बैतूल : एक-तरफ, जब मप्र बैतूल जिले का आदिवासी के हालात इतने बद्दतर हो गए है कि वो पहली बार आत्महत्या की तरफ बढ़ रहा है – विगत माह चार आदिवासी किसानों ने आत्महत्या की, तब सरकार उन्हें मदद करने की बजाए: उनकी खडी फसल में बुलडोजर चला रही है; कीटनाशक का जहर डाल बर्बाद कर रही है; फलदार पेड़ उखाड़ रही है; उनके आशियाने जमीन-दोस्त कर रही है|
आदिवासीयों ने अपनी भूख और पर्यावरण की समस्या के हल के रूप में अपने गाँव के वन छेत्र में हजारों की संख्यां में फलदार पौधे लगाने की शुरुवात वर्ष 2005 में की थी| जिसे वन विभाग ने एक बार फिर असफल किया| जब सारी दुनिया पर्यावरण और भूख की समस्या को लेकर चिंतिंत है और लाखों करोड़ के बजट की बात कर रही है,, तब आदिवासीयों का जो स्वस्फूर्त बिना एक पैसे सरकारी बजट का पर्यास दुनिया के सामने नजीर बन सकता है, उसमें मदद करने की बजाए उसे गैर उपनिवेशिक रवैये और तरीकों से विफल करने में म. प्र. सरकार लगातार लगी है|
श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद ने शिवराज सिंग की इस उपने वेशिकवादी, अमानवीय हरकत की तीव्र निंदा करते हुए उन्हें आदिवासीयों की आत्महत्या से बेपरवाह करार दिया| और, इस घटना में लिप्त कर्मचारियों और आधिकारियों पर शीघ्र कार्यवाही की मांग की है|
बैतूल जिला प्रशासन के दो-सौ अधिकारीयों और कर्मचारियों ने आज चिचोली ब्लाक के, पश्चिम वन मंडल के सांवलीगढ़ रेंज की पीपलबर्रा और बोड गाँव के आदिवासीयों के 45 घर तोड़ दिए; गेंहू की फसल में कीटनाशक डाल उसमें बुलडोजर चला दिए; पीने के पानी के कुएं में जहर डाल दिया और आम और जाम के चार साल पुराने पेड़ भी उखाड़ दिए| कार्यवाही के दौरान परसराम आदिवासी पिटाई में घायल हो गया और; मौके पर मौजूद अधिकारीयों ने उसके ईलाज से भी इंकार कर दिया| एक बकरी का पिल्ला जे सी बी मशीन के नीचे आकर मार गया|
इस स्थान पर वर्ष 2010 में भी वन विभाग घरों में आग लगाने की कार्यवाही कर चुका है| यह स्थान बोड और पीपल्बर्रा गाँव के आदिवासीयों का पुराना गाँव है और वो वर्ष 2004-5 से यहाँ पुन: काबिज है| उन्होंने नारा दिया: “ फलदार-पोधे लगाएंगे – भुखमरी मिटायेंगे – हरियाली खुशहाली लाएंगे” और इस जमीन ; लाखों रुपए के श्रम बराबर मजूदरी लगा लेंटाना साफ़ कर यहाँ उन्होंने अभी तक 50 हजार फलदार पौधे लगाए| वन विभाग इन पौधों को लगातार नष्ट करता आ रहा है|
वन विभाग इस तरह की कार्यवाही कल या परसों में चोपन थाना छेत्र के रामपुर भातौडी परियोजना के दानवाखेडा और मरकाढाना गाँव में करने वाला है| मरकाढाना में दिवाली के कुछ दिन पहले ही फसल नुकसानी के चलते रामसिंग आदिवासी ने आत्महत्या की है| ज्ञात हो कि इस वन छेत्र के चुनाहजूरी गाँव में दो वर्ष पूर्व वन विभाग की घर तोड़ने की कार्यवाही में बिसन आदिवासी की मौत हो गई थी|
इस मामले में कानूनी स्थिती यह है: अनुसूचित जन-जाति एवं परम्परागत वन निवासी (वन अधिकार) कानून , 2006 ( वन अधिकार क़ानून) के 29 दिसम्बर 2006 को राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद से इसकी धारा 6 के अनुसार कानून गाँव की ग्रामसभा ही एक मात्र ऐसी संस्था है, जो यह तय कर सकती है कि आदिवासीयों और जंगल में रहने वाले अन्य निवासीयों के जंगल पर अधिकार कितने है और किया –किया है | इसमें वन विभाग या प्रशासन एक तरफ़ा निर्णय नहीं ले सकता| और धारा 4 (5) के अनुसार इन अधिकारों को तय किए जाने की काम पूर्ण होने तक, किसी भी व्यक्ती को उसके कब्जे की वनभूमी से बेदखल नही किया जा सकता| इसकी धारा 3 (1): (a) के अनुसार खेती का अधिकार; (b) के अनुसार निस्तार के परम्परागत और राजे-महराजे के जामने के अधिकार और; (h) के अनुसार आदिवासीयों की पुरानी बसाहट को नियमित करने का अधिकार; और धारा 5 के अनुसार अपने जंगल के संरक्षण का अधिकार तय करने का काम ग्राम-सभा का है|
पीपल्बर्रा और बोड के आदिवासीयों ने पूर्व में वन-विभाग की इस गैरकानूनी हरकत के खिलाफ 08.07.2010; 23.03.2011 और 07.02.2012 को बैतूल कलेक्टर; एस. पी. और हरिजन कल्याण थाने में वन विभाग के अधिकारीयों पर एफ आई दर्ज करने के लिए आवेदन दिए है| आज की घटना पर भी शीघ्र बड़ा आन्दोलन करेगी| – रिपोर्ट अकील अहमद