भारत सहित दुनिया के और भी कई देश कोरोना महामारी के विस्तार को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन के दूसरे चरण में प्रवेश कर चुके हैं। कोरोना महामारी से प्रभावित लगभग पूरा विश्व सामान्यतयः इससे बचाव के उन्हीं तरीक़ों को अपना रहा है जिससे किसी तरह से इन्सान को कोरोना पॉज़िटिव होने से बचाया जा सके । लॉक डाउन जैसा अत्यंत कठोर निर्णय तथा एक दूसरे से कम से कम एक मीटर की दूरी बना कर रखने जैसे अव्यवहारिक से प्रतीत होने वाले क़दम इसी मक़सद के तहत उठाए जा रहे हैं। लॉक डाउन पूरे विश्व के लिए ऐसा कड़वा घूँट साबित हो रहा जिसके समग्र दुष्प्रभाव का अंदाज़ा भी आसानी से नहीं लगाया जा सकता। आधी से अधिक दुनिया में औद्योगिक चिमनियों से धुंए निकलने बंद हो चुके हैं। क्या सरकारी तो क्या ग़ैर सरकारी सभी कार्यालयों व संस्थानों पर ताले लटक रहे हैं। इस समय केवल दो ही विभाग पूरे विश्व में सक्रियता से इस महामारी व मनुष्य के बीच दीवार बनकर खड़े हैं,एक तो स्वास्थ्य कर्मी दूसरे लॉक डाउन का पालन कराने का ज़िम्मा उठाने वाले हमारे जांबाज़ सुरक्षा कर्मी।
हमारे देश में पुलिस विभाग के लोगों तथा स्वास्थ्य कर्मियों को आम लोगों को लॉक डाउन संबंधी नियमों का पालन कराने तथा लोगों के स्वास्थ की जांच करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है यह पूरा देश देख रहा है। कहीं स्वास्थ विभाग के फ़रिश्ता रुपी लोगों पर इंदौर व मुरादाबाद जैसे जानलेवा हमले हो रहे हैं तो कहीं पुलिस कर्मियों को लोगों के ग़ुस्से का शिकार होना पड़ रहा है। इंतेहा तो यह है अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले पंजाब पुलिस के एक इन्स्पेक्टर पर एक निहंग ने तलवार से ऐसा जानलेवा हमला किया कि उसका हाथ ही शरीर से कट कर अलग हो गया। कई डॉक्टर,नर्सें तथा पुलिस अधिकारी कोरोना संक्रमित होने की वजह से अपनी जानें भी गँवा चुके हैं। इन सभी चुनौतियों के बावजूद स्वास्थ विभाग के लोग अपनी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाते हुए कोरोना जैसी महामारी से आम लोगों को बचाने की कोशिश में हैं तथा इस से संबंधित शोध कार्य में भी दिन रात लगे हुए हैं।इसी तरह पुलिस व सुरक्षा कर्मी भी अपनी जान पर खेल कर दिन रात एक कर आम लोगों से लाक डाउन का पालन तथा सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल कराने की जी तोड़ कोशिश में लगे हुए हैं। यही वजह है इन्हें कोरोना वारियर्स अथवा कोरोना योद्धा का नाम दिया जा चुका है।
इन विषम परिस्थितियों में निश्चित रूप से देश का आम आदमी लाक डाउन व सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का सबसे अधिक पालन करता दिखाई दे रहा है। और जहाँ लाक डाउन व व सोशल डिस्टेंसिंग के वर्तमान नियमों का उल्लंघन करते हुए कोई व्यक्ति कहीं भी नज़र आता है तो हमारे तत्पर सुरक्षा कर्मी उनके साथ सख़्ती से पेश आ रहे हैं। उन्हें तरह तरह की सज़ाएं भी दी जा रही हैं। कहीं कहीं तो नियमों का उल्लंघनकरने वालों को सार्वजनिक रूप से कान पकड़ कर उठक बैठक कराइ जा रही है। कहीं कहीं उनपर बल प्रयोग भी किये जा रहे हैं। यहाँ तक कि लगभग पूरे देश में लाक डाउन के चलते घर से बेघर हो चुके लाखों लोग जिन्हें रोटी और छत भी मयस्सर नहीं उन्हें भी लाक डाउन व व सोशल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन करने को बाध्य किया जा रहा है।
6 से लेकर 8 घंटों तक लाइन में लगकर जिन्हें मुश्किल से एक समय का भोजन मिल रहा है उन्हें भी कम से कम एक मीटर की दूरी पर खड़े होकर लाइन में लगने को कहा जा रहा है। निश्चित रूप से इन सब प्रयासों के पीछे सरकार व प्रशासन की नेक मंशा यही है कि कोरोना महामारी से आम लोग और अधिक संख्या में पीड़ित न हों तथा इसके विस्तार को यथासंभव रोका जा सके।और कहा जा सकता है कि सरकार व प्रशासन की इन्हीं कोशिशों व आम जनता के बलिदानपूर्ण सहयोग का ही नतीजा है कि आज भारत में इस महामारी का विस्तार विश्व के अन्य कई देशों की तुलना में कम गति से रहा है।
परन्तु इस तस्वीर का दूसरा पहलू अत्यंत पक्षपातपूर्ण व चिंताजनक है। देश में लाक डाउन व व सोशल डिस्टेंसिंग नियम लागू होने के बाद ऐसे अनेक समाचार प्राप्त हो रहे हैं जो यह सोचने के लिए बाध्य करते हैं कि देश में कोरोना महामारी के विस्तार को रोकने का ज़िम्मा क्या अकेले ग़रीब व आम लोगों का ही है ? क्या शासन से जुड़े लोग,धर्मस्थानों के प्रभावशाली लोग,नेतागण व सत्ता संरक्षित लोगों को इन नियमों का पालन करने की कोई ज़रुरत नहीं है ? गत 17 अप्रैल को कर्नाटक के रामनगर ज़िले के बिडाडी में केथागनहल्ली फार्महाउस में पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेकुलर) के प्रमुख एचडी देवगौड़ा के पोते निखिल कुमारस्वामी की शादी पूरे धूम धाम के साथ सम्पन्न हुई। निखिल की शादी कर्नाटक के पूर्व आवास मंत्री एम कृष्णप्पा की रिश्तेदार रेवती के साथ हुई है।
भाजपा ने आरोप लगाया कि इस विवाह समारोह में केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का सरासर उल्लंघन किया गया है। रामनगर जिले के भाजपा प्रमुख ने आरोप लगाया, कि विवाह समारोह के लिए 150 से 200 गाड़ियों को अनुमति दी गई। इस विषय पर अपनी आलोचना से तंग आकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि -‘अगर कोई भी गड़बड़ी हुई हो तो उस पर कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि ज़िलाधिकारी ने शादी समारोह की अनुमति दी थी। साथ ही समारोह में जितने भी वाहन शामिल हुए, सभी का पास था। वहीं मास्क नहीं पहनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसी कोई एडवाइज़री नहीं जारी की है, जिसमें सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य हो।
सोचने का विषय है कि एक ओर जहाँ देश भर में लाखों आम लोगों ने अपने परिवार शादियां स्थगित कर दीं। जहाँ देश भर में अनेक बारातें लॉक डाउन में फंसकर वापस नहीं जा पा रही हैं,जहाँ कई राज्यों मास्क न पहनना अपराध की श्रेणी में शामिल कर दिया गया हो। वहीँ शक्तिशाली लोगों द्वारा इस महामारी के दौरान भी विवाह समारोहों का आयोजन करना तथा लाक डाउन व व सोशल डिस्टेंसिंग के नियम अपनी सुविधानुरूप गढ़ना क्या इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए पर्याप्त नहीं है कि लाक डाउन व व सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने का ज़िम्मा केवल आम लोगों,ग़रीबों व कामगारों का ही है ? इसी तरह कर्नाटक बीजेपी के विधायक महंतेश कवतागिमठ ने गत सप्ताह बेलगाम में अपनी बेटी की शादी कराई। इसमें लगभग 3 हज़ार लोग उपस्थित थे।
इस विवाह समारोह में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदुयुरप्पा भी शरीक हुए। यह कैसा मज़ाक़ है कि मुख्यमंत्री येदुयुरप्पा ने स्वयं लोगों से अपील की थी कि कोरोना के इस संकट में कोई शादी समारोह का आयोजन न करें। और वे स्वयं अपनी पार्टी के विधायक की बेटी के विवाह समारोह में शरीक हुए ? लाक डाउन के दौरान ही भाजपा के ही एक विधायक ने कर्नाटक में तो दूसरे ने महाराष्ट्र में धूम धाम से अपना जन्मदिन मनाकर लॉक डाउन के नियमों को ठेंगा दिखाया। इसी तरह कर्नाटक राज्य के ही कलबुर्गी ज़िले में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले सिद्धालिंगेश्वर मेले में हज़ारों लोग इकठ्ठा हुए और एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर रथ को कई घंटों तक खींचते रहे । यहां भी लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई गईं। परन्तु सरकार ने इस आयोजन को सम्पन्न होने दिया तथा कार्यक्रम के बाद कुछ लोगों के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई कर अपना ‘फ़र्ज़’ पूरा किया।
इस अभूतपूर्व मानवीय संकट के समय यदि अमीर ग़रीब ,शक्तिशाली व कमज़ोर ,आम और ख़ास तथा धर्म व जाति के आधार पर फ़ैसले लिए जाएंगे या इस आधार पर क़ानून का पालन कराने की कोशिश की जाएगी तो इससे महामारी पर नियंत्रण पाना आसान नहीं होगा।
:-तनवीर जाफ़री