एक सज्जन दफ्तर जाते समय हड़बड़ी में मोबाइल फोन साथ ले जाना भूल गए। फिर क्या था, उस दिन तो बच्चों की मौज हो गई। दिन भर गेम खेलने के बाद न जाने क्या शरारत सूझी कि पुलिस नियंत्रण कक्ष का नंबर डायल कर दिया। मजाक-मजाक में कह दिया कि फलां संस्थान में बम रखा है। फिर क्या था पुलिस के पसीने छूट गए। चप्पा-चप्पा छान मारा, कहीं बम नहीं मिला। फिर तहकीकात हुई कि किसने यह झूठी सूचना दी। जांच-पड़ताल के दौरान पता चला कि यह बच्चों की शरारत थी। आफत आई मां-बाप पर। यह बच्चों में मोबाइल फोन के दुरुपयोग का एक उदाहरण है।
9 साल के हर्ष को ही लें वह स्कूल से आते ही मम्मी का मोबाइल लेकर गेम खेलने बैठ जाता है। उस दिन मम्मी किचन में काम करने चली गई। काफी देर बाद भी हर्ष को मोबाइल पर गेम खेलने देख मम्मी उसे डांटने लगी- ’स्कूल से आए हो, मुंह-हाथ धो, कपड़े बदलो और बैठ कर खाना खाओ। हर्ष अनमने ढंग से उठा और चला गया, पर उसका ध्यान मोबाइल गेम पर ही लगा रहा। उसे जब भी मौका मिलता वह खेलने लगता।
यह बात सिर्पहृ हर्ष की ही नहीं, यह प्रवृत्ति ज्यादातर बच्चों में दिखाई देती है। ऐसे बच्चों का ज्यादा से ज्यादा समय मोबइल, टीवी और कम्प्यूटर के साथ गुजरता है। टेक्नॉलॉजी का बढ़ता दायरा और मोबाइल की घटती कीमतों के कारण ये चीजें बच्चों तक आसानी से पहुंच गई हैं। कई माता-पिता तो खुशी-खुशी बच्चों को महंगे से महंगा मोबाइल दे देते हैं। चाहे बात दिखावे की हो या फिर सुरक्षा की, फिलहाल अब हर तरफ मोबाइल की घंटी सुनाई दे जाती है।
आठवी कक्षा की छात्रा नेहा का कहना है कि उसकी मम्मी ने उसे मोबाइल उसके जन्मदिन पर तोहफे में दिया है। उसकी मम्मी का कहना था कि इससे बढि़या तोइफा कुछ नहीं। मैं अपनी बेटी से हमेशा संपर्क में रहूंगी और मेरी बेटी भी असुरक्षित महसूस नहीं करेगी।
नेहा जैसी कितनी लड़कियां हैं जिनके मां-बाप भी यही कारण बताते हैं। दरअसल आजकल बच्चों का काफी समय घर से बाहर गुजरता है। पूरा दिन स्कूल, फिर ट्यूशन, फिर कुछ हॉबी क्लासेज। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों की चिंता स्वाभाविक है। इसीलिए बच्चों के संपर्क में रहने का इससे अच्छा तरीका उन्हें नहीं सूझता।
मगर डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में जरूरत से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है। हालांकि अभी तक इस बात को जानते हुए भी अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने दे रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि माता-पिता को बच्चों को यह बताना चाहिए कि जब जरूरत हो तभी वह मोबाइल का इस्तेमाल करें। उनका यह भी मानना है कि आठ साल से कम उम्र के बच्चों को तो मोबाइल देना ही नहीं चाहिए। पर आजकल मोबाइल बच्चों के खेलने की चीज बन कर रहा गया है। माता-पिता के हाथ में मोबाइल देखा नहीं, कि बस मांग बैठे।
नेशनल रेडियोलाजिकल प्रोटेक्शन बोर्ड ने पहली बार मोबाइल फोन के बारे में आगाह कराया था कि बच्चों में मोबाइल फोन तभी इस्तेमाल हो, जब बहुत ज्यादा जरूरत हो। पर इन बातों पर तब से लेकर आज तक किसी ने अमल नहीं किया।
यह एक तथ्य है कि 10 साल के बच्चों में हर चार में से एक बच्चे के पास मोबाइल फोन है। अगर सबसे ज्यादा मोबाइल फोन से किसी को खतरा है तो वह है बच्चों को। खासकर छोटे बच्चों को। उनका स्वास्थ्य खतरे में है। जो माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल फोन दे रहे हैं उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए।
एक अध्ययन के अनुसार दस साल से ज्यादा समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने पर ईयर ट्यूमर का खतरा चार गुना बढ़ जाता है। यह मस्तिष्क के काम करने पर भी असर डालता है और डीएनए को भी नुकसान पहुंचा सकता है। मगर बदलते दौर में इन सब बातों को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा, क्योंकि मोबाइल फोन हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
आज यह संपर्क का माध्यम बनने के साथ इसका दुरुपयोग भी बढ़ा है। अत्यधिक फीचर वाली विशेषताओं से युक्त मोबाइल बाजार में आने के बाद अश्लील फिल्मों को डाउनलोड करने और एक दूसरे को भेजने का भी चलन बढ़ा है। बच्चे भी इनका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। दिल्ली में एक स्कूल के छात्र की अश्लील वीडियो क्लिप की चर्चा को कौन भूल सकता है।
कई बच्चे मोबाइल फोन पर घंटों बातें करते रहते हैं। यह गलत है। बात उतनी ही करें जितनी जरूरत हो वरना स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है। बेहतर भविष्य और बेहतर कल के लिए जरूरी है बच्चों को मोबाइल फोन से होने वाले नुकसान से आगाह किया जाए और उन्हें मोबाइल फोन का सही इस्तेमाल करने के बारे में भी बताया जाए।