बालाघाट – आगामी माह होने वाले लोकसभा चुनाव के मतदान की तारीख जैसे-जैसे नीचे खिसक रही है उसी रफ्तार से जनता के बीच किस पार्टी से कौन उम्मीदवार होगा इसकी भी चर्चाएं तेज गति पकड़ रही है। घोषित कार्यक्रम के अनुसार २ से ९ अपै्रल तक नामांकन भरे जायेंगे। नाम वापिस लेने की तारीख १२ अपै्रल है और २९ अप्रैल को मतदान होना है।
चूंकि होली का पर्व बीच में आ रहा है इसलिए बीच के ४ दिन राजनीतिक गतिविधियां शून्य रहेंगी। संभावित उम्मीदवार भले ही जनसंपर्क में रहे पर राजनीतिक कार्यक्रम संगठन स्तर पर नहीं हो पायेंगे। बालाघाट सिवनी संसदीय क्षेत्र क्रमांक १५ में भाजपा की तरफ से जो संकेत मिल रहे हैं उसमें वर्तमान सांसद बोधसिंह भगत का पुन: उम्मीदवार बनना निश्चित लग रहा है। अगर कोई उलटफेर होता है तो विकल्प के रूप में श्रीमती मौसम हरिनखेड़े उम्मीदवार होंगी।
परंतु सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिये इस सीट पर उम्मीदवार चयन करना टेढ़ी खीर बन गया है। जबकि ८ में से ५ विधायक कांग्रेस के हैं उसके बाद भी उम्मीदवार चयन में कांग्रेस हाईकमान फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है। लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की ओर से वैसे तो ४ पर्यवेक्षक यहां भेजे गये थे उसके बाद गोपनीय तौर पर भी विभिन्न सर्वे करवाये गए।
इतना सबकुछ होने के बाद भी किसी एक नाम पर हाईकमान अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहा है। कारण यह है कि इस सीट पर जातिगत समीकरण का बड़ा महत्व है। दिल्ली और भोपाल के राजनीतिक सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस सीट पर तीन नामों में से कोई एक नाम पर अंतिम मोहर लग सकती है।
इस क्रम में पहला नाम कॉपरेटिव बैंक के पूर्व अध्यक्ष उदयसिंह नगपुरे जो लोधी समाज में गहरी पकड़ रखते हैं। सहज और सरल व्यवहार के धनी उदय के पिता स्व. झनकार सिंह नगपुरे तीन बार किरनापुर विधानसभा सीट से विधायक भी रहे। जमींदार परिवार के सदस्य उदयसिंह लांजी, परसवाड़ा, किरनापुर के साथ जिले के लोधी बाहुल्य क्षेत्रों में गहरी पकड़ होने के साथ जब यह कॉपरेटिव बैंक के अध्यक्ष रहे तो इनका किसानों के साथ सीधा संवाद रहा जिसके कारण किसानों की समस्या और उसका समाधान दोनों का इनको अच्छा ज्ञान है।
हालांकि कुछ समय के लिये यह लोकल स्तर की राजनीति के कारण कांग्रेस से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गये थे जहां ये जिलाध्यक्ष एवं कॉपरेटिव बैंक के अध्यक्ष पद पर उन्होंने कार्य किया किंतु मूल रूप से कांग्रेस होने के कारण यह भाजपा की संस्कृति होने के कारण यह भाजपा की संस्कृति में ढल नहीं पाये। विधानसभा चुनाव के पूर्व मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ की उपस्थिति में इन्होंने घर वापसी की। कांग्रेस में लोधी समाज की ओर से लोकसभा में वैसे तो दो अन्य दावेदार डोंमनसिंह नगपुरे एवं श्रीमती साधना भारती भी हैं। उन सब में मजबूत दावेदारी उदयसिंह नगपुरे की सामने आई है। यह अपने स्तर पर दिल्ली, भोपाल में कांग्रेस के उचित पक्षों से संपर्क बनाये हुए हैं।
दूसरा नाम परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक मधु भगत का भी प्रबल रूप से उभरकर आया है। ५ वर्ष तक विधायक के रूप में मधु ने सरकार नहीं होने के पश्चात भी कार्य किया पर एक मजबूत पकड़ स्वयं पंवार समाज में नहीं होने के कारण इनको विधानसभा चुनाव में पंवार समाज बाहुल्य क्षेत्र से ही पिछडऩा पड़ा जिसके कारण यह विधायक रहते हुए परसवाड़ा में तीसरे स्थान पर आये। जो कहीं न कहीं इनके राजनीतिक पकड़ को कमजोर होने का संकेत देते हैं। चूंकि पंवार समाज की ओर से जितनों ने आवेदन किया है उसमें पूर्व सांसद विश्वेश्वर भगत ने अपने आप को टिकिट की दौड़ से अलग कर लेने के कारण मधु भगत की दावेदारी बेहद मजबूत दिख रही है।
उनके द्वारा लोकसभा टिकिट के लिये प्रयास भी किये जा रहे हैं। हालाकि यह बात भी कटु सत्य है कि पूर्व कृषि मंत्री एवं वर्तमान विधायक गौरीशंकर बिसेन के कारण पंवार समाज का झुकाव भाजपा की ओर ज्यादा है। परंतु राजनीति में यह उतार-चढ़ाव आते जाते रहते हैं। मधु को लेकर कांग्रेस के भीतर ही एक सवाल जरूर नेताओं में चर्चा का विषय है कि क्या तीसरे नंबर पर आने वाले व्यक्ति को कांग्रेस लोकसभा जैसे बड़े चुनाव में उम्मीदवार बनायेगी।
तीसरा नाम युवा अधिवक्ता पवन लिखीराम कावरे का तेजी के साथ उभरकर आया है। यह नाम जैसे ही जनता के सामने चर्चाओं का केन्द्र बना तो लोगों को आश्चर्य जरूर हुआ पर परिवार का राजनीतिक बैकग्राऊंड उनके लिये एक मजबूती बना हुआ है। राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा के सानिध्य में रहकर हाईकोर्ट जबलपुर में प्रैक्टिस करने वाले पवन कावरे के पिता स्व. लिखीराम कावरे तीन बार किरनापुर उसके बाद माता श्रीमती पुष्पलता कावरे २ बार किरनापुर और उनकी बड़ी बहन सुश्री हिना कावरे २ बार लांजी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुई हैं और वर्तमान समय वह मध्यप्रदेश विधानसभा की उपाध्यक्ष भी हैं। पिछला लोकसभा चुनाव सुश्री हिना ने मोदी लहर में भी दमदारी के साथ लड़ा। पराजय के पश्चात भी उनका प्रदर्शन सम्मानजनक था। जहां तक पवन कावरे के राजनीति में सक्रियता की बात है तो उस संबंध में यही कहा जा सकता है कि राजनीति उनको विरासत में मिली है और परिवार के राजनीतिक वातावरण में पले-बढ़े हैं और अपनी बहन सुश्री हिना कावरे को वह सभी तरह के राजनीतिक गतिविधियों में सहयोग प्रदान करते रहे हैं।
इस प्रकार से जो तीन नाम कांग्रेस के भीतरी खाने में चर्चा का विषय है उसमें एक लोधी, एक पंवार, एक मरार समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन तीनों समाज का इस संसदीय क्षेत्र में अपना प्रभाव और वोटबैंक है। हालाकि आदिवासी समाज का भी खासा प्रभाव है। वहीं मुस्लिम समाज इस संसदीय क्षेत्र में परिणामों की दिशा मोडऩे की क्षमता रखता है। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन होने के कारण उनकी ओर से कौन उम्मीदवार होगा यह अभी साफ नहीं हो पाया है।
इतना सबकुछ राजनीतिक दांवपेंच में कांग्रेस पार्टी के प्रत्येक कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी की नजरें प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर लगी हुई है कि वह निकट भविष्य के चुनाव में उम्मीदवार के रूप में किस नेता को चुनाव लडऩे का अवसर प्रदान करते हैं। जिस तरह का राजनीतिक परिदृश्य यहां विद्मान है उसमें अगर भाजपा से बोधसिंह भगत आते हैं तो कांगे्रस को इस चुनाव में भाजपा को चुनौती देने में और आसानी जायेगी।
इस सीट पर सपा के कंकर मुंजारे एवं श्रीमती अनुभा मुंजारे कांगे्रस के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करते रहते हैं। विधानसभा में भी परसवाड़ा एवं बालाघाट सीट में इन दोनों के वजह से ही कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ गया। हालाकि ऐसा अनुमान है कि उम्मीदवारों की घोषणा २५ मार्च के बाद की जायेगी भले ही वर्तमान समय तरह-तरह के समाचार पत्र अपने-अपने सूत्रों के आधार पर अनेक नाम सामने ला रहे हैं पर जबतक पार्टी की ओर अधिकृत उम्मीदवार की घोषणा नहीं होती तबतक उस नाम को फाईनल मानना बेमानी है।
रिपोर्ट – रहीम खान