मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति में आज एक नया ट्विस्ट देखने को मिला। 80 घंटे तक सीएम रहने के बाद देवेंद्र फडणवीस को अपने पद से इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। 24 नवंबर की सुबह जिस अंदाज में अमित शाह ने मास्टरस्ट्रोक खेलकर देश को चौंका दिया, उसके ढाई दिन बाद ही फडणवीस के इस्तीफे ने भाजपा के जोश को पूरी तरह ठंडा कर दिया। इस पूरे सियासी घटनाक्रम में अगर कोई विजेता की तरह उभरकर सामने आया है तो वो नाम है शरद पवार। महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी पवार ने बता दिया कि इस खेल में उन्हें मात देना कतई आसान नहीं है। शुरू से आखिर तक उन्होंने जबरदस्त सस्पेंस बनाए रखा, लेकिन जब बात हद से ज्यादा बिगड़ गई तो अपनी असली ताकत दिखा दी।
जिस वक्त पवार शिवसेना-कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की मुहिम से जुड़े थे, उसी दौरान उनके कई बयानों ने सियासी पंडितों को भी हैरान कर दिया। उनके कई निर्णय से यह साफ संदेश गया था कि उनका भाजपा के प्रति भी एक सॉफ्ट कॉर्नर है। सरकार गठन की चर्चाओं के बीच सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद उन्होंने कह दिया कि शिवसेना के साथ सरकार बनाने के मुद्दे पर कोई भी बात नहीं हुई। खुद शिवसेना भी इससे हैरान रह गई। संजय राउत तक को कहना पड़ा कि शरद पवार को समझने के लिए 100 जन्म लेने पड़ेंगे।
24 नवंबर की सुबह खबर आई कि अजित पवार ने एनसीपी विधायकों संग भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। उन्हें डिप्टी सीएम का पद मिला, फडणवीस सीएम बने। इसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति में नया तूफान आया। कयासों का बाजार इस कदर गर्म हुआ कि उंगली शरद पवार की तरफ उठने लगीं। इससे बेपरवाह पवार अपनी पार्टी को एकजुट करने में जुट गए। अपनी पार्टी एनसीपी के 90 फीसदी विधायकों को साधने के साथ ही अजित पवार को विधायक दल का नेता पद से हटा कर नई सरकार के गठन की चाबी फिर से शरद पवार ने अपने हाथों में ले ली।
जब अजित पवार की अगुवाई में एनसीपी का एक धड़ा भाजपा के साथ गया तो यह शरद पवार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया। एक के बाद एक बैठकों का दौर शुरू हुआ। जो विधायक अजित पवार के साथ बताए जा रहे थे, एक के बाद एक शरद पवार के पास लौटने लगे थे। आखिर में अजित पवार अकेले ही बचे रह गए। बावजूद इसके उन्हें मनाने की पुरजोर कोशिश होती रही। विधायक दल के नए नेता जयंत पाटिल, प्रफुल्ल पटेल जैसे कई बड़े नेता उनसे मुलाकात कर उन्हें मनाने की कोशिशों में आखिर तक जुटे रहे। ये कोशिशें रंग भी लाईं।
राजनीति करने का शरद पवार का अपना ही अंदाज है। कहा जाता है कि उनकी थाह लेना आसान नहीं है। जब अजित पवार एनसीपी को अपना बता रहे थे तब भी पवार ने आपा नहीं खोया। अजित को पार्टी से बाहर करने की मांग उठने लगी थी, लेकिन शरद पवार ने सधे अंदाज में कदम बढ़ाए। भतीजे अजित के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की। इसके पीछे की वजह ये है कि पवार अच्छी तरह जानते हैं कि अजित पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में अपना कद और प्रभाव है। शरद के बाद अजित ही पार्टी में नंबर दो हैं। कुछ मुद्दों पर नाराजगी जरूर है लेकिन मामला परिवार का है। शरद पवार ने न सिर्फ पार्टी को बचाया बल्कि परिवार को भी बचा लिया।
मुंबई के होटल ग्रांड हयात में शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी के 162 विधायक जुटे और यहां पवार अलग अंदाज में ही दिखे। विधायकों को संबोधित करते हुए उन्होंने बिना नाम लिए भाजपा को सख्त चेतावनी दे डाली। पवार ने कहा- महाराष्ट्र को गोवा और मणिपुर समझने की भूल न की जाए। फूंक-फूंककर बयान देने वाले पवार का ऐसा आक्रामक अंदाज कम ही देखने को मिलता है।