वास तथा विभिन्नता में एकता का आधार ही भारतीय धर्मनिरपेक्षता है। परंतु भारत सरकार के केंद्रीय रोज़गार एवं कौशल विकास राज्य मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने धर्मनिरपेक्ष शब्द की एक ऐसी नई परिभाषा गढ़ी है जिससे न केवल उनकी बल्कि उनके संस्कारों की सोच का भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
हेगड़े ने अपने राज्य कर्नाट्क में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पहले तो जनता से पूछा कि क्या आपको पता है कि धर्मनिरपेक्ष लोग कौन होते हैं? और यह पूछने के बाद उन्होंने स्वयं ही अपने सवाल का जवाब देते हुए कहा कि-‘धर्मनिरपेक्ष वे होते हैं जिन्हें अपने मां-बाप के $खून का पता नहीं होता। इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता की प्रस्तावना को बदल दिया जाना चाहिए।
अपने गुप्त एजेंडे को भी उजागर करते हुए हेगड़े ने स्पष्ट किया कि मेरा प्रस्ताव है कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता की प्रस्तावना को बदल दिया जाना चाहिए। ब्राह्मण समुदाय से जुड़े एक संगठन की सभा में उन्होंने सा$फतौर पर यह कहा कि हम लोग सत्ता में इसीलिए आए हैं ताकि संविधान को बदल सकें।
ज़रा मंत्री महोदय के इस महाज्ञान की व्या या करिए और सोचिए कि आखिर उन लोगों के लिए किन शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनके माता-पिता के बारे में पता ही नहीं होता। क्या धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द का अर्थ उतने निचले स्तर तक ले जाना भारत सरकार के मंत्री को शोभा देता है? क्या 31 प्रतिशत मत लेकर देश में अपनी सरकार चलाने वाले किसी संगठन अथवा विचारधारा को यह अधिकार है कि वह देश के 69 प्रतिशत लोगों की विचारधारा को यहां तक कि भारतीय संविधान की आत्मा के रूप में प्रयुक्त शब्द को किसी अपशब्द अथवा गाली के साथ जोड़े? यह तो उसी तरह की बात हुई जैसी कि भारतीय जनता पार्टी की एक सांसद व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने दिल्ली में एक चुनावी सभा के दौरान अत्यंत आपत्तिजनक बयान देते हुए यह कहा था कि जो भारतीय जनता पार्टी को वोट देगा वो रामज़ादा है और जो भाजपा के विरुद्ध वोट देगा वह हरामज़ादा है।
भाजपा अथवा सरकार द्वारा तो इस महिला नेत्री के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई परंतु ज़्यादा हंगामा होते देख स्वयं साध्वी ने ही क्षमायाचना मांग मामले को रफा-दफा करने में ही अपनी भलाई समझी। हां साध्वी निरंजन ज्योति की इस बदकलामी का प्रभाव दिल्ली की जनता पर इतना ज़रूर पड़ा कि दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में दिल्लीवासियों ने केवल 3 सीटों पर ही भाजपा को विजय दिलाई जबकि 67 सीटें आप पार्टी को प्राप्त हुईं। इन नतीजों से रामज़ादों व हरामज़ादों जैसे कटु वचन के परिणामों का अंदाज़ा स्वयं लगाया जा सकता है। यही स्थिति मणिशंकर अय्यर के बयान के चलते गुजरात में भी पैदा हुई है।
ज्ञानचंद आहूजा राजस्थान के अलवर जि़ले के एक ऐसे विधायक का नाम है जिसने देश के सर्वप्रतिष्ठित विश्विद्यालय जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के चरित्र से संबंधित अपना ‘शोध प्रस्तुत करते हुए मीडिया के समक्ष कहा था कि-‘जेएनयू में प्रतिदिन शराब की देसी तथा विदेशी दो हज़ार बोतलें,हड्डियों के पचास हज़ार टुकड़े,तीन हज़ार कंडोम,गर्भपात हेतु प्रयुक्त होने वाले पांच सौ इंजेक्शन बीड़ी के चार हज़ार व सिगरेट के दस हज़ार टुकड़े,चिप्स व नमकीन आदि की दो हज़ार थैलियां तथा ड्रग्स पीने हेतु प्रयुक्त होने वाले सौ सिल्वर पेपर बरामद किए जाते हैं।
यही नहीं बल्कि उसने यह भी आरोप लगाया कि यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में युवक- युवतियां नग्र अवस्था में नृत्य करते हैं। इस प्रकार की बदज़ुबानी करने वाले तथा देश के अत्यंत महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान को बदनाम करने वाले एक अशिक्षित भाजपाई विधायक ने एक बार फिर राजस्थान के अलवर में गौतस्करी के आरोप में पकड़े गए तथा जनता द्वारा बुरी तरह से पीटे गए एक व्यक्ति के संबंध में पुन: एक विवादित बयान देते हुए यह कहा है कि-‘ गौकशी तथा गौतस्करी करने वाले लोग मारे जाएंगे। गोया देश में गौरक्षा के नाम पर फैली अराजकता को हवा देने तथा ऐसी घटनाओं को प्रोत्साहित करने जैसा काम भाजपाई विधायक द्वारा किया जा रहा है। परंतु पार्टी इसपर खा़मोश है।
इसी प्रकार तेलांगाना के हैदराबाद स्थित गोशामहल क्षेत्र से भाजपा विधायक टी राजा सिंह लोध नामक एक विधायक तो अपने भाषण में सिवाय हिंसा व घृणा फैलाने के किसी दूसरी भाषा का प्रयोग ही नहीं करता। राजा का पूरा का पूरा भाषण हिंदूवादी विचारधारा रखने वाले अपने समर्थकों को अल्पसं यक समुदाय के विरुद्ध भड़काने तथा न$फरत फैलाने मात्र पर ही आधारित होता है।
वे अक्सर अपने समर्थकों के साथ सड़कों पर हथियारबंद लोगों की भीड़ को भी साथ लेकर चलते हैं। हालांकि गत् दिनों राजा के विरुद्ध हैदराबाद पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए तथा 295 ए के तहत एक मुकद्दमा रजिस्टर्ड भी किया गया है। यह मुकद्दमें दो समुदायों के मध्य नफरत फैलाने,धर्म-जाति क्षेत्र आदि के नाम पर लोगों को भड़काने तथा दूसरे धर्म व धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाने के आरोप में दर्ज किए गए हैं।
परंतु भाजपा आलाकमान की ओर से इस विधायक के विरुद्ध अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसे बदज़ुबान तथा सांप्रदायिकता व नफरत का ज़हर फैलाने वाले नेताओं के विरुद्ध पार्टी आलाकमान द्वारा कार्रवाई न किए जाने के परिणामस्वरूप ही आज ऐसे कई नेताओं में बदज़ुबानी की प्रतिस्पर्धा होती देखी जा रही है। देश की एकता व अखंडता के लिए यह एक बड़ा खतरा है।
निर्मल रानी।