नई दिल्ली– पीएमओ ने शनिवार को ले. जनरल विपिन रावत को नया सेना प्रमुख नियुक्त करने की घोषणा की। ले. जनरल विपिन रावत 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे मौजूदा जनरल दलबीर सिंह की जगह लेंगे। ले. रावत को वरिष्ठता का क्रम तोड़ते हुए दो वरिष्ठ अधिकारियों से आगे रखते हुए यह दायित्व सौंपा गया है, जिस कारण विपक्षी दल अब उनकी नियुक्ति पर सवाल उठा रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, ‘हमें ले. जनरल रावत की योग्यता पर संदेह नहीं है, लेकिन सरकार को यह जरूर बताना होगा कि नए सेना प्रमुख की नियुक्ति में 3 वरिष्ठ अधिकारियों को क्यों नजरअंदाज किया गया।’
वहीं रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि ले. जनरल रावत के पास युद्धक्षेत्र का खासा अनुभव है और उन्होंने बीतें 3 दशकों में सेना में हर स्तर पर अपनी सेवाएं दी हैं। उभरती चुनौतियों से निपटने में उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त पाया गया।
वैसे यह पहली बार नहीं है कि जब किसी वरिष्ठअधिकारी को नजरअंदाज कर किसी निचले क्रम के अधिकारी को सेना का कमान सौंपा गया हो। 33 साल पहले, 1983 में इंदिरा गांधी ने ले. जनरल ए. एस वैद्य को वरिष्ठता के क्रम को दरकिनार कर सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी। उस वक्त लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा सबसे वरिष्ठ सैनय अधिकारी थे। एसके सिन्हा ने इंदिरा गांधी के फैसले से नाराजगी जताते हुए इस्तीफा दे दिया था।
इससे पहले इंदिरा गांधी ने 1972 में भी ऐसा किया था। 1972 में इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत को दरकिनार करते हुए जी.जी. बेवूर को सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी। बता दें कि लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत इस वक्त देश भर में खासा लोकप्रिय थे और दूसरे विश्व युद्ध के लिए विक्टोरिया क्रॉस अवॉर्ड भी जीत चुके थे।