पिछले दो दशक से दलित वोट बैंक पर अपना अधिकार रखने वाली बसपा सुप्रिमो मायावती का रसुख इतना प्रभावशाली हुआ करता था की उनकी सत्ता की हनक के आगे देश के दिग्गज राजनेता भी पानी भरते थेl मायावती की कुर्सी के बगल मे बैठने से कुर्सी चली जाती थीl आक्रमक तेवर और विशाल वोट बैंक के आधार पर एक क्षत्र राज करने वाली बसपा सुप्रिमो के इसारे के बगैर एक पत्ता संगठन और सत्ता मे नही हिलता था ऐसे मे फिर क्यों मायावती अचानक 2014 लोकसभा चुनाव मे बुरी तरह सभी सीटो पर पराजित हुई ये परिवर्तन ही शायद शुरुआत था मायावती कुनबे के ढहने की शुरुआत का l क्योकि अपराजीत शक्ति जब पराजित होती है तो लोग उसे भी उसी श्रेणी मे समझने लगते है l
इसी क्रम मे सिलसिला शुरू हुआ दो वर्ष बाद चुनाव हारने के बाद बसपा से भाजपा मे भगदड़ का l बसपा के दिग्गज और कुशवाहा समाज को बसपा से जोड़ने वाले नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या का बसपा छोड़ना और दलित वोट बैंक के नाम पर धन वसूली का बसपा सुप्रिमो पर गंभीर आरोप लगाना फिर बसपा के ब्राह्मण नेताओ का इसी आरोप के बहाने बसपा छोड़ना यह प्रश्न खडा करता है की आखिर बसपा लीडरशिप मे क्या चुक हुई की वर्षो पुराना इतना मजबूत किला क्यों ढहता जा रहा है और एक प्रश्न यह भी की दलित वोट बैंक पर एकाधिकार रखने वाली नेता पिछले लोकसभा चुनाव मे क्यू कमजोर हुई l
हाला की सियासत की गर्म मिजाजी तो यही कहती है के बसपा सुप्रिमो पर लगे उन्ही के नेताओ के आरोप उनके अहंकार और पार्टी मे धनबल को अधिक प्रश्रय देने का ये नतिज़ा हैl इसी कारण पूर्व मंत्री आर के चौधरी जैसे दिग्गज दलित नेता भी बसपा छोड़ चुके हैl
अब देखना है की 2017 के महासंग्राम मे विजय श्री और दलित वोट बैंक किस ओर जाता हैl सितम्बर मे बसपा और बसपा छोड़ चुके की ताकत की आजमाइश रैली के माध्यम से लखनऊ मे होनी है l ताकत किस ओर जायेगी रोचक तो है ही लेकिन दोनो ओर तैयारी भी जोरो पर है l और वोट बैंक के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले सभी राजनैतिक दलो पर सवालिया निशान भी लगने की शुरूआत भी हो चुकी है l @ चाणक्य त्रिपाठी
दलित वोट पर अधिकार रखने वाली मायावती का ढहता कुनबा