मकर संक्रांति को अलग-अलग प्रांतों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत में जहां इसे मकर संक्रांति (Makar Sankranti) कहा जाता है। वहीं, असम में इस दिन बिहू (Bihu) और दक्षिण भारत में इस दिन पोंगल (Pongal) मनाया जाता है। मकर संक्रांति का त्योहार पौष माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति का त्योहार इस साल 14 और 15 जनवरी यानी दो दिन मनाया जा रहा है। स्थान आधारित पंचांग और पुण्यकाल के कारण पर्व ऐसी स्थिति बनी है। इसलिए हम उस दिन के आधार पर शुभ मुहूर्त बता रहे हैं।
जानें शुभ मुहूर्त:
14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश दोपहर 02 बजकर 43 मिनट पर होगा। ऐसे में 14 जनवरी को सूर्य देव की पूजा सुबह 08 बजकर 43 मिनट के बाद प्रारंभ कर सकते हैं। मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी, शनिवार की दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। 15 जनवरी का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 10 मिनट से दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक का है। जबकि 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति का पुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। मकर संक्रांति का महापुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से शाम 04 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
क्या है पूजा विधि:
इस दिन सूर्य भगवान उत्तरायण होते हैं। माना जाता है कि इस दिन से देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं। साथ ही, घरों में मांगलिक कार्य भी संपन्न होने आरंभ हो जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन मान्यता है कि भगवान सूर्य की अराधना होती है। सूर्यदेव को जल, लाल फूल, लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, अक्षत, सुपारी और दक्षिणा अर्पित की जाती है। पूजा के उपरांत लोग अपनी इच्छा से दान-दक्षिणा करते हैं। इस दिन खिचड़ी का दान भी विशेष महत्व रखता है।
विभिन्न नामों से जाना जाता है:
उत्तर भारत का मशहूर त्योहार मकर संक्रांति कई नामों से अलग-अलग प्रांतों में जाना जाता है। बिहार में जहां इसे तिल संक्रांत या दही-चिवड़ा कहते हैं, वहीं असम में बिहू के नाम से ये त्योहार प्रसिद्ध है। इसके अलावा, दक्षिण भारत में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन कई जगह खिचड़ी खाने का रिवाज है तो कहीं-कहीं नहाते वक्त पानी में तिल और सरसो का तेल मिला दिया जाता है। इतना ही नहीं, इस दिन बिहार-यूपी में दही-चिवड़ा खाने की भी मान्यता है।