खंडवा- इसे आस्था कहें, अंधविश्वास या फिर देखादेखी ? आपने नदियों के ऊपर से गुजरते हुए बस या ट्रैन या अन्य वाहनों में सवार लोगों को नदियों में सिक्के फैंकते हुए कई बार देखा होगा। लेकिन सिक्के फैकने वाले इन लोगों से कभी पूछा है कि इसे वह क्यों करते हैं ?
यदि इनसे इस बारे में पूछा जाए तो अधिकांश लोगों को इसका कारण ही नहीं मालूम। बस वह तो यही जानते है कि यह नदियों के प्रति उनकी आस्था है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है, इसलिए वह भी ऐसा कर रहे है।
दरअसल हम आस्था अंध विश्वास या अन्य कोई बात कहें तो नदियों में आज के आधुनिक सिक्के डालकर न केवल उसे प्रदूषित कर रहे है बल्कि जाने अनजाने में कैंसर को बुलावा दे रहे है। एक तथ्य में यह सामने आया है कि आजकल के सिक्कों में लोहे के साथ 17 प्रतिशत क्रोमियम होता है, जो पानी में घुलकर कैंसर को बढ़ावा देता है।
पुराने समय में ताम्बे के सिक्के चलते थे, देश की ज्यादातर आबादी सीधे नदियों का पानी पीती थी, फ़िल्टर के कोई आधुनिक संयंत्र नहीं होते थे, इसलिए लोग नदियों में ताम्बे के सिक्के डालते थे। ताम्बा प्राकृतिक रूप से पानी साफ़ करता है और मानव शारीर के लिए उपयोगी होता है। समय के साथ साथ सिक्के की धातु बदल गई लेकिन लोगों का व्यवहार नहीं बदला। उस समय की व्यवस्था अब आस्था में बदल गई जो आज भी जारी है।
अब समय है कि हम भी बदलें, हमारे स्वास्थ्य को बचाएं और नदियों को प्रदूषण से बचाने के साथ – साथ सिक्कों को पानी में फैंक कर हमारे देश की अर्थ व्यवस्था को बिगड़ने से भी बचाएँ।
क्यों घातक है वर्तमान सिक्के
गंगा नदी पर किये गये एक अध्ययन मे उत्तर प्रदेश के प्रोफेसर मनोज कुमार ने बताया कि वर्तमान सिक्के में 83 प्रतिशत लोहा और 17 प्रतिशत क्रोमियम होता है। क्रोमियम एक जहरीली धातु है। क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है, एक सीआर (3) और दूसरा सीआर (4). पहली अवस्था जहरीली नहीं मानी गयी है, बल्कि क्रोमियम (4) की दूसरी अवस्था 0.05% प्रति लीटर से ज्यादा जहरीली है, जो सीधे तौर पर कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है।
आस्था के नाम पर कर रहे अर्थव्यवस्था का नुकसान
सिक्कों को आस्था के नाम पर यूँ ही फेंकना नर्मदा नदी में ज्यादा नजर आता है। यात्रियों द्वारा रोज के सिक्के फैकने के हिसाब से गणना की जाए तो यह रकम कम से कम हजारों में होती है। सोचने वाली बात तो यह है कि इस तरह प्रतिदिन भारतीय मुद्रा ऐसे ही फेंक दी जाती। है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुँचता है। नर्मदा नदी अपने आप में बहुमूल्य खजाना छुपाए हुए है। एक दो रुपये के सिक्को से इसका भला कैसे हो सकता है। प्राचीन समय में सिक्को को पानी में फेंकने का चलन तांबे के सिक्को से था। जो कि तांबा जल को शुद्धकरने वाली सबसे अच्छी धातु है। पहले के समय में घरों में भी सोना चाँदी तांबे से बनी वस्तुओं और बर्तनों का उपयोग अधिक होता था। एवं तांबे के सिक्कों का मुद्रा के रुप में चलन था। आस्था के रुप में नदियों में तांबे के सिक्को को डालते थे।लेकिन आज भी परम्परा वही है, पर तांबे के सिक्को की जगह वर्तमान मे क्रोमियम युक्त सिक्कों का चलन शुरू हो गया था। जो कि जहरीली धातु है,और कई बीमारियों को जन्म देती है।
घर बैठे बाँट रहे बीमारी
भारत में लगभग सारी बड़ी बड़ी नदियों के पानी का उपयोग पीने के रुप में किया जाता है। कहीं न कहीं सिक्कों को नदी में फेंकने से क्रोमियन युक्त पानी घरों तक पहुँच रहा है। जो कि फिल्टर प्लांटो से गुजरने के बावजूद इस सिक्के युक्त क्रोमियम तत्व को पानी से इसे पूर्णता से समाप्त नहीं कर पाता है। जिसके कारण हम घर बैठे ही बीमारियों को आमंत्रण दे रहे है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो विभिन्न धातुओं के मिश्रण से पानी की शुद्धता बरकरार रहती है। मानव जीवन के लिए जड़ी बूटी और खनिज की आवश्यकता बहुत जरूरी है। इसलिए तांबे युक्त जल में सारे तत्व समाहित होते है। इससे कई गंभीर बीमारियों के उपचार में लाभ होता है।
प्राचीनकाल से है चलन में
माना जाता है कि यह परम्परा जब भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काट कर लौटे थे। जब सीता मां ने सरयू नदी में स्वर्ण मुद्राए अर्पित की थी। तभी से प्रथा चली आ रही है। नदियों में सिक्के डालने का प्रचलन मुगलकाल में भी शुरू होने के प्रमाण मिले है। मुगलकाल में एक बार नदियों का पानी इस कदर दूषित हो गया था कि स्नान मात्र से ही तमाम बीमारियाँ घेर लेती थी। जहरीले हो चुके पानी को शुद्ध करने के लिए मुगल शासकों ने जनता से नदियों, तालाब, जलाशयों में तांबे ,चाँदी के सिक्के डालने का हुक्म दिया था। ताकि धातुओ के मिश्रण से नदियों का पानी शुद्ध हो जाए।
ताम्रजल पीने के फायदे
तांबे के पात्र में रखा पानी पीने के अनेक फायदे है।इसका विस्तार से आयुर्वेद में विस्तार मिलता है।शायद इसलिए भी नदियों में तांबे के सिक्के फेंकने की परम्परा प्रारंभ हुई होगी।ताकि शरीर के लिए आवश्यक तांबे के तत्व नदियों के जल में मिलते रहे।यह वात और कफ दोषो को संतुलित रखता है। तांबायुक्त पानी शरीर के विषैले तत्व को बाहर निकलता है।त्वचा चमकीली व स्वस्थ रहती है।इसमें एंटी आक्सीडेटस होते है। जो कि कैंसर से लड़ने मे सहायक होते है।जागरूकता के लिए लगना चाहिए सूचना बोर्ड
हालाँकि पहले कि अपेक्षा लोग जागरूक हुए है। फिर भी नर्मदा नदी पर बने पुलों पर जागरूकता बोर्ड का लगा होना आवश्यक है। जिसमे यह जानकारी लिखी जाए कि नदियों में वर्तमान में प्रचलित सिक्के डालना पुण्य का कार्य नहीं, अपितु पाप है।
रिपोर्ट- @गौरव दफ्तरी /शुभम जायसवाल