नई दिल्ली – ‘वन रैंक – वन पेंशन’ के लिए बीते तीन माह से प्रदर्शन कर रहे पूर्व सैनिकों के लिए आज का दिन खुशियों भरा हो सकता है। खबर है कि आज दोपहर तीन बजे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर इस सौगात का ऐलान कर सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, पर्रिकर ने अपना दौरा रद्द कर दिया है और वे दिल्ली में ही हैं।
सरकार के लिए इसकी घोषणा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि चुनाव आयोग अगले सप्ताह किसी भी समय बिहार चुनाव का एलान कर सकता है। एक बार चुनाव की घोषणा होने के बाद सरकार आचार संहिता के दायरे में आ जाएगी, जिसके बाद वन रैंक वन पेंशन की घोषणा करना संभव नहीं होगा।
सरकार ने मसौदा तैयार कर लिया है और उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। मसौदे के तहत पूर्व सैनिकों को पहली जुलाई 2014 से वन रैंक वन पेंशन का लाभ मिलेगा। इस व्यवस्था की जटिल गणना को देखते हुए सरकार ने एक सदस्यीय न्यायिक समिति गठित करने का भी फैसला लिया है।
वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद सरकार के खजाने पर आठ से दस हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। चार दशक से चली आ रही पूर्व सैनिकों की इस मांग को कठिन आर्थिक और वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर लागू करने के लिए राजी हुई है।
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने पूर्व सैनिकों की तकरीबन सभी मांगे मान ली हैं। पेंच केवल इसके पुनर्निर्धारण की अवधि को लेकर फंसा है। सरकार ने इसके लिए तैयार मसौदे में अभी भी पुनर्निर्धारण की अवधि पांच साल पर ही रखा है। हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि जरूरत पड़ने पर सरकार पहला पुनर्निर्धारण तीन साल पर और फिर प्रत्येक पांच वर्ष पर पुनर्निर्धारण करने के विकल्प को भी खुला रखे हुए है। वन रैंक वन पेंशन के निर्धारण के लिए 2013 को आधार वर्ष माना जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक वन रैंक वन पेंशन के मसौदे में पूर्व सैनिकों को मिलने वाले एरियर का भुगतान चार अर्धवार्षिक किस्तों में करने का प्रावधान किया गया है। लेकिन विधवाओं को एरियर का भुगतान एकमुश्त कर दिया जाएगा।
पेंशन निर्धारण की प्रक्रिया के तहत समान रैंक और कुल सेवा अवधि के सेवानिवृत्त सेना कर्मियों की पेंशन का निर्धारण अधिकतम एवं न्यूनतम प्राप्त पेंशन के औसत के आधार पर किया जाएगा। लेकिन ऐसे पूर्व सैनिक जिनकी पेंशन औसत से अधिक है, उन्हें उसी स्तर पर संरक्षित करने की व्यवस्था भी की गई है।
[box type=”info” ]वन रैंक वन पेंशन का सीधा मतलब है कि समान सेवा अवधि के साथ समान रैंक में रिटायर होने वाले सेनाकर्मियों को समान पेंशन का भुगतान किया जाए। भले ही उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख कुछ भी हो। पेंशन की दरों में किसी प्रकार की भावी बढ़ोतरी स्वतः पूर्व पेंशनधारक के लिए लागू हो जाएगी। इस प्रकार एक निश्चित अंतराल पर मौजूदा पेंशनधारक और पूर्व पेंशनधारक की पेंशन के बीच की विसंगति दूर हो जाएगी।[/box]
सूत्रों का कहना है कि वन रैंक वन पेंशन की सुविधा का लाभ स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले सैन्यकर्मियों को नहीं मिलेगा। लेकिन शहीद हुए युद्ध कर्मियों की विधवाओं को इसका लाभ मिलेगा। सरकार में इस मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वन रैंक वन पेंशन की व्यवस्था व गणना बेहद जटिल है।
अलग अलग समय और कुल सेवा अवधि के बाद रिटायर हुए लोगों के हितों और संभावित विसंगतियों के परिप्रेक्ष्य में उच्च स्तरीय परीक्षण की आवश्यकता है। इसलिए सरकार ने यह निर्णय भी किया है कि एक सदस्यीय न्यायिक समिति गठित की जाए जो छह माह में अपनी रिपोर्ट देगी।
पूर्व सैनिक इस मुद्दे को लेकर बीते लगभग चार दशक से आंदोलनरत हैं। अलग अलग समय पर इस पर विचार होता रहा है। हालांकि फरवरी 2014 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि वित्त वर्ष 2014-15 से यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। इसके लिए बजट में केवल 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। लेकिन वन रैंक वन पेंशन क्या होगा? इसे कैसे लागू किया जाएगा और इसके अमल पर वास्तव में कितनी लागत आएगी, इसका न तो इंतजाम किया गया था और न ही संप्रग सरकार ने कोई खाका तैयार किया था।
जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से कई मौकों पर यह स्पष्ट किया गया कि उनकी सरकार इसे लागू करने के लिए कटिबद्ध है। इसी वादे को अमल में लाने के लिए सरकार आठ से दस हजार करोड़ रुपये के वित्तीय बोझ के बावजूद राजी हुई है। सरकार का मानना है कि पूर्व सैनिकों के कल्याण एवं अपनी कटिबद्धता के अनुरूप ही इसे लागू करने का फैसला किया जा रहा है।
One Rank One Pension : Government has approved OROP in principle: Ex-servicemen