केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि अध्यादेश के विरुद्ध किसानों द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन धीरे धीरे और भी तेज़ व चुनौती पूर्ण होता जा रहा है। 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के नाम किये गए अपने संबोधन में एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि वह न तो इन अध्यादेशों को वापस लेने वाली है न ही किसान आंदोलन को देश के किसानों का आंदोलन मानने के लिए तैयार है। सरकार,उसके अनेक मंत्री,सांसद व भाजपाई मुख्य मंत्रियों से लेकर पार्टी के छुटभैये तक इस बात को ‘प्रमाणित’ व स्थापित करने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए हैं कि दिल्ली के चारों ओर दिखाई देने वाला किसानों का जमावड़ा दरअसल किसानों का नहीं बल्कि पंजाब के कुछ सिक्खों का जमावड़ा है।
सही मायने में तो सत्ताधारी व सत्ता समर्थक स्वयं इस बात को लेकर भ्रमित हैं कि वे इन आंदोलनरत किसानों पर ‘लांछन’ लगाने के लिए आख़िर उन्हें पुकारें भी तो किस नाम से पुकारें।और भ्रम की यही स्थिति कभी इन किसानों को सिक्खों के आंदोलन का नाम दे रही है तो कभी पंजाब के सीमित बड़े किसानों का विरोध प्रदर्शन बता रही है। कभी सरकार कहती है कि ये विपक्षी दलों द्वारा बहकाए गए किसान हैं तो कभी इन्हें आढ़तियों व दलालों द्वारा प्रायोजित आंदोलन बताया जा रहा है।परन्तु सबसे दुःखद आरोप जो इन ‘अन्न दाताओं’ पर मढ़ा जारहा है वह है इन्हें देश विरोधी यहाँ तक कि इन्हें ख़ालिस्तानी बताए जाने जैसा घृणित आरोप लगाना।
गोदी मीडिया के माध्यम से इन ‘अन्नदाताओं ‘ से यह सवाल पूछा जा रहा है कि किसानों के पास ख़र्च करने के लिए इतना पैसा कहाँ से आ रहा है ? कोई इसे विदेशी फ़ंडिंग बता रहा है तो कोई इनके द्वारा धरना स्थल पर बांटे जा रहे टैंट,कंबल,जैकेट,बादाम,काजू आदि पर अपने कैमरे फ़ोकस कर रहा है। सरकार किसान आंदोलनकारियों में कांग्रेसी,वामपंथी,नक्सल,अर्बन नक्सल,एन आर सी व सी ए ए विरोधी,जे एन यू व शाहीन बाग़ के आंदोलनकारियों आदि की पहचान करने में अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए है।
अब तक सरकार ने सत्ता की पूरी ताक़त लगाकर किसान आंदोलन को कमज़ोर,विभाजित व बदनाम करने की पूरी कोशिश की है। आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए किसानों को राज्य्वार बाँटने की कोशिश भी की जा चुकी है। परन्तु सरकार किसानों की कृषि अध्यादेश रद्द करने की मांग की जितना ही अनदेखी करती जा रही है और इसके प्रति अड़ियल रवैया अपनाए जा रही है उसी तीव्रता से किसान आंदोलन और अधिक व्यापक होता जा रहा है। दिल्ली के सीमावर्ती राज्यों के किसानों की संख्या तो धरने में बढ़ती ही जा रही है साथ साथ तमाम दूरस्थ राज्यों के किसान भी इस आंदोलन में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में प्रतिदिन दिल्ली के लिए कूच कर रहे हैं।
साफ़ है कि पंजाब व हरियाणा के किसानों द्वारा उठाई गयी आवाज़ को जहाँ सिक्खों व ख़लिस्तानियों ,वामपंथियों व अर्बन नक्सल्स या टुकड़े टुकड़े गैंग की आवाज़ बता कर देश की जनता ख़ासकर देश के ‘अन्नदाताओं’ को भ्रमित करने की कोशिश की जा रही थी उसे भारतीय कृषक समाज ने व जनता ने नकार दिया है।
परन्तु इस बार पर चिंतन तो ज़रूर होना चाहिए कि जो सिख समाज ‘तेग़ -देग़-फ़तेह’ की अपने गुरुओं की नीति पर चलते हुए पूरे विश्व में अपनी उदारता,परोपकार,मानवता,सौहार्द,दृढ़ता व संकल्प की बदौलत अपनी विजय पताका लहराता आया हो। उस पूरी क़ौम को महज़ अपने राजनैतिक लाभ उठाने के मक़सद से किसी अलगाववादी आंदोलन से जोड़ देना कितना उचित है ? क्या सिख समुदाय के किसानों की सेवा में ख़ालसा एड या गुरु का लंगर जैसी अनेक समाजसेवी संस्थाओं का जुड़ना और उन्हें मानवीय आधार पर अपनी सेवाएं प्रदान करना कोई ‘ख़ालिस्तानी’ कृत्य है ?
यदि हाँ,फिर तो यह भी ज़रूर पुछा जाना चाहिए कि जब काठमांडू में आए भूकंप में यही सिख समाज के युवा बेघर व बेसहारा लोगों को अपनी ऐसी ही सेवाएं दे रहे थे तब तो उन्हें किसी ने ‘ख़ालिस्तानी ‘ क्यों नहीं कहा ? जब यही मानवता के फ़रिश्ते 2013 में केदारनाथ में आए प्रलयकारी विनाश में अपनी जान को ज़ोखिम में डालकर अपने सेवा पूर्ण संस्कारों का परिचय दे रहे थे उस समय तो इन्हें किसी ने अलगाववादी या टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य नहीं बताया ?
जब यह उन बेसहारा व बेघर रोहंगिया मुसलमानों के साथ खड़े थे जिनके साथ कोई खड़ा होना तो दूर बल्कि लोग उन्हें नफ़रत की नज़रों से देख रहे थे उस समय किसी ने इनकी ‘फ़ंडिंग’ पर सवाल खड़ा नहीं किया ?और तो और अभी लॉक डाउन के दिनों में जब दिल्ली सहित पूरे देश में सन्नाटा पसरा था लोगों के भूखे मरने की नौबत आ चुकी थी उस समय भी कोरोना प्रकोप की परवाह किये बिना इसी ‘जियाले समाज’ ने बिना किसी का धर्म जाति व रुतबा देखे हुए करोड़ों लोगों को भरपेट भोजन प्रदान किया और हमेशा की तरह यहाँ भी मानवता की मिसाल पेश की?
सिख समाज की प्रेरणा के प्रमुख स्रोत भाई कन्हैया साहिब के बारे में मशहूर है कि वे युद्ध के मैदान में अपने पक्ष के लोगों की तो पानी पिलाकर सेवा करते ही थे इसके साथ साथ वे अपने दुश्मन की सेना के घायल सिपाहियों को भी पानी पिलाकर उनकी सेवा किया करते थे। जब गुरु गोविंद सिंह जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने भाई कन्हैया जी से इस उदारता का कारण पूछा, तब भाई कन्हैया जी ने जवाब दिया कि ‘वे जिसे भी पानी पिलाते हैं, उसमें मुझे गुरु जी आपके ही दर्शन होते हैं।’
मुझे हर शख़्स में ‘तू ही तू’ नज़र आता है। सोचने का विषय है जिस क़ौम के पास श्री गुरु नानक जैसे वे महान गुरु हों जिन्होंने बाला-मरदाना जैसे सहयोगियों की ताउम्र संगत से सर्वधर्म संभाव का सन्देश दिया हो,जिनके दसों गुरुओं ने लंगर व्यवस्था चलाकर बिना किसी धार्मिक भेदभाव के, मानवता की भलाई करने का सन्देश दिया हो वही समाज यदि आज अपने ही कृषक समाज के लिए हर भूखे को खाना दे रहा है,ज़रूरतमंद
आंदोलनकारी को उनकी ज़रुरत की चीज़ें मुहैया करवा रहा हो,उनके लिए गर्म पानी की व्यवस्था कर रहा हो, तो जिस तंत्र को उसका सहयोगी होना चाहिए वही आज उसकी फ़ंडिंग पर सवाल खड़ा कर रहा है? इन्हें याद रखना चाहिए कि ‘तेग़ देग़ फ़तेह’ इनके लिए सिर्फ़ नारा मात्र नहीं बल्कि यह इनके संस्कारों में शामिल है। और अनेक मुग़ल आक्रांताओं से लेकर ब्रिटिश हुक्मरान तक इस बात से भली भांति वाक़िफ़ भी रहे हैं।
तनवीर जाफ़री