आगर मालवा – जिले के सुसनेर में एक मंदिर ही गायब हो गया यह कोई ईश्वरीय चमत्कार नहीं है। जी हाँ सुसनेर के राजस्व रिकार्ड में दर्ज एक शासकीय महालक्ष्मी का मंदिर गायब हो चूका है साथ ही मंदिर में स्थापित बेशकीमती महालक्ष्मी माता की मूर्ती भी गायब है। मंदिर के नाम पर दर्ज 42 बीघा जमींन पर भी लोगो ने अवैध कब्ज़ा कर रखा है वहीं जिस स्थान पर कभी मंदिर हुआ करता था वहां पर अब मकान एवं दुकान बना ली गई है। यह भी तब हुआ है जबकि राजस्व रिकार्ड में कलेक्टर को ही इस मंदिर का प्रशासक बताया गया है।
सुसनेर नगर के शुक्रवारिया बाजार में स्थित एक शासकीय देवी मंदिर तथा मंदिर के अंदर विराजित महालक्ष्मी माता की प्रतिमा का 45 वर्षो से कोई पता नहीं चल रहा है। प्रशासन के रिकार्ड में तो मंदिर दर्ज है और मंदिर के नाम पर समीपस्थ ग्राम मैना में 42 बीघा जमीन भी दर्ज है किन्तु न तो मंदिर अस्तित्व में है और न ही मंदिर में विराजित महालक्ष्मी जी की प्रतिमा का कोई पता है। वरिष्ठ समाजसेवी सीताराम शर्मा ने बताया कि 1970 के दशक तक शुक्रवारिया बाजार के हनुमान छत्री चौक क्षेत्र में महालक्ष्मी का मंदिर था और उस मंदिर में उन्होंने पुजा अर्चना भी की है और तो और इस मंदिर के अंदर कई बार सामाजिक संगठनो की बैठके भी हुआ करती थी।
इस बाबत पिछले कई सालो से शिकायत कर रहे क्षेत्र के सामाजिक संगठनो ने अब एक बार फिर एकत्रित होकर मुख्यमंत्री के नाम तहसीलदार को ज्ञापन दिया है जिसमें अतिक्रमण हटाने और जल्द से जल्द शासकीय मंदिर स्थापित कर प्रतिमाएं वापस लाने की मांग की है मंदिर और मंदिर के नाम दर्ज 42 बीघा जमींन का उल्लेख राजस्व विभागों के दस्तावेजो में भी है और इस सम्बन्ध में स्थानीय निवासियों द्वारा सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत भी की गई थी पर स्थानीय राजस्व अधिकारियों की जादूगरी के चलते ये शिकायते बिना निराकरण के ही बंद करा दी गई है।
03 अप्रैल 2013 में सामाजिक संगठनों द्वारा मामला उठाने के बाद प्रशासन ने मामले की जाँच तहसीलदार को सौंपी, किन्तु दो सालों में भी यह पता नहीं चल पाया की मंदिर की प्रतिमा आखिरकार गई कहाँ और मंदिर से सलग्न भूमि पर भी अतिक्रमण करने वालों को अभी तक सिर्फ नोटिस थमाए गए है।
इस मामले में तहसीलदार पीएल मालवीय का कहना है कि मामला सामने आया है जाँच उनके पास लंबित है और उनके द्वारा अतिक्रमणकारियों को नोटिस भी जारी किए गए है शीघ्र ही मंदिर एवं मूर्ति का पता लगाया जाएगा।
जिस मंदिर का प्रशासक जिले का कलेक्टर हो और वह मंदिर अपना अस्तित्व ही खो दे तो बात कुछ हजम नहीं होती शासकीय दस्तावेजो में दर्ज एक मंदिर जो प्रशासनिक लापरवाही या अनदेखी का शिकार हो गया इस मंदिर और उसकी प्रतिमा पिछले 45 सालों से भी अधिक समय से गायब है और मामला सामने आने के दो साल बाद भी प्रशासन न मंदिर की भूमि को अतिक्रमण कर्ताओं से मुक्त करा पाया है और ना ही मूर्तियों का पता लगा पाया है। मगर नगर वासियों ने भी मंदिर को पुन: अपने अस्तित्व में लाने की ठान ली है।