मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार की उस वक्त किरकिरी हो गई, जब उसके ही विधायकों ने अपनी सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कटघरे में खड़ा कर दिया। स्थिति यहां तक पहुंची कि मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों को सदन में ही बर्खास्त करना पड़ा, जिसके बाद स्थिति थोड़ी संभली।
राज्य की बदहाल शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हुए एक भाजपा विधायक इतने नाराज हो गए कि उन्होंने आगे से सदन में कोई भी प्रश्न नहीं पूछने की बात कह दी। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण सरकार के पास कोई दूरगामी नीति नहीं होना बताया।
सदन की कार्यवाही के दौरान भाजपा विधायक सूबेदार सिंह राजौधा ने किसानों को बंड फार्मर अनुदान बांटे जाने में हुई अनियमित्ता पर सवाल उठाए। राजौधा ने आरोप लगाते हुए कहा कि बंड फार्मर के लिए अफसरों ने फर्जी सूची विधानसभा में भेजी है।
इसके लिए 3 बार आरोपी अफसर का तबादला हो चुका है, लेकिन उसने अपना तबादला रुकवा लिया। इस पर कृषि राज्यमंत्री ने सदन में ही आरोपी अफसर को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद एक और भाजपा विधायक आरडी प्रजापति ने छतरपुर के ईशानगर स्कूल में 14 लाख रुपए की धांधली पर सवाल उठाए।
इस मामले में तुरंत कारवाई करते हुए मंत्री विजय शाह ने सदन में घोषणा करते हुए कहा कि दोषी अफसरों को शाम तक सस्पेंड कर दिया जाएगा।
बता दें कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर विपक्षी कांग्रेस पार्टी भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा चुकी है। कुछ समय पहले कांग्रेस नेता और सांसद अरुण यादव ने सरकार पर राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन के तहत टॉयलेट बनवाने में 1500 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था।
कांग्रेस का ये भी आरोप है कि शिवराज सिंह चौहान सरकार अपनी ब्रांडिंग पर काफी पैसा खर्च कर रही है, जबकि राज्य पर 1.70 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। कांग्रेस ने मध्य प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किए थे। इसके अलावा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार व्यापम घोटाले को लेकर पहले ही चर्चा में आ चुकी है।