भोपाल : नर्मदा नदी पर बन रही निजीकृत महेश्वर परियोजना के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में गत राष्ट्रिय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार व् राज्य सरकार को आदेश दिया है कि परियोजना प्रभावितों का सम्पूर्ण पुनर्वास किये बगैर महेश्वर बांध में गेट नहीं बंद किये जा सकते हैं और पानी नहीं भरा जा सकता है. नर्मदा बचाओ आन्दोलन इस आदेश का स्वागत करता है, इस आदेश से महेश्वर बांध प्रभावित 60,000 प्रभावितों की बड़ी राहत मिली है.
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन परियोजनाकर्ता ने सन 2012 में गलत जानकारी देकर पर्यावरण मंत्रालय से महेश्वर बांध में 154 मीटर तक पानी भरने की अनुमति ले ली थी. महेश्वर बांध प्रभावित श्री अंतर सिंह और श्री संजय निगम ने राष्ट्रिय ग्रीन ट्रिब्यूनल में इस अनुमति को चुनौती दी थी. ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद गत 28 अक्टूबर, 2015 को स्पष्ट आदेश दिया है कि जब तक सम्पूर्ण पुनर्वास पूरा नहीं हो जाता महेश्वर बांध में पानी नहीं भरा जा सकता है और पुनर्वास पूरा होने के बाद गेट बंद करने के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल से अनुमति लेनी होगी.
अपने आदेश में न्यायाधीश श्री यू. डी. साल्वी एवं विशेषज्ञ सदस्य श्री रंजन चटर्जी की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि : “मुख्य मुद्दा सम्बंधित परियोजना से जुड़े पुनर्वास के पूरा होने का है. दिनांक 1 मई 2001 को दी गयी पर्यावरणीय मंजूरी के अनुसार पुनर्वास का काम बांध निर्माण की प्रगति के साथ साथ चलेगा. वर्तमान में निर्माण का कार्य पूरा हो गया है परन्तु पुनर्वास के काम में निर्माण के साथ आवश्यक गति नहीं रखी गयी है. पुनर्वास का काम न होने का कारण परियोजनाकर्ता द्वारा जिम्मेदार एजेंसी (प्रतिवादी न. 4) को पैसा न देना है. हम पैसा उपलब्ध कराने के मुद्दे पर न जाते हुए हम निश्चित रूप से हम अपना आदेश पुनः दोहराना चाहते हैं कि पुनर्वास पूरा किये बगैर बांध के गेट बंद या गिराए नहीं जायेंगे जिससे डूब आये.
हम इस केस को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करते हैं. पक्षों को छूट दी जाती है कि पुनर्वास का कार्य पूरा हो जाने के बाद वो बांध के गेट बंद करने की अर्जी कर सकते है.”
प्रभावित याचिकाकर्ताओं की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री संजय पारीख ने कहा कि परियोजनाकर्ता लगातार भू-अर्जन और पुनर्वास के लिए आवश्यक राशि उपलब्ध कराने में असफल रहा है. श्री पारीख ने ट्रिब्यूनल को यह भी बताया कि 154 मीटर तक पानी भरने का आदेश यह झूठ कहकर लिया गया था कि इस ऊँचाई पर 120 मेगावाट बिजली बन सकती है जबकि ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत हाल के दस्तावेजों से स्पष्ट है कि टरबाइन बनाने वाली कंपनी बी. एच. ई. एल. ने स्पष्ट किया है कि पूर्ण जलाशय स्तर 162.26 मीटर के पहले बिजली बनाना संभव नहीं है. श्री पारीख ने यह भी बताया कि 1 मई 2001 को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गयी मंजूरी के अनुसार भी सम्पूर्ण पुनर्वास बांध के निर्माण के पहले पूरा होना जरुरी है. अतः ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट आदेश दिया कि पहले पूरा पुनर्वास करो और उसके बाद ही बांध के गेट बंद किये जा सकते हैं.
नये कानून से करना होगा भू-अर्जन :
महेश्वर परियोजना से 61 गावों के 10,000 परिवार (60,000 व्यक्ति) प्रभावित हो रहे है. सरकार के अनुसार वर्तमान में भू-अर्जन व् पुनर्वास पर 979 करोड़ रूपये खर्च होंगे, लेकिन संसद द्वारा पारित नये भू-अर्जन कानून (भूमि अर्जन, पुनर्वसन और पुनार्व्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013) की धारा 24(2) से यह स्पष्ट है कि जिन प्रकरणों में अवार्ड नहीं पारित हुआ है वहां यदि सरकार चाहती है तो नये कानून के अनुसार भू-अर्जन कर सकती है या फिर अवार्ड पारित किया गया है लेकिन अवार्ड के अंतर्गत आने वाले अधितर प्रभावित व्यक्तियों, का मुआवजा बैंक खाते में नहीं डाला गया है,
वहां मुआवजे का आंकलन नये अधिनियम के अनुसार होगा. महेश्वर प्रभावित क्षेत्र के अधिकांश प्रभावितों के प्रकरण में ना तो अवार्ड पारित किया गया है और न ही किसी प्रभावित के बैंक खाते में मुआवजा का पैसा जमा किया गया है. अतः अब सम्पूर्ण भू-अर्जन नये कानून के अनुसार करना होगा, जिसका खर्च 1500 से 2000 करोड़ रूपये तक आयेगा.
नर्मदा आन्दोलन ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश का स्वागत करता है और मांग करता है कि इस आदेश के बाद सरकार अब नये भू-अर्जन कानून के अनुसार प्रभावितों का भू-अर्जन कर सम्पूर्ण पुनर्वास करे.