भोपाल- मध्यप्रदेश में प्रशासन के अनेक विभाग इस समय प्रभारियों के भरोसे चल रहे हैं। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अनेक तो एैसे पद हैं जिनको लम्बे समय तक रिक्त रहने का रिकार्ड बना चुके हैं?
जी हां यह वह सच्च्चाई है जिसको सुन एवं पढकर आपको आश्चर्य तो जरूर होगा। आपको हम बतला दें कि मध्यप्रदेश का सागर संभाग का आयुक्त पद लम्बे समय से रिक्त है और इतने लम्बे समय तक रिक्त रहने के कारण वह देश में एक रिकार्ड बना चुका है।
ज्ञात हो कि आयुक्त राधा कृष्ण माथुर 28 फरवरी 2016 को सेवा निवृत हो चुके हैं जिसके बाद आज भी यह पद रिक्त बना हुआ है। देखा जाये तो पंाच माह से अधिक समय से संभाग आयुक्त का पद रिक्त है और प्रदेश सरकार आज तक इस पद पर किसी अधिकारी की नियुक्ति नहीं कर पायी है।
वैसे आपको बतला दें कि सागर संभाग का दमोह जिला भी पूर्व में देश का लम्बे समय तक कलेक्ट्रर विहीन जिले के रूप में अपना नाम दर्ज कराते हुये चर्चाओं में रह चुका है। ज्ञात हो कि तत्कालीन कलेक्ट्रर स्वतंत्र कुमार सिंह को चुनाव आयोग के निर्देश की बात को प्रचारित करते हुये मंदसौर जिले की एक विधान सभा चुनाव सम्पन्न कराने हेतु स्थानांपन्न किया गया था।
स्वतंत्र कुमार सिंह गत 02 जून 2015 को दमोह से मंदसौर गये थे और 03 अगस्त 2015 को कलेक्ट्रर के रिक्त पद पर श्रीनिवास शर्मा को दमोह कलेक्ट्रर बनाया गया था। कहने का मतलब तीन माह तक कलेक्ट्रर विहीन जिला बना रहा था। जानकारों की माने तो इतने लम्बे समय तक संभाग आयुक्त विहीन में सागर तथा कलेक्ट्रर विहीन जिले में दमोह का नाम दर्ज हो चुका है।
यहां इस बात का उल्लेख कर देना आवश्यक हो जाता है कि सागर संभाग राजनैतिक दबदबा वाला क्षेत्र माना जाता है। यहां अगर प्रदेश के मंत्री मंडल में प्रतिनिधित्व करने वालों पर नजर डालें तो वित्त मंत्री जयंत कुमार मलैया,पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेन्द्र सिंह गृह मंत्री,कुसुम महदेले,ललिता यादव के नाम शामिल हैं।
किसी भी सरकार की योजनाओं को अमली जामा पहनाने में प्रशासन के अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसके लिये अलग-अलग विभागों हैं। प्रदेश में लम्बे समय से प्रभारियों के भरोसे एक दो नहीं अपितु शायद ही कोई विभाग हो न चल रहा हो यहां तक कि कदवर मंत्रियों के गृह जिले और नगर भी प्रभारियों के हवाले हैं।
विदित हो कि मध्यप्रदेश सरकार कई बर्षों से इस ओर ध्यान नहीं देकर अनेक महत्वपूर्ण विभागों को प्रभारियों के हवाले किये हुये है। अनेक जगहों पर तो एक अधिकारी के पास एक साथ दो तीन विभागों के प्रभार सौंप रखे हैं जिसके चलते कितना कार्य समय सीमा में सम्पन्न हो पा रहा होगा यह तो आप अंदाजा स्वयं लगा सकते हैं?
जानकार बतलाते हैं कि जहां कार्य प्रभावित होते हैं तो वहीं शासकीय कार्यों के बोझ के चलते अधिकारियों में नीरसता आने लगती है? बतलाया जाता है कि अनेक फाईलें तो इसी कारण अटकी पडी हैं जिसके चलते शासन की योजनओं को भले ही कागजों में अमली जामा पहना दिया जाता हो परन्तु जमीनी हकीकत तो कुछ ओर कहती दिखती है। सूत्रों की माने तो प्रदेश में सचिवालय से लेकर जिले के कार्यालयों तक के अनेक विभाग प्रभारियों के भरोसे चल रहे हैं?
रिपोर्ट:- @डा.एल.एन.वैष्णव