पिछली सरकार के कार्यकाल में दौरान किसानो के नाम पर हुई गड़बड़ियां उजागर होने लगी हैं। अनुमान के अनुसार करीब 100 करोड़ की गड़बड़ी होने का अंदेशा है बताया जा रहा है की किसानों को न तो खाद मिली और न ही कोई अन्य सामग्री। यही नहीं जो सामग्री वितरित की गई वो बेहद घटिया थी। खाद में राख व मिट्टी की मात्रा अधिक होने और तरल पदार्थ में खाद की जगह पानी पाया गया, जो बेअसर रहा।
भोपाल। पिछली सरकार के दौरान प्रदेश में किसानों के नाम पर बड़ी-बड़ी गड़बड़ियां उजागर होने लगी हैं। आदिवासी किसानों को जैविक खेती के लिए खाद सहित अन्य सामग्री देने नाम पर सौ करोड़ रुपए की योजना में बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। इसमें अधिकांश किसानों को न तो खाद मिली और न ही कोई अन्य सामग्री। जिन्हें खाद मिली थी तो उसमें राख, मिट्टी और तरल पदार्थ के नाम पर पानी टिका दिया गया।
कांग्रेस के विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को ने विधानसभा में इसे आदिवासियों के नाम पर बड़ा घोटाला करार देते हुए जांच की बात उठाई थी। आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने विधायकों के आरोपों का साथ देते हुए पूरी योजना को कागजी करार दिया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए अब कृषि विभाग ने सात विधायक और कृषि व आदिम जाति कल्याण के अधिकारियों की कमेटी बनाकर जांच कराने का फैसला किया है।
सूत्रों के मुताबिक आदिम जाति कल्याण विभाग ने 20 जिलों के आदिवासी और विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, सहरिया व भारिया किसानों को कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा के उत्पादन में सहयोग और प्रोसेसिंग, पैकेजिंग व मार्केटिंग के लिए सौ करोड़ रुपए कृषि विभाग को वर्ष 2017-18 में दिए थे। विभाग का मकसद साफ था कि जैविक खेती करने वाले आदिवासी किसानों को उन्न्त खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाए और उनके लिए खेती लाभ का सौदा बने, इसके प्रयास हों।
कृषि विभाग ने इस राशि का इस्तेमाल बायोलॉजिकल नाइट्रोजन, हरी खाद के प्रयोग के लिए सहायता, तरल जैव उर्वरक सहायता, जैव पेस्टीसाइड, फॉस्फेट रिच ऑर्गेनिक मेन्योर प्रयोग के लिए सहायता एवं प्रोसेसिंग, पैकिंग मटेरियल विथ पीजीएस लोगो में करने को मिलाकर कार्ययोजना बनाई थी।
तीन जुलाई 2017 को आदिम जाति कल्याण विभाग ने बायोपेस्टीसाइड को छोड़कर वर्मीकंपोस्टिंग को शामिल करते हुए योजना को मंजूरी दे दी। परियोजना संचालक (आत्मा) ने प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और हर जिले के ब्रांडनेम उत्पाद के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया और न ही राशि खर्च की।
सितंबर 2018 में जैविक कृषि आदान सहायता अनुदान कार्यक्रम के लिए मिले सौ करोड़ रुपए से 14 जिले के लिए लक्ष्य तय किए गए, लेकिन जमीन पर कोई ठोस काम नहीं हुआ। विधानसभा में फुंदेलाल सिंह मार्को ने ध्यानाकर्षण के जरिए इस मुद्दे को उठाते हुए आरोप लगाया कि राशि की बंदरबांट की गई। कागजों में लीपापोती कर आदिवासियों के नाम पर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया। अन्य विधायकों ने भी आरोपों का समर्थन करते हुए जांच की बात उठाई।
सूत्रों का कहना है कि जब कृषि मंत्री सचिन यादव सदन में जवाब देने की तैयारी कर रहे थे, तब आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम दस्तावेज का पुलिंदा लेकर बैठक में आए थे और उन्होंने इसे बड़ा भ्रष्टाचार का मामला करार देते हुए जांच कराने की बात कही थी।
कृषि विभाग से ज्यादा तैयारी आदिम जाति कल्याण विभाग की थी, क्योंकि राशि उन्होंने ही दी थी। सूत्रों का कहना है कि एमपी एग्रो को खाद सहित अन्य सामग्री की आपूर्ति का जिम्मा सौंपा गया था। एग्रो ने निजी कंपनियों को ठेका दिया।
आरोप है कि जो सामग्री वितरित की गई वो बेहद घटिया थी। खाद में राख व मिट्टी की मात्रा अधिक होने और तरल पदार्थ में खाद की जगह पानी पाया गया, जो बेअसर रहा। मामले की गंभीरता को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कमेटी बनाकर जांच कराने के निर्देश दिए थे।
इसके मद्देनजर कृषि विभाग ने विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को, नीलांशु चतुर्वेदी, संजय उइके, योगेंद्र सिंह, प्रताप ग्रेवाल, सुनील सर्राफ और विजय राघवेंद्र सिंह के अलावा आयुक्त अनुसूचित जनजाति कल्याण व संचालक कृषि की समिति बना दी है। समिति पूरे मामले में अनियमितता की जांच करके रिपोर्ट विभाग को सौंपेगी।
किसानों को यह चीजें दी जानी थी – बायोलॉजिकल नाइट्रोजन, वर्मीकंपोस्टिंग, हरी खाद प्रयोग के लिए सहायता, तरल जैव उवर्रक सहायता, जैव पेस्टीसाइड, फॉरेस्ट रिच ऑर्गेनिक मेन्योर प्रयोग के लिए सहायता एवं प्रोसेसिंग, पैकिंग मटेरियल विथ पीजीएस लोगो।
इन जिलों में लागू हुई थी योजना – मंडला, बालाघाट, डिंडौरी, अनूपपुर, शहडोल, उमरिया, ग्वालियर, दतिया, श्योपुर, मुरैना, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, छिंदवाड़ा।