देशभर के स्वास्थ्य संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार देखने में आया है. पिछले दशक में मनुष्य की औसत आयु (जीवन प्रत्याशा) में भी 5 वर्षो तक की वृद्धि हुई है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से जारी बयान के अनुसार, वर्ष 2001-2005 में पुरुषों की औसत आयु 62.3 वर्ष और महिलाओं की 63.9 वर्ष थी |
वर्ष 2011-2015 में यह आयु बढ़कर पुरुषों के मामले में 67.3 वर्ष और महिलाओं के मामले में 69.6 वर्ष हो गई है. एचआईवी मामलों में भी 57 प्रतिशत तक की कमी हुई है. शिशु मृत्युदर में भी कमी आई है |
शिशु मृत्युदर, वर्ष 2005 में जन्में 1 हजार शिशुओं में से 58 से 2012 में 42 पर आ गई है. मातृ मृत्युदर में भी कमी दर्ज की गई है और यह 2001-03 में 1 लाख में 301 से घटकर वर्ष 2007-09 में 212 तक आ गई |
इन प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों में कमी की गति में वृद्धि का रुख दर्ज किया गया है. वर्ष 2001-03 के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं में होने वाली कमी की वार्षिक दर 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 2004-06 में 5.5 प्रतिशत और 2007-09 में 5.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है |
स्वास्थ्य क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि के तौर पर भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित कर दिया गया है. पिछले तीन वर्षो में पोलियो से जुड़ा एक भी मामला सामने न आने के बाद 13 जनवरी 2014 को भारत ने इतिहास बनाया | यह उपलब्धि वर्ष 2009 तक अकल्पनीय थी जब विश्व के कुल पोलियो मामले में से आधे से ज्यादा भारत में देखे जाते थे |
स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में इन प्रशंसनीय सुधार, देश के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में लाई गई मजबूती और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा की गई केंद्रित कार्यनीतियों का परिणाम है |
सरकार ने सभी नागरिकों के लिए व्यापक और समग्र स्वास्थ्य देखभाल का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 12वीं योजना में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में बजट परिव्यय में 335 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए इसे 3 लाख करोड़ तक बढ़ाया |
इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान (एनएचएम) के अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान (एनआरएचएम) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य अभियान (एनयूएचएम) नामक दो उपयोजनाओं को शामिल किया जिनका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी जनसंख्या को सस्ती, आसानी से उपलब्ध होने वाली और गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य देखभाल करना है |