धनबाद: क्रीड़ा भारती के राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत शनिवार को धनबाद (झारखंड) पहुंचे। राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर के बालिका ब्लॉक में हर देव राम मिताथलिया भवन का उन्होंने उदघाटन किया।
फिर वहीं पर विद्या मंदिर परिवार के साथ देश भर से आए खिलाड़ियों एवं क्रीड़ा भारती के प्रतिनिधियों से उन्होंने कहा कि धर्म समाज को जोड़ता है, तोड़ता नहीं। जिससे समाज टूटेगा, वह धर्म नहीं हो सकता। जात-पात और ऊंच-नीच का भाव नहीं रहे। मनुष्य को मनुष्य के नाते देखा जाना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा कि धर्म और शिक्षा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। समाज हित के लिए अर्जित की गई शिक्षा से धर्म को समझना आसान हो जाता है। मनुष्यता की शिक्षा सबसे अच्छी शिक्षा है। मोहन भागवत ने कहा कि वह राजकमल विद्या मंदिर में कई बार आ चुके हैं। दो-तीन बार यहां संबोधन भी कर चुके हैं।
उन्होंने कहा कि शिक्षा सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। जो कुछ सीखते हैं, उससे समाज को भी कुछ देने का प्रयास करें। शिक्षा देने और लेने वालों की संख्या बढ़ी है। कितने लोग अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के बाद उसका उपयोग समाज की भलाई के लिए करते हैं, यह विचारणीय है।
मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा अब कारोबार का रूप ले रही है। यह तीन ट्रिलियन (तीन हजार अरब) डॉलर का व्यवसाय बन गई है। उलट सोच यह है कि शिक्षा की मांग रहेगी तो व्यापार चलता रहेगा। शिक्षा रत्न दीप की तरह होनी चाहिए। अपनी उन्नति करते हुए दूसरों की भी उन्नति करें। उत्कृष्टता की भूख होनी चाहिए। शिक्षा को डिग्री से मापा नहीं जा सकता है। जो हम सीख रहे हैं, उसमें उत्तम बनें। खिलाड़ी बनें, तो श्रेष्ठ खिलाड़ी बनें।
मोहन भागवत ने कहा कि वह चाहते हैं कि भारत पूरी दुनिया में परम वैभव संपन्न बने। वैभव आर्थिक नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों में दिखे। भारत दुनिया में उत्कृष्ट बनकर उभरे। दुनिया को उत्कृष्टता व शुद्धता का संस्कार दे। उन्होंने कहा कि युवाओं में खेल के प्रति जीत का समर्पण हो। खेल में जीतना सर्वोपरि माना जाता है। जीत एक व्यक्ति के लिए नहीं पूरे खेल के लिए हो।
मोहन भागवत ने कहा कि संघ में सामूहिक निर्णय मायने रखता है। मेरा विचार कुछ भी हो, संघ में सबका विचार आने के बाद मेरा निर्णय भी वही हो जाता है। आज संघ बड़ा हो गया है, इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है।