भोपाल- छात्र छात्राओं की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं से चिंतित परीक्षाओ के बाद अब रिजल्ट का समय आते ही राज्य सरकार की पेशानी पर फिर बल पड़ गए हैं। उसे रिजल्ट के बाद छात्र-छात्राओं द्वार कम नंबर आने पर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाने की चिंता फिर से सताने लगी है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने विभाग को निर्देश दिए है कि रिजल्ट से पहले पालकों की काउंसलिंग कराई जाए और उनसे कहा जाए कि वे कम नंबर आने पर अपने बच्चों को हतोत्साहित न करें। मंत्री ने यह भी कहा है कि इससे हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
गौरतलब है कि मार्च माह में परीक्षाओ के दौरान अनेक छात्र-छात्राओं ने पर्चा बिगड़ने के कारण मौत को गले लगा लिया था। तीस अप्रैल से विभिन्न परीक्षाओ के रिजल्ट आने वाले हैं। रिजल्ट के बाद फिर से छात्र- छात्राएं आत्मधाती कदम न उठाएं इसके लिए स्कूल शिक्षा मंत्री दीपक जोशी ने अपर मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि पहले जैसी स्थिति फिर न निर्मित हो, इसके लिए स्कूलों के माध्यम से पालकों की काउंसलिंग करवाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि पालकों को भी यह समझााना जरूरी है कि वे अपने बच्चों पर शिक्षा को लेकर अधिक दबाब न बनाएं और न ही उन्हें अच्छे नंबर लाने के लिए किसी तरह का लालच या प्रलोभान दें।
हमारा उद्देश्य अच्छे नंबर न आने पर बच्चों द्वारा उठाए जाने वाले आत्मघाती कदमों को रोकना है। बच्चों को यह समझाया जाना बेहद जरूरी है कि साल खराब होने पर जिंदगी खराब न करें। पालकों को यह बात समझाना होगी कि वे बच्चों पर नंबरों को लेकर किसी तरह का दबाव न बनाएं, इसके लिए काउंसलिंग जरूरी है।- दीपक जोशी, स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री
बच्चों द्वारा परीक्षाओं के दौरान बड़े पैमाने पर आत्महत्या किए जाने का मामला विधानसभा के बजट सत्र में भी उठा था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में एक समिति भी बनाई थी। अर्चना चिटनिस के नेत्त्व में यह समिति बच्चों की आत्महत्या के कारणों और इन्हें रोकने के उपायों पर काम कर रही है।
शिक्षा राज्यमंत्री जोशी ने कहा कि इसके लिए स्कूल और पालकों की जिम्मेदारी बढ़ाना जरूरी है। बच्चों के मन में कॅरियर और पढ़ाई को लेकर कोई तनाव न हो इसके लिए स्कूल में एक स्वच्छ वातावरण बनाएं और बच्चो के मन में यह बात गहरे बैठाया जाना जरूरी है कि केवल अच्छे अंक ही योग्यता का मापदंड नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसी काउसंलिंग के माध्यम से इस बात को जानना भी जरूरी है कि बच्चे किस तरह के दबाव में रहते हैं और आत्महत्या जैसे कदम क्यों उठाते हैं ताकि इस पर प्रभावी रोक लग सके।