नई दिल्लीः नई शिक्षा नीति में तीन भाषा का फॉर्मूला लागू करने के प्रस्ताव पर उठे विवाद के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया है। सरकार ने इस प्रस्ताव को वापस लेते हुए इस पर बदलाव किया है। नए ड्राफ्ट में हिंदी अनिवार्य होने वाली शर्त को हटा दिया गया है। तीन जून की सुबह केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव की घोषणा की है।
मालूम हो कि पहले के प्रस्ताव में तीन भाषा का फॉर्मूला दिया गया था। जिसमें राज्य की मूल भाषा के साथ ही स्कूली पाठ्यक्रम में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने का प्रस्ताव शामिल था।
नई शिक्षा नीति के संशोधित ड्राफ्ट में अनिवार्य की जगह ‘फ्लेक्सिबल’ शब्द का उपयोग किया गया है। इसके अनुसार, अब मातृभाषा और स्कूली भाषा के अलावा तीसरी भाषा का चुनाव छात्र अपनी मर्जी से कर पाएंगे। इस तीसरी भाषा का चयन करने के लिए छात्र अपने शिक्षक और स्कूल की मदद ले सकता है। ऐसे में पूरी संभावना है कि जिस भाषा में स्कूल छात्र की आसानी से मदद कर पाएगा, वही उसकी तीसरी भाषा होगी। दक्षिण भारत में अधिकतर स्कूलों में तीसरी भाषा हिंदी नहीं होगी, इसकी भी पूरी संभावना है।
दक्षिण भारत में उठे विवादों के बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने भी स्पष्ट किया था कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। उन्होंने कहा था कि नई शिक्षा नीति का मसौदा केवल एक रिपोर्ट है। इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जाएगी, उसके बाद ही कुछ होगा।
गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने वाली शिक्षा नीति के मसौदे पर तमिलनाडु में आक्रोश को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा था कि इस मुद्दे पर अंतिम फैसला लिए जाने से पहले राज्य सरकारों से परामर्श लिया जाएगा।
एक ट्विटर यूजर के सवाल पर प्रतिक्रिया देते हुए जयशंकर ने ट्वीट किया कि एचआरडी मंत्री को सौंपी गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति महज एक मसौदा रिपोर्ट है। आम जनता से प्रतिक्रिया ली जाएगी। राज्य सरकारों से परामर्श किया जाएगा। इसके बाद ही इस मसौदा रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा।