महाशिवरात्रि सृष्टि के आदिकाल में महाशिवरात्रि को मध्यरात्रि में शिव का ब्रह्म से रुद्र रूप में अवतरण हुआ। इसी दिन प्रलय के समय प्रदोष स्थिति में शिव ने तांडव करते हुए संपूर्ण ब्रह्मांड अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर दिया। इसलिए महाशिवरात्रि या काल रात्रि पर्व के रूप में मनाने की प्रथा का प्रचलन है। महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है।
ये हैं शिव के 19 अवतार
वीरभद्र अवतार: भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था।
पिप्पलाद अवतार: मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका।
नंदी अवतार: भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है।
भैरव अवतार: शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।
अश्वत्थामा: महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे।
शरभावतार: भगवान शंकर के शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था।
गृहपति अवतार: भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। कथानुसार नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।
ऋषि दुवार्सा: भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुवार्सा का अवतार भी प्रमुख है।
हनुमान: भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था।
वृषभ अवतार: भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था।
यतिनाथ अवतार: भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े।
कृष्णदर्शन अवतार: भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है।
अवधूत अवतार: भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था।
भिक्षुवर्य अवतार: भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर का भिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।
सुरेश्वर अवतार: भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है।
किरात अवतार: किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी।
सुनटनर्तक अवतार: पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था।
ब्रह्मचारी अवतार: दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे।
यक्ष अवतार: यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था।
शिव शब्द की उत्पत्ति
शिव शब्द की उत्पत्ति वंश कांतौ धातु से हुई है। इसका अर्थ होता है- सबको चाहने वाला और जिसे सब चाहते हैं।
इसलिए कहलाए नीलकंठ
देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
ये हैं भगवान शिव के मंत्र
भगवान शिव की उपासना में पंचाक्षर नम: शिवाय और महामृत्युंज विशेष प्रसिद्ध है। भगवान शिव की पार्थिव पूजा का विशेष महत्व है। वेद में शिव का नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अंतर्यामी हैं। शिव योगी के रूप में जाने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है। भक्त पूजन में शिवजी की आरती की जाती है।