मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान जब वाशिंगटन एयरपोर्ट पर उतरे और सड़कों पर चले तो उन्हें महसूस हुआ कि मध्यप्रदेश की सड़के अमेरिका से बेहतर हैं। ये पूरा का पूरा एक शोध का विषय है मसलन शिवराज ने कहा या कहलवाया गया? पहले की संभावना कम एवं दूसरे की संभावना ज्यादा प्रतीत होती है। क्यों? विगत 15 वर्षों में चली विभिन्न योजनाएं कुछ अच्छी एवं कुछ का मंशानुकूल प्रभाव न आने पर कई बार शिवराज ने सभाओं एवं मीटिंग में अधिकारियों को लताड़ा कभी टांग दूंगा तो कभी घर बिठा दूंगा कहा।
शब्दों का चयन दुखी एवं कुपित होकर ही करे होंगे। ये हम अच्छी तरह से जानते हैं कि सभी नाकारा नहीं हो सकते नहीं तो अभी तक सिस्टम ध्वस्त हो जाता। निःसन्देह कुछ मेहनती ईमानदार अधिकारियों का परिणाम ही मध्यप्रदेश के खाते में आए विभिन्न अवार्ड हैं लेकिन कुछ नाकारा अफसरों की वजह से विधायी पालिका के सदस्यों को नीचा देखना पड़ता है।
आज शासन-प्रशासन में कुछ ऐसा वातावरण सा हो गया है कि सही को कोई सही नहीं कह रहा हैं इसलिए कहा गया ‘‘सचिव वैध मुझ तीन जो जो प्रिय बोले बोले भय आस राज धर्म तनु तीन कर होई वेगिही नास’’कुछ इस तरह की आहट भी हो रही है निःसन्देह माहौल रातों रात नहीं बनता लेकिन बिगड़ते देर भी नहीं लगती।
जिस देश के प्रदेश में सरकारें सड़क बिजली पर गिर जाती है यह निःसन्देह अजब-गजब है। निःसन्देह सड़क तकनीक में हम अमेरिका से 100 से 150 वर्ष पीछे चल रहे हैं। आज भी 2002 दिग्विजय के शासन की सड़कों की ऐसे याद दिलाई जाती है जैसे एक मां अपने बच्चे को ऐसे डराती है एक फिल्मी डाॅयलाग था ‘‘सो जा बैठा नहीं तो गब्बर आ जाएगा।’’ प्रश्न ये नहीं कि उनने क्या किया? उनसे अपनी तुलना क्यों? आंकलन जनता को ही करने दे, क्योंकि जनता ही निर्णायक होती है पार्टियां नहीं। प्रश्न कि हमने क्या किया? इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे।
जिस सड़क मुद्दे पर कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई समय-समय अपनी गलती भी मानती रही है आज फिर हम उसी मोड़ (सड़क) पर आ खड़े हो गए हैं कहने को सड़क निर्माण एजेन्सी निगम, पी.डब्लु.डी. एवं सी.पी.ए. है लेकिन उनकी स्थिति भी अपनी-अपनी. ढपली अपना-अपना राग तीनों के बीच कोई भी किसी भी प्रकार का तालमेल नहीं है एक बनवाता है तो दूसरा उखड़वा/खोदने में जुट जाता है।
यहां जरूरत है तो कड़े कदम उठाने की मसलन अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों की जवाबदेही सुनिश्चित होना ही चाहिए। यदि अधिकारी काम नहीं कर रहा है तो 20-50 को क्राइटेरिया में बाहर का रास्तो क्यों नहीं दिखाया जाता।
अधिकारियों की हिम्मत तो देखिए कि मुख्यमंत्री की घोषणाओं को भी धूल में उड़ा रहे हैं खुद तो देर-सवेर सेवानिवृत्त हो जायें लेकिन सरकार को ले डूबेंगे । 2015 के नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार म.प्र. में रोज 112 सडक हादसे हाते हैं जिसमें से लगभग 27 रोज मर जाते हैं। सड़क हादासे में मध्यप्रदेश चैथे स्थान पर है। यह भी हमें नहीं मिलना चाहिये।
अधिकारी एवं ठेकेदारों की जवाबदेही न होने के कारण बात चाहे इन्दौर-अहमदाबाद फोर लेन की हो, इन्दौर बैतूल हाइवे 59 चाहे बुधनी-इटारसी हाइवे 69 की मान.प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सड़क की हो। हालात किसी से भी छिपे नहीं हैं।
काम मे देरी, लगात का बढ़ना, गारंटी में सड़क का उखड़ना, घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग ही सरकार को सड़क के गडढे में ही डाल रहे हैं कुछ सड़क निगम की कुछ सी.पी.ए. की कुछ पी.डब्लु.डी. की है इन्हें पर्याप्त बजट भी मिलता है लेकिन बात सिर्फ नियत की है जनता की गाड़ी कमाई व टैक्स के पैसे की सही उपयोगिता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में लगभग 13000 कि.मी. सड़क खराब है जिनकी मरम्मत के लिए 386 करोड़ की जरूरत है। यहां यक्ष प्रश्न उठता है जब सड़क गारंटी मे थी तो अधिकारियों ने क्यों ध्यान नहीं दिया? निःसंदेह चुनाव की घड़ी नजदीक है जनता का क्रोध और सरकार की कुर्सी हिलने की धड़कन भी समय के साथ बढ़ ही रही है। आखिर ये भारतीय जनता है जो सहना भी जानती है और समय आने पर पटकनी भी देना जानती है आखिर जनता मालिक जो है।
डाॅ. शशि तिवारी
लेखिका सूचना मंत्र की संपादक हैं