जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बागी विधायकों से बात होगी तो क्या उनके इस्तीफे स्वीकार हो जाएंगे तो सिंघवी ने कहा कि यह संभव नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है और सरकार बहुमत खो देती है तो राज्यपाल के पास विधानसभा अध्यक्ष को विश्वास मत कराने का निर्देश देने की शक्ति है।
नई दिल्लीः मध्यप्रदेश के सियासी संकट पर उच्चतम न्यायालय में एक बार फिर सुनवाई शुरू हो गई है। स्पीकर की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें देते हुए कहा कि अदालत बागी विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए उन्हें दो सप्ताह जितना पर्याप्त समय दे। जिसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बागी विधायकों से बात होगी तो क्या उनके इस्तीफे स्वीकार हो जाएंगे तो सिंघवी ने कहा कि यह संभव नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है और सरकार बहुमत खो देती है तो राज्यपाल के पास विधानसभा अध्यक्ष को विश्वास मत कराने का निर्देश देने की शक्ति है। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि सरकार बहुमत खो चुकी है या नहीं, यह राज्यपाल तय नहीं कर सकते बल्कि यह सदन तय करता है।
स्पीकर की तरफ से अदालत में पेश हुए सिंघवी ने अपनी दलीलें शुरू करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय भी स्पीकर के विवेक को निरस्त नहीं कर सकता है। स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में दखल दिया जा रहा है और केवल बहुमत परीक्षण की बात कही जा रहा है। विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने का अधिकार केवल स्पीकर को है। जिसपर जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि स्पीकर फैसला नहीं लेता है तो क्या करना चाहिए।
सिंघवी ने कहा कि नई सरकार को ये बागी विधायक फायदा दे सकते हैं। विधायकों के इस्तीफे स्वीकार न करने पर सिंघवी ने कहा कि आप कुछ समय दे दीजिए। विधायकों को नोटिस जारी कर दिया गया है। यदि विधायक बागी होते तो उन्हें कर्नाटक क्यों ले जाना पड़ता। 200 पुलिसवाले कांग्रेस के विधायकों को दबाकर रख रहे हैं। वहीं कमलनाथ ने कहा कि उनकी बहुमत की सरकार है और विधायकों को बंधक बनाकर रखा गया है। इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि यदि विधायक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करेंगे तो क्या उनके इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाएंगे?