महामृत्युंजय भंग करने में अकाल मृत्यु तो टलती ही है। आयोग्यता भी प्राप्त होती है, स्नान करते समय शरी पर लोटे पानी डालते वक्त इस इस मंत्र का जाप करने में स्वस्थय लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जाप भी किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए, निम्मलिखित स्थितियों का जाप कराया जाता है।
– ज्योतिष के अनुसार यजि जन्म, मास गोचर और दशा, अंर्तदशा, स्थूलकला आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
– किसी महारोग से कोई पीडि़त होने पर,
– जमीन-जायदाद के बटवारे की संभावना हो,
– हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों,
– राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो
– मेलापिकमें नाड़ी दोष, षडक आदि आता हो
– मेलापिक में नाड़ीदोष,षडष्टक आदि आता हो,
– मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो,
– मनुष्यों में परस्पर घारे कलेश हो रहा हो,
– त्रिदोषवश रोग हा रहे हों,
– महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना परम फलदायी है, महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं, काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है, जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है, यहां हमने आपकी सुविधा के लिए संस्कृत में जप विधि, विभिन्न यंत्र-मंत्र, जप में सावधानियां, स्त्रोत आदि उपलब्ध कराए है इस प्रकार आप यहां इस अदभुत जप के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते है।
महामृत्युंजय जपविधी-
कृतनित्यक्रियो जपकर्ता स्वासने पांगसुख उदहसुखो वा उपविश्य घृतरूद्राक्षभस्मत्रिपुण्ड्रः आचम्य प्राणानायाम देशकालौ संकीत्र्य मम वा यज्ञमानस्य मंत्रस्य अमुक संख्यापरिमितं जपमंहकरिष्ये वा कारयिष्य. इति प्रात्यहिसंकल्पः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः ॐ गणपत्ये नमःॐ इष्टदेवतायै नमः
इति नत्वा यथोक्तविधिना भूतशुद्धिं प्राण प्रतिष्ठां च कुर्यात
भूतशुद्धिः विनियोग- ॐ तत्सदद्येत्यादि मम अमुक प्रयोगसिद्धयर्थ भूतशुद्धि प्राण प्रतिष्ठां च करिष्ये,ॐ आधारशक्ति कमलासनायनमःइत्यासनं सम्पूज्य. पृथ्वीति मंत्रस्य मेरूपृष्ठ आसने विनियोगः
आसन-ॐ पृथ्वि त्वया घृता लोका देवि त्वं विष्णुता घृता.
त्वं च धारय मां देवि पविंत्र कुरू चासनम
गन्धपुष्पादिना पृथ्वीं सम्पूजस्य कमलासने भूतशुद्धि कुर्यात
अन्यत्र कामनोभदेन. अन्यासनेऽपि कुर्यात
तत्र क्रमः पादादिजानुपर्यतं पृथ्वीस्थानं तच्च्तुरस्त्र पीतवर्ण ब्रहादेवतं वमिति बीजयुत्तंहृ ध्यायेत् जान्वादिनाभिपर्यन्तसत्थानं
तच्र्चार्द्धचंद्रकारं विष्णुदैवतं लमिति बीजयुक्त ध्हृाायेत