इन दिनों पूरे देश में एक अजीब क़िस्म का उन्माद छाया हुआ दिखाई दे रहा है। जिन युवाओं पर अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का ज़िम्मा है देश के वही ‘कर्णधार’ इस समय न केवल भ्रमित हैं बल्कि ‘धर्मोन्माद’ व तथाकथित राष्ट्रवाद के गढ़े गए कुचक्र में उलझ कर अपने जीवन व भविष्य को अंधकार में धकेल रहे हैं। प्रत्येक वर्ष दो करोड़ बेरोज़गारों के लिए रोज़गार सृजित करने का सपना दिखा कर 2014 में सत्ता आने के बाद भले ही अब तक रोज़गार देने का अपना वादा पूरा न किया गया हो परन्तु देश के शायद दो करोड़ से ज़्यादा युवाओं को धर्म व तथाकथित राष्ट्रवाद के नाम पर उन्मादी बना पाने में ज़रूर कामयाबी हासिल हो गयी है।
देश के ग़द्दार कौन हैं,राष्ट्रविरोधी कौन है,पाकिस्तान की भाषा कौन बोल रहा है,किसके बोलने से पाकिस्तान को लाभ मिल रहा है,कौन टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य है,कौन ‘अर्बन नक्सल’ है, कौन हिन्दू विरोधी है कौन भगवान राम का विरोधी है,यह सब वर्तमान सत्ताधारियों द्वारा ख़ुद ही तय किया जा रहा है। और लांछन बाज़ी के इसी ख़तरनाक खेल में देश का भविष्य समझा जाने वाला युवा अपने असली मक़सद व भविष्य निर्माण की अपनी सकारत्मक योजनाओं से भटककर हत्या,नफ़रत,विद्वेष,अपराध तथा साम्प्रदायिकता की आग में झुलसने लगा है। एक साथ खेलने कूदने,पढ़ने लिखने,खाने-पीने व एक दूसरे के सुख दुःख में शरीक होने वाला वह संयुक्त भारतीय समाज जिसे संगठित देखकर ही इस महान देश को ‘अनेकता में एकता ‘ रखने वाला देश कहा जाता है उसी देश की एकता को चोट पहुँचाने की एक बड़ी व सुनियोजित साज़िश रची जा रही है।
सरकार के किसी भी फ़ैसले को यदि लोकतान्त्रिक देश के किसी भी छोटे या बड़े वर्ग द्वारा पसंद नहीं किया जा रहा या इस पर संदेह किया जा रहा है तो सत्ता में बैठे लोगों का यह कर्तव्य है कि वह देश के लोगों के संदेह को दूर करें। जनाकांक्षाओं के अनुरूप ही कोई क़ानून बनाएं या संशोधित करें। विपक्ष या आलोचकों को अपने विश्वास में ले। लोकतंत्र कभी भी इस बात की इजाज़त नहीं देता की आप अपनी ही बात को सही ठहरने के लिए पूरे के पूरे समुदाय,किसी संस्था अथवा संस्थान अथवा किसी संगठन या राजनैतिक दल को ही राष्ट्रविरोधी,पाक परस्त या राष्ट्र विभाजक बताने लगें ? परन्तु दुर्भाग्यवश देश के चतुर व शातिर नेताओं द्वारा यही कुचक्र रचा जा रहा है।
इस कुचक्र में उलझ कर अब देश का युवा रोज़गार मांगना भूल गया है।अब उसके हाथों में नौकरी का नियुक्ति पत्र थमाने के बजाए ‘ग़द्दारों ‘ व ‘राष्ट्रविरोधी समूहों’ की स्वघोषित सूची रख दी गयी है। और केंद्रीय मंत्री व सांसद स्तर के लोग अपने समर्थक युवाओं का आवाह्न कर रहे हैं कि -‘देश के ग़द्दारों को-गोली मारो सालों को’ । ज़रा सोचिये जब हमारे मार्गदर्शक व युवाओं का प्रेरणा स्रोत समझा जाने वाला कोई नेता सार्वजनिक रूप से मंच से और वह भी चुनावी सभाओं में जुलूसों में ऐसे नारे लगवाएगा और युवाओं को गोली चलाने व हत्या करने जैसे अपराध के लिए उकसाएगा तो इस देश का विशेषकर युवाओं का भविष्य क्या होने वाला है।
दरअसल यह दौर युवाओं से भी अधिक अभिभावकों के लिए चिंतन करने का दौर है। माता-पिता व अभिभावकों को किसी भी दल या संगठन के जो भी नेता अपने समर्थकों को उकसा रहे हैं या समाज को किसी भी रूप में विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं एक बार उन नेताओं के परिवार के सदस्यों पर नज़र ज़रूर डालनी चाहिए। उनके राजनैतिक व व्यक्तिगत संबंधों को भी देखना चाहिए। निश्चित रूप से हर धर्म व समुदाय के लोगों से इनके मधुर संबंध भी दिखाई देंगे। उन्माद को हवा देने वाले ऐसे नेताओं के घरों में भरपूर धन दौलत,ख़ुशहाली दिखाई देगी।
परिवार के अधिकांश लोग ऊँचे व अच्छे पदों पर विराजमान मिलेंगे। इनके बच्चे विदेशों में शिक्षा लेते या देश के ही उच्च श्रेणी के मंहगे विद्यालयों में पढ़ते दिखाई देंगे। इनके ख़ानदान के लोग कहीं भी नौकरी की लाइन में लगे हुए या नौकरी हेतु फ़ार्म भरते नज़र नहीं आएँगे। इन्होंने उन्माद व नफ़रत की आग में डूबे युवाओं को रोज़गार तो नहीं दिया परन्तु वक़्त बिताने के लिए वाट्सऐप व अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से झूठ व अफ़वाह फैला कर समाज को तोड़ने के काम में ज़रूर लगा दिया। पूरे देश में अब तक मॉब लिंचिंग की जितनी भी घटनाएं हुई हैं या हो रही हैं उनमें शामिल युवा वही बेरोज़गार है जिसे किसी विभाग में नौकरी का नियुक्ति पत्र मिलना चाहिए था परन्तु उन्हें अदालतों से सम्मन या वारण्ट मिल रहे हैं। क्या इन युवाओं को भड़का व उकसाकर इनकी ज़िन्दिगी बरबाद करने वाला कोई नेता इन युवाओं का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने की कोई ज़िम्मेदारी लेगा ?
देश के निष्पक्ष व प्रगतिशील सोच रखने वालों को यह भी सोचना चाहिए कि एक युवक का भविष्य चौपट होने से किसी एक व्यक्ति मात्र का ही भविष्य अंधकारमय नहीं होता बल्कि इसका दुष्प्रभाव आने वाली कई पीढ़ियों को भी झेलना पड़ता है। स्वयं माँ बाप ही सबसे पहले अपने लाडले बेटे के अपराधी बनने का ख़मियाज़ा भुगतते हैं। यह शातिर दिमाग़ समाज व राष्ट्रविभाजक नेता बड़ी ही चतुराई से ऐसे अपराधियों को कभी फूल मालाएं पहना कर तो कभी उसके साथ कोर्ट कचेहरी में भीड़ लगाकर या फिर क़ानूनी सहायता में थोड़ी बहुत मदद कर यह सन्देश देते हैं कि ‘युवाओं तुम हत्यारे बनो-हम तुम्हारे साथ हैं।’
नतीजतन इस देश में अफ़राज़ुल जैसे 48 साल के ग़रीब मज़दूर की लव जिहाद का नाम लेते हुए हत्या कर दी जाती है और हत्यारा सनकी ‘शम्भू रैगर’ रातोंरात धर्मोन्मादियों के लिए आदर्श युवा बन जाता है? हत्यारा ख़ुद तो जेल चला जाता है परन्तु उसी हत्यारे के समर्थक अदालत से लेकर बाज़ारों तक में अपने नेताओं के इशारे पर ख़ूब उत्पात मचाते हैं। यहाँ तक कि धार्मिक जुलूस में उसी हत्यारे को महिमामंडित करने वाली झांकी निकाल कर उसे महिमामंडित तो किया ही जाता है साथ साथ दूसरे युवाओं को भी यह सन्देश दिया जाता है कि यदि तुमने भी ऐसे ही किसी की हत्या की तो तुम्हारा भी इसी प्रकार महिमामंडन किया जाएगा। भीड़ तुम्हारे भी साथ होगी और शोहरत मुफ़्त में हासिल होगी।
अफ़राज़ुल ‘लव जिहाद’ की भेंट चढ़ गया और हत्यारा शंभु रैगर धर्मोन्मादियों का आदर्श बन गया। इस बीच पिछले दिनों’ केंद्र सरकार की ओर से संसद में यह कहा गया कि ‘लव जिहाद’ को वर्तमान क़ानूनों के तहत परिभाषित नहीं किया जा सकता और न ही केंद्रीय एजेंसियों के सामने ऐसा कोई मामला आया है। संविधान के अनुच्छेद 25 का ज़िक्र करते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी.किशन रेड्डी ने संसद में कहा कि अनुच्छेद 25 हमें किसी भी धर्म का प्रचार करने और उसे मानने की आज़ादी देता है। फिर क्या वजह है कि अफ़राज़ुल की हत्या कर दी गयी? क्या संसद में गृह राज्य मंत्री के ‘लव जिहाद’ संबंधी बयान के बाद उन लोगों के विरुद्ध कोई कार्रवाई होगी जिन्होंने टी वी स्टूडियो में बैठकर लव जिहाद जैसा झूठा हौव्वा खड़ा कर शंभु रैगर जैसे उन्मादी व हत्यारे पैदा किये जिसने एक बेगुनाह ग़रीब मज़दूर की नृशंस हत्या की व उसे ज़िंदा जला डाला? देशवासियों को चाहिए की वह सत्ता के भूखे नेताओं की कुटिल साज़िश से अपने बच्चों को बचाएं तथा अपने नौनिहाल को योग्य,कुशल व सम्मानित नागरिक बनाएं उन्मादी,नफ़रत करने वाला या हत्यारा नहीं।
:-निर्मल रानी