भाजपा विरोधी राजनीतिक दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हमेशा ही इस बात को लेकर आलोचना करते है कि विदेशों में जमा काले धन को लाने में उनकी सरकार ने अब तक कोई गंभीर प्रयास नही किए है, जबकि लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने 100 दिनों में इसे वापस लाने का दावा किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि यह पैसा वापस आ जाए तो हर भारतीय के खाते में 15 -15 लाख रुपए जमा हो जाएंगे।
चुनावो में भारी सफलता के बाद केंद्र में उनके नेतृत्व में सरकार के गठन के बाद यह स्वभाविक है कि विपक्ष उन्हें उनके इस दावें की याद दिलाते रहेगा। समय बीतने के बाद सरकार की और से इस बारे में मौन साध लिया गया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तो यह कहकर सरकार का बचाव तक किया कि 15 लाख रुपए खाते में जमा होने की बात तो केवल एक जुमला थी। शाह के इस बयान ने विरोधी दलों को सरकार पर तंज कसने का एक औऱ मौका दे दिया।
अमित शाह के बयान के बाद एक बात तो साबित हो चुकी है कि 15 लाख वाली बात महज एक कपोल कल्पना ही थी। अतः यदि सरकार अब भी इस मामले में गंभीर होकर काले धन को वापस लाने में सफल हो जाए तो यह ऐतिहासिक सफलता मानी जाएगी। यदि यह भी मान लिया जाए कि स्विश बैंक में जमा भारतीयों का सारा धन काला नही है तो यह उचित नही होगा। अब इस खबर पर तो आश्चर्य ही होगा कि विगत वर्ष में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। पिछले 13 वर्षों में पिछले साल की यह वृद्धि सबसे अधिक बताई जा रही है।
गौरतलब है कि केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद में पहले तीन वर्षों में स्विश बैंको में जमा होने वाली राशि मे गिरावट आ गई थी ,लेकिन पिछले साल यह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई। इससे पहले 2004 में जमा राशि में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। स्वीटझरलैंड की सेंट्रल बैंक ऑथोरिटी स्वीश नेशनल बैंक ने हाल ही में जो जानकारी दी है, उसके अनुसार भारतीयों ने स्विश बैंकों में 6891 करोड़ रूपय प्रत्यक्ष रूप से जमा किए है,जबकि 112 करोड़ वेल्थ मैनेजरों के माध्यम से जमा हुए है।
उल्लेखनीय है कि स्विश बैंक 1987 से अपने यहां विदेशियों की जमा राशि के आंकड़े जारी करता रहा है। 2006 में स्विश बैंक में भारतीयों के 23 हजार करोड़ रुपये जमा होने की जानकारी मिली थी। यह रकम अब तक कि सबसे बड़ी जमा रकम थी, जिसने सारे देश को सख्ते में डाल दिया था। देश मे यह माना जाने लगा कि यह रकम टैक्स बचाने के लिए स्विश बैंको में डाली गई है,ओर तभी से इसे काले धन के रूप में परिभाषित क्या जाने लगा। इस धन को वापस लाने के लिए किसी भी सरकार ने गंभीर प्रयास नही किए या कहे कि पूर्ववर्ती किसी भी सरकार ने इसे लाने की इच्छाशक्ति व्यक्त नही की।
दरअसल स्विश बैंक द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों ने मोदी सरकार को भी असहज कर दिया है। विरोधी दलों ने सरकार को कठघरे में करते हुए आरोप भी लगाए कि सरकार ने काले धन पर अंकुश लगाने के इरादे से नोटबन्दी जैसा कदम उठाया था, किन्तु स्विश बैंकों के ताजा आंकड़ों ने इस कदम को बेमानी साबित कर दिया है। इसके जवाब में केंद्र सरकार के दो मंत्रियों वित्त मंत्री अरुण जेटली व अस्थायी रूप से वित्त मंत्रालय देख रहे पीयूष गोयल ने विपक्ष के आरोपो को गलत तो ठहराया दिया लेकिन वे भी दावें के साथ यह नही कह पा रहे है कि उन 7 हजार करोड़ की राशि मे से काला धन कितना है।
कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने पूर्ववती यूपीए सरकार पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि उक्त राशि मे से करीब 40 फिसदी राशि यूपीए सरकार की उदार योजना का लाभ लेकर वहां पहुचाई गई है।यह योजना पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के कार्यकाल में लागू की गई थी, जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति प्रतिवर्ष 2.5 लाख डॉलर बाहर भेज सकता है। सारे मामले में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तर्कों के साथ जवाब देते हुए विपक्ष पर इसे बेवजह तूल देने का आरोप लगाया। उन्होंने भरोसा दिलाया कि जो भी दोषी होगा उसपर कार्यवाही अवश्य की जाएगी।
सरकार के दो मंत्रियों ने विपक्ष के आरोपो का जवाब देने के लिए जो तर्क दिए है,उससे विपक्ष का तो संतुष्ट होना तो नामुमकिन है ही और इससे देशवासियों के मन मे भी संशय की स्थिति बन गई है। अब देशवासियों को उम्मीद है कि स्विश सरकार के साथ एक समझौते के तहत खातों की जानकारी मिलने की जो प्रक्रिया शुरू होगी, उसके बाद सरकार क्या ठोस कदम उठाती है। इसके साथ ही बाहर रुपया भेजने पर भी किस तरह अंकुश लगाती है।
लेखक : कृष्णमोहन झा