भोपाल- मप्र बंदी प्रोबेशन एक्ट-1954 को संशोधित कर दोबारा लागू करने की कोशिश चल रही है ! जिसके अनुसार प्रदेश की जेलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे बंदी जल्द ही परिजनों के साथ रहकर अपनी बची हुई सजा पूरी कर सकते हैं ! इस कोशिश में बंदी सुधार के तहत जेल विभाग लगा हुआ है जो एक्ट में संशोधन कर अगले दो हफ्ते में राज्य शासन को भेजने की तैयारी कर रहा है।
इसी मामले में पिछले महीने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जेल विभाग की समीक्षा बैठक में एक्ट को संशोधित कर लागू करने को सैद्घांतिक अनुमति मिल चुकी है। अधिनियम में पांच साल की अवधि बढ़ाकर उसे 8 से 10 किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य संशोधन भी किए जाएंगे। इसके लिए शासन को संशोधित मप्र बंदी प्रोबेशन एक्ट भेजेंगे।
ज्ञात हो कि इसके पूर्व प्रदेश में बंदी प्रोबेशन एक्ट-1954 लागू किया गया था। इसके नियम 1964 में बने। तब से ही यह एक्ट प्रदेश में लागू था। अधिनियम में व्यवस्था थी कि ऐसे बंदी जिनसे अनजाने में अपराध हुआ हो आैर जेल में उनका आचरण ठीक रहा हो, उन्हें इसका लाभ दिया जा सकता है। पांच साल की सजा जेल में पूरी करने के बाद उनके व्यवहार के आधार पर परिजनों के साथ रहकर शेष सजा काटने का प्रावधान था। उनके द्वारा यदि दोबारा कोई अपराध किया जाता है तो उन्हें आजीवन कारावास में ही रहना होगा।
होशंगाबाद में ओपन जेल परिसर में बंदी अपने परिजनों के साथ रहते हैं। यहां उन्हें रखा जाता है जो लगभग 12 साल की सजा पूरी कर चुके हों। बंदी काम करके शाम को घर जाते हैं। सतना में भी ओपन जेल का निर्माण शीघ्र होने वाला है। कुछ बंदियों को अोपन जेल में रखा जाएगा तो कुछ को एक्ट का लाभ दिया जाएगा।
विधि विभाग ने 2011 में पांच साल की सजा के बाद बंदी के जेल से बाहर जाने की अवधि 14 साल कर दी थी। जेल विभाग के अफसर कहते हैं कि आजीवन कारावास के बंदी वैसे भी अच्छे व्यवहार के कारण सजा माफी में 14 साल कुछ महीने की अवधि में अपनी 20 साल की सजा पूरी करके रिहा हो जाते हैं। ऐसे में एक्ट को लागू रखना व्यवहारिक नहीं था।