नई दिल्ली- महिला दिवस के मौके पर जेएनयू कैंपस में कुछ छात्रों ने मनुस्मृति में महिलाओं के खिलाफ लिखी गई बातों के विरोध में उसके कुछ पन्नों को जलाया था। इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने पांच छात्रों को प्रॉक्टर दफ्तर में पेश होने के लिए कहा था।
सोमवार को छात्रों ने प्रॉक्टर दफ्तर में जाकर अपना पक्ष रखा। इन छात्रों में शामिल प्रदीप नरवाल दिल्ली से बाहर होने की वजह से अपना पक्ष नहीं रख पाए।कार्यक्रम में शामिल रहे एन. साई बालाजी ने बताया कि सोमवार को जब में प्रॉक्टर दफ्तर पहुंचा था तो प्रॉक्टर की कमेटी ने मुझे से 8 मार्च के कार्यक्रम के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि मैंने विस्तार से कार्यक्रम के बारे में बताया जैसे कार्यक्रम कहां और कितने बजे आयोजित हुआ था और इसमें कितने लोग शामिल हुए थे।
इसके बाद कमेटी ने पूछा कि क्या मनुस्मृति को जलाना सही है। इस पर बालाजी ने कहा कि हमने मनुस्मृति के सिर्फ उन्हीं पन्नों को जलाया जिनमें महिलाओं के लिए गलत बातें लिखी हुई थीं। हमने सांकेतिक रूप से इसे जलाया था।
स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज (एसआईएस) के काउंसलर बालाजी ने कहा कि यह कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है बल्कि एक सामाजिक पाठ्य है। इसके अलावा भीमराव अबंडेकर ने सबसे पहले इसे सार्वजनिक रूप से जलाया था और उसके बाद से अनेक बार इसे जलाया जा चुका है।
इसके अलावा हमारे देश में पुतला दहन की परंपरा है, ऐसे में हमने उसी का अनुसरण करते हुए मनुस्मृति के कुछ पन्नों को विरोध स्वरूप शांतिपूर्वक जलाया था।
गौरतलब है कि 8 मार्च को जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रचीन हिंदू ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ की प्रतियां जलाए जाने को लेकर पांच छात्रों को नोटिस जारी किया था।
सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय के निरीक्षक ने छात्रों को जारी नोटिस में कहा, ‘मुख्य निरीक्षक के कार्यालय को साबरमती ढाबा के नजदीक आठ मार्च की शाम को संपन्न हुई घटना के संबंध में मुख्य सुरक्षा अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त हुई है। आप सभी 21 मार्च को इस संबंध में निरीक्षक के पास उपस्थित हो जाएं, अगर आप अपने बचाव में कोई सबूत लाना चाहते हैं तो ला सकते हैं।’
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने आठ मार्च को मनुस्मृति की कुछ प्रतियां जलाई थीं। एबीवीपी के जिन पांच कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी हुई है उनमें से तीन संगठन छोड़ चुके हैं जबकि दो अभी भी संगठन में बने हुए हैं।