नई दिल्ली – भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी न्यायाधीश ने ही न्यायिक मानदंडों को पलीता लगाया हो। एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में मद्रास हाई कोर्ट के जज सीएस करनन ने स्वतः संज्ञान लेकर अपने ही ट्रांसफर आदेश पर रोक लगा दी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अनुशासन की धज्जियां उड़ाने वाले जस्टिस करनन से किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान का अधिकार छीन लिया। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जस्टिस करनन से न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज छीनने की भी छूट दे दी।
12 फरवरी, 2016 को प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने जस्टिस करनन का तबादला मद्रास हाई कोर्ट से कलकत्ता हाई कोर्ट कर दिया। जस्टिस करनन ने इसको प्रशासनिक आदेश बताते हुए स्वतः संज्ञान ले लिया और सोमवार को खुद अपने ट्रांसफर पर रोक लगा दी। इसके मद्देनजर मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने तत्काल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से पेश केके वेणुगोपाल और निखिल नायर ने न्यायमूर्ति जेएस खेहर व आर. भानुमति से इस मामले में उचित आदेश देने का आग्रह किया। कोर्ट ने जस्टिस करनन से न्यायिक अधिकार छीन लिया।
कोर्ट ने कहा कि जस्टिस करनन सिर्फ उन्ही मामलों में आदेश दे सकते हैं, जो उन्हें सुनवाई के लिए आवंटित किए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर आदेश के बाद जस्टिस करनन द्वारा जारी उन सभी आदेशों पर भी रोक लगा दी है, जो उन्होंने स्वतः संज्ञान लेकर जारी किए थे।
[box type=”shadow” ]मेरा तबादला कलकत्ता हाई कोर्ट किए जाने के देश के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को मैं स्थगित करता हूं। सीजेआई इस बारे में 29 अप्रैल तक किसी अधीनस्थ के माध्यम से जवाब दाखिल करें। तब तक यह अंतरिम आदेश लागू रहेगा। – जस्टिस सीएस करनन, जज मद्रास हाई कोर्ट [/box]
जस्टिस करनन ने कहा, ‘दलित होने के कारण मेरे साथ ऐसा किया जा रहा है। मुझे निशाना बनाया गया क्योंकि मैं दलित हूं। मैं शर्मिंदा हूं कि मेरा जन्म भारत में हुआ है। मैं ऐसे देश में जाना चाहता हूं जहां जातिप्रथा, भेदभाव न हो।’ करनन ने यह भी कहा कि वह जस्टिस खेहर व जस्टिस भानुमति के खिलाफ अजा-जजा अत्याचार निरोधक कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश देंगे।
[box type=”shadow” ]जस्टिस करनन किसी मामले में स्वतः संज्ञान लेकर आदेश नहीं दे सकते। जस्टिस करनन को न्यायिक या प्रशासनिक कामकाज देना या न देना मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर निर्भर करेगा। वे चाहें तो उन्हें आगे कामकाज दें और चाहें तो न दें। – सुप्रीम कोर्ट की पीठ[/box]
सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष 11 मई को जस्टिस करनन द्वारा जारी आदेश पर रोक लगा दी थी। इसमें करनन ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल के निचली अदालतों में नियुक्तियों के अधिकार को कमजोर कर दिया था। करनन ने जस्टिस कौल के खिलाफ अजा-जजा अत्याचार (निरोधक) कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराने की धमकी भी दी थी।
जस्टिस करनन ने अपने तबादले पर रोक के आदेश की प्रति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कानून मंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, रामविलास पासवान, मायावती, राष्ट्रीय अजा-जजा आयोग को भी भेजी है।
यह पहला मौका नहीं है, जब जस्टिस करनन विवादों में आए हैं। इससे पहले भी उन्होंने अपने ही हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निचली अदालत में नियुक्ति को लेकर जारी आदेश पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू कर दी थी। गत वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में भी रोक लगाई थी।