नवादा-गया जिले के इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के बांके बाजार इलाके में आज काफी गहमा-गहमी है क्योंकि आज यहाँ हिन्दुस्तानी अवाम पार्टी यानी ‘हम’ के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की रैली थी।
अंदरूनी इलाकों से बड़ी संख्या में ग्रामीण उन्हें सुनने पहुंचे थे। भीड़ में मौजूद उनके एक समर्थक का कहना था, “हमने ही उनसे इमामगंज सीट से लड़ने को कहा था। इसलिए उन्होंने आखिरी वक्त में यहाँ से अपना नामांकन दाखिल किया था।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) में इस समय बिहार की दो दलित पार्टियां शामिल हैं। रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और जीतनराम मांझी की ‘हम’।
हालांकि दलित और महादलित की हाल ही में शुरू हुई राजनीति में एनडीए के दोनों घटकों में कौनसा बीस है यह कहा नहीं जा सकता। रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को बीजेपी ने मांझी के मुकाबले ज्यादा सीटें दी हैं, मगर इमामगंज आकर इतना तो समझ आता है कि महादलितों को मांझी के रूप में एक नया नेता मिला है।
एक दूसरे समर्थक का कहना है, “कुर्सी दी और फिर खींच लिया। कितना बड़ा अपमान किया महादलितों का। महादलित शब्द का ईजाद खुद नीतीश कुमार ने ही किया था, जब उन्होंने अनुसूचित जाति में दुसाध को छोड़कर बाकी सबको महादलित का विशेष दर्जा देने की घोषणा की थी।
राजनीतिक हलकों में ऐसा कहा जा रहा है कि यह सबकुछ नीतीश कुमार ने ‘महादलितों’ में अपनी पैठ बनाने की नीयत से किया था। मगर जीतन राम मांझी ने नीतीश के दांव को नीतीश पर ही चला दिया। आज जीतन राम मांझी अपनी जाति के हीरो बन चुके हैं।
रैली से अपने घर लौट रहे एक युवक ने कहा कि वो कभी किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े रहे। यह पहला मौका है जब वो किसी पार्टी में बतौर सदस्य दाखिल हुए हैं। वो कहते हैं, “मुझे कभी भी किसी राजनीतिक दल के प्रति कोई आकर्षण नहीं रहा। मैं बस अपनी पढ़ाई में ही लगा रहा।
मगर जीतन राम मांझी के साथ जो कुछ हुआ उससे मुझे लगा कि यह मेरी जाति का अपमान हुआ है। और अब मैं उन्हें जिताने के लिए मेहनत कर रहा हूँ। वैसे सवाल उठता है कि जीतनराम मांझी ने मखदूमपुर की सीट से लड़ते हुए इमामगंज सीट को क्यों चुना?
उनके करीबी लोगों का कहना है कि वो विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और जनता दल (युनाइटेड) के नेता उदय नारायण चौधरी से बदला लेना चाहते हैं क्योंकि चौधरी ने ही उन्हें और उनका साथ दे रहे बागी विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी थी। मगर क्षेत्र की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों को लगता है कि ऐसा मांझी ने इसलिए किया है क्योंकि उन्हें मखदूमपुर सीट पर इस बार कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ सकता है। इमामगंज में मुसहर और दुसाध (पासवान) जाति के वोट काफी मायने रखते हैं।
इस बार राम विलास पासवान एनडीए में मांझी के साझीदार हैं। इसलिए मांझी को भरोसा है कि उन्हें अगर इन दोनों जातियों का वोट मिल जाता है तो उदय नारायण चौधरी को वो मुश्किल में डाल सकते हैं। हालांकि इस सीट पर लगातार जीत दर्ज करवाते रहने वाले चौधरी उतने भी कच्चे राजनीतिज्ञ नहीं हैं।
उन्हें हराना भी मांझी के लिए इतना आसान काम नहीं रहेगा। लेकिन पासवान और मुसहरों की निर्णायक भूमिका मांझी के लिए वरदान भी साबित हो सकती है। मगर यह तो वक्त ही बताएगा कि मांझी ने इमामगंज से भी लड़ने का जो फैसला किया है वो कितना रंग लाता है।