भोपाल : मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों के खिलाफ आयकर छापे के तीन दिन बाद ही शिवराज सरकार के दौरान ई-टेंडरिंग घोटाले में एफआईआर दर्ज की है।
आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने सात कंपनियों के अलावा मध्य प्रदेश सरकार के पांच अलग-अलग विभागों के अफसरों और अज्ञात नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
बता दें कि शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए ई-टेंडर के नाम पर फर्जीवाड़ा करके कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया था। इसमें तत्कालीन शिवराज सरकार के कई अफसरों के शामिल होने की बात आई थी। जिसके बाद से इस मामले की जांच के लिए कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री को शिकायत की थी।
EOW के डीजी केएन तिवारी ने बताया कि ई-टेंडरिंग घोटाले में पांच विभागों, सात कंपनियों के अलावा कई नौकरशाहों और अज्ञात नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
एडीजी केएल तिवारी ने बताया कि जनवरी 2018 से मार्च 2018 के बीच ये सभी टेंडर हुए थे, जिसमें 900 करोड़ की राशि जुड़ी थी।
फिलहाल इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। जल्द ही आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट पेश की जाएगी। वहीं जिन लोगों के नाम इसमें सामने आए हैं, उनके खिलाफ भी जांच की जाएगी।
कांग्रेस सरकार के इस कदम के बाद न सिर्फ राज्य की बल्कि देश की सियासत भी गरमा सकती है। क्योंकि भाजपा इसे बदले की राजनीति बता रही है।
ऐसे में मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए होने वाले मतदान से पहले ये मामला और तूल पकड़ सकता है। इस मामले में बदले की राजनीति की बात सामने आते ही कांग्रेस हरकत में आई है।
पार्टी प्रवक्त भूपेश गुप्ता ने कहा कि, ये कोई बदले की कार्रवाई नहीं है। हमने अपने वचन पत्र में ही कह दिया था कि जनता से जुड़े हर मामले की जांच की जाएगी। जो प्रदेश जानना चाहता है हम वह लोगों तक पहुंचाएंगे। प्रिंसिपल सेकेट्री स्तर के अधिकारी ने यह मामला उजागर किया था।
ये है पूरा मामला
बता दें कि मध्य प्रदेश में ई-टेंडर के नाम पर बड़ा घोटाला हुआ था। घोटाले को इस तरह से समझा जा सकता है कि कहने को तो टेंडर कि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन थी, लेकिन फायदा पहुंचाने के चक्कर में इसमें बोली लगाने वाली कंपनियों को पहले ही सबसे कम बोली का पता चल जाता था।
शुरुआती तौर पर ई-टेंडर प्रक्रिया में लगभग तीन हजार करोड़ के घोटाले की बात सामने आ रही है, लेकिन ये प्रक्रिया 2014 से ही लागू है और इस दौरान सरकार ने इस प्रक्रिया के जरिए तीन लाख करोड़ रुपए के टेंडर दिए जा चुके हैं।
बता दें कि इस मामले की जांच कर रही इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम( CERTIn) ने अपनी रिपोर्ट में ई-टेंडरिंग में बड़े घोटाले की जानकारी दी थी।
इसके बाद ईओडब्ल्यू मुख्यमंत्री कमलनाथ की हरी झंडी का इंतजार कर रहा था और वहां से मंजूरी मिलते ही आर्थिक अपराधर अन्वेषण ब्यूरो ने एफआईआर दर्ज कर ली।
ऐसी जानकारी भी आ रही है कि इस मामले में मंगलवार को ही EOW ने एफआईआर दर्ज कर ली थी।
CERT-In ने अपनी जांच में भी ये पाया था कि हैकर्स सरकार के ई-प्रॉक्योरमेंट सॉफ्टवेयर में सेंध लगाने में कामयाब हो गए थे।
पिछले महीने ही जांच एजेंसी ने ईओडब्ल्यू को जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें ये बताया था कि ई-टेंडर में बदलाव किए गए थे और कई लोगों ने अनाधिकृत रुप से सॉफ्टवेयर के साथ छेड़छाड़ की थी।
इसके लिए एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में उन कम्प्यूटर सिस्टम के आईपी नंबर भी बताए हैं, जिसके जरिए जल निगम के तीन टेंडरों को हैक किया गया था और फिर छेड़छाड़ करके मनपसंद कंपनी को फायदा पहुंचाया गया। इसके बाद जांच एजेंसी ने ईओडब्ल्यू से 6 दूसरे टेंडरों के लॉग मांगे थे। ताकि जांच की जा सके।
मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिग डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के सॉफ्टवेयर में सेंधमारी की वजह से तीन हजार करोड़ का ये घोटाला हुआ था। इसके सामने आने के बाद सरकार को साल 2018 में जारी किए गए 9 टेंडर कैंसिल करने पड़े थे।
बता दें कि कांग्रेस ने पिछले साल मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इसे बड़ा मुद्दा बनाया था और इस घोटाले को व्यापमं कांड से भी बड़ा बताया था।
कांग्रेस अध्यक्ष ने भी अपनी चुनावी सभाओं में ये वादा किया था कि विजय माल्या की तरह ई-टेंडर घोटाले के आरोपियों को देश से भागने नहीं दिया जाएगा और अगर कांग्रेस में सत्ता में आई तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।