बोर्ड परीक्षाओं के खत्म हो जाने के बाद 10वीं और 12वीं के विधार्थी के ऐसे चौराहें पर आकर खङे हो जाते हैं जहाँ से उन्हें अपनी जिन्दगी में आगे बठने के लिए सबसे बङा फैसला लेना पङता हैं । 12वीं के विधार्थियों के लिए यह फैसला 10वीं के विधार्थियों की तुलना में ज्यादा कठिन होता हैं।
क्योकि अगर वह 12वीं के बाद गलत फैसला लेगें तो वे शायद जिन्दगी भर गलतियों का ही सामना करते रह जाएंगें । इन दिनों परीक्षा के बाद एकबार फिर हर जगह एडमिशन की भागा – भागी दिख रहीं हैं । कोई दिल्ली सें बनारस भाग रहा हैं तो कोई बनारस सें इलाहाबाद तो कोई इलाहाबाद से लखनऊ भाग रहा हैं।
मेडिकल के विधार्थी को किताबों के अतिरिक्त सरकार एंव कोट के फैसले के बीच उलझना पङ रहा हैं तो आईआईटी वाले छात्र आखिरी स्टेज की परीक्षा के लिए तैयारी कर रहें हैं और कुछ ऐसे भी विधार्थी हैं जो देश के दिल में बसी दिल्ली में अपनें पसन्दीदा विश्वविधालय दिल्ली विश्वविधालय में एडमिशन के सपने संजोए बैठे हैं पर अफसोस कुछ का सपना कम नम्बर आने के कारण सपना ही रह जाता हैं।
दिल्ली विश्वविधालय में पिछले साल जिस तरह नामी गिरानी कॉलेज जिसमें हिन्दू कॉलेज , किरोङीमल कॉलेज , अरविन्दो कॉलेज ( साध्य ) , दयाल सिंह कॉलेज (सुबह) ,(साध्य), रामलाल आनन्द कॉलेज, डीएवी कॉलेज , कमला नेहरु कॉलेज और भगत सिंह जैसे कॉलेज शामिल थें उनमें फर्जीवाङे की बात सामने आई तब विधार्थियों के मन में यह सवाल उपजने लगे थे कि क्या काबलियत पैसों से हार जाती हैं?
इस फर्जीवाङे में जहाँ 25 विधार्थियों का फर्जीवाङा पकङा गया जिन्होनें 3 से 7 लाख रुपये देकर अपने पसीन्दा कॉलेज की उन सीटों का चयन कर लिया जिन कॉलेज की सीटों पर मेहनत करने वाले विधार्थियों का हक था । फर्जीवाङे के स्तर का पता इसी से चल जाता हें कि इस फर्जीवाङे को करने वालों ने राज्य स्तरीय बोर्ड की फर्जी बेवसाइट बनाकर उच्च वर्ग के बच्चे को उच्च कॉलेज में एडमिशन दिला दिया करते हैं । दिल्ली विश्वविधालय की एडमिशन प्रक्रिया हर बार सवाल के घेरे मे आ ही जाती हैं और छात्रों के बङें समूह को असन्तोष का सामना करवा बैठती हैं।
दिल्ली विश्वविधालय जिस तरह कट ऑफ के आधार पर एडमिशन लेता हैं अगर उस कट ऑफ पर ध्यान दे तो आंकलन करने पर परिणाम यहीं आएंगा कि बङे एंव अच्छे कॉलेज की सारी सीटें प्राय : एक बोर्ड विशेष के विधार्धियों द्वारा ही भर जाती हैं और बाकी राज्य स्तरीय बोर्ड में टाँप करने वाले विधार्थियों को अक्सर दिल्ली विश्वविधालय के अच्छे कॉलेज की सीटों से दूर रहना पङता हैं। ऐसे में सवाल उठता हैं कि क्या इन विधार्थियों में इतनी भी काबलीयत नहीं हैं कि वे इस विश्वविधालय के टॉप के कॉलेजो में एडमिशन न लें सकें? क्या विधार्थियों के नम्बर के आधार पर ही उनकी योग्यता का पता लगता हैं?
कई राज्य स्तरीय बोर्ड की नम्बर देने की प्रणाली ऐसी हैं कि वहाँ पर छात्र कितनी भी मेहनत कर लें बहुत कम ही छात्र शायद कभी 98 प्रतिशत को पार कर पातें होंगें । ऐसे में उनके नम्बर के आधार पर उनका आंकलन कहाँ तक उचित हैं ? और अगर नम्बर इतने ही महत्तव रखते हैं तो क्यों नहीं मेडिकल और आईआईटी के एडमिशन बिना परीक्षा लिए बोर्डस के कट ऑफ पर हो जाते? अब समय आ गया हैं कि दिल्ली विश्वविधालय इस विषय पर सोचें कि कट ऑफ के कारण कहीं वे काबलियत की अनदेखी तो नहीं कर रहा हैं?
क्योकि कम नम्बर लाएं विधार्थी भी कई बार न केवल अपना बल्कि विश्वविधालय का नाम भी ऊँचा कर देते हैं। अगर देश के अधिकांश विश्वविधालय प्रवेश परीक्षा का आयोंजन कराती हैं तो दिल्ली विश्वविधालय को भी एक बार इस प्रणाली पर ध्यान देना चाहिए । क्योकि प्रवेश परीक्षा में वे जिस तरह के सवाल चाहें पूछ सकता हैं। और विश्वविधाल्य के अनुकूल विधार्थी का चयन कर सकता हैं।
कई बार यूपीएससी टॉप करने वाला विधार्थी अपना कॉलेज एंव स्कूल को टॉप नहीं कर पाता हैं तो ऐसें में क्या उसको यह समझा जाएं कि वे पढने में अपेक्षाकृत टॉप करने वाले विधार्थियों की तुलना में कमजोर हैं? दिल्ली विश्वविधालय अगर कट ऑफ के आधार पर ही प्रवेश लेती हैं। तो यह प्रणाली भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। क्योकि भष्ट्राचार करने वाले हर जगह मौजूद हैं और पैसें देने वाले भी हर जगह उपस्थित हैं।
ऐसें में अब सोचना विश्वविधालय को हैं कि जो लोग फर्जी बेबसाइट बनाकर एडमिशन में धान्धली कर सकते हैं वे पैसें के लिए क्या कुछ नहीं कर सकते हैं ? इसीलिए विश्वविधालय को एकबार प्रवेश प्रणाली पर विचार करना चाहिए ताकि नम्बर न काबलियत का एडमिशन ले अपने विश्वविधालय में ।
लेखक :- सुप्रिया सिंह छप्परा बिहार
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