लखनऊ- यूपी में गन्ने का ड्रॉल ना बढ़ना एक गंभीर चिंता का विषय बन के उभरा है। जो की चीनी मिल और गन्ना विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत को उजागर करता है । वेस्ट यूपी की एशिया की सबसे बड़ी गुड़ की मंडी आज बंदी की कगार पर पहुच चुकी है। कोल्हू क्रशर की मनमानी जारी है , औने पौने दाम में किसान अपना गन्ना कोल्हू पर बेच आता है । जिसके बारे में गन्ना विभाग कुछ नहीं कर पाता । विशेषज्ञ बताते हैं की चीनी मिलों में जितनी रिकवरी 1945 में थी। आज भी उतनी ही है। जो की गम्भीर विषय है ।
आज की तारीख में चीनी मिल चलने का average 133 दिन से ज्यादा नहीं है, जबकि गन्ना मिलो को 160 से 180 दिन चलाने का टार्गेट है। चीनी मिलों को समय पर ना चलवा पाना और किसानों का भुगतान समय पर ना मिलना गन्ना विभाग की नाकामी को दर्शाता है ।
यूपी में गन्ना किसान के पास आज जहर खाने को पैसा नहीं है। वही दूसरी ओर चीनी मिल मालिको के एजंट की तरह काम कर रहे विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, दौलत में नहा रहे है। कभी गन्ने के विकास के नाम पर , कभी उसके आवंटन के नाम पर । सूत्रों से यह भी पता चला है की गन्ने के आवंटन को लेकर गन्ना आयुक्त से कई बार K .M शुगर के मालिक आदित्य झुनझुनवाला मिल चुके हैं । बताया यह भी जाता है की गन्ना आयुक्त फैजाबाद में पोस्टिंग के समय झुनझुनवाला के काफी करीब रहे । इसलिये हो सकता है , इस बार मोतीनगर मिल को गन्ने का ठीक ठाक आवंटन हो सकता है ।
जानकार यह भी बताते हैं की विभाग में दिये गये किसी भी प्रत्यावेदन का निस्तारण एक हफ्ते के अन्दर नहीं होता , जब तक अधिकारियों और बाबुओं की पैरवी ना की जाये । इसलिये किसी भी कार्यशाला को सफल बनाने के लिये गन्ना विभाग से जुड़े लोगों को अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने की ज़रूरत है । तब जाकर गन्ने की पैदावार बढेगा और up में चीनी मिलों को लाभ तथा गन्ना किसान खुशहाल होगा ।
रिपोर्ट- @शाश्वत तिवारी