नई दिल्ली- सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशानुगत सज्जादानशीन दरगाह के धर्मप्रमुख और दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने कश्मीर में बिगड़ते माहौल के लिए हुर्रियत की अलगावादी नीति और जाकिर नाईक जैसे इस्लामिक स्कॉलरों की विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया है। घाटी में यह तत्व अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए अशांति पैदा कर रहे हैं और निर्दोष जिंदगियों के साथ खेल रहे हैं।
साथ ही उन्होंने कहा कि -पूरे देश का मुसलमान सरकार के साथ खड़ा है। केन्द्र सरकार अलगाववादियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई शुरू करे। अब देश के हित के कड़े कदम उठाने का वक्त आ चुका है।
दरगाह दीवान ने ख्वाजा साहब के धर्मगुरू हजरत ख्वाजा उस्मान हरवनी के उर्स के समापन के बाद जारी बयान में कहा कि कि हुर्रियत कॉंफ्रेंस नौजवानों की लाशों पर राजनीति करने में दिलचस्पी रखती है। कश्मीर के मौजूदा हालात इसका सबूत हैं। जब कश्मीर का पढ़ा लिखा मुस्लिम नौजवान आलगाववादियों की विचारधारा से प्रभावित होकर हिंसा पर उतारू है।
कश्मीर में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने, बेकसूर जिंदगियों की क्षति और सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों के नुकसान को रोकने के लिए मुस्लिम धर्म गुरुओं को भटकाव वाली विचारधारा का विरोध करना होगा।
उन्होंने साफ कहा कि इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नाईक जैसे लोग धर्म के नाम पर कट्टरता फैला रहे हैं। वो कितना भी कहे कि वो ये सब धर्म के लिए कर रहे हैं आखिर में गलत ही साबित होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि अगर ऐसे लोग मजहब को फॉलो कर रहे होते तो प्यार-मोहब्बत की बात करते, क्योंकि मजहब तो यही सिखाता है।
इस तरह के लोग इस्लाम की अपने हिसाब से व्याख्या करके मुस्लिम शिक्षित नौजवानों को भटकाव की राह पर धकेल रहे हैं। जिसका नतीजा कश्मीर में फैल रही हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल मुस्लिम युवकों के रूप में सामने आ रहा है।
-दरगाह दीवान ने कहा कि कश्मीरी नौजवान अलगाववादियों से पूछें कि अगर जिहाद और कश्मीर की आजादी के लिए बंदूक उठाना जरूरी है तो फिर वे क्यों अपने बच्चों को बंदूक नहीं थमाते।
-उनके अपने बच्चे तो मलेशिया, कनाडा और अमेरिका में हैं और कइयों के बच्चे दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में रहकर या तो पढ़ाई कर रहे या फिर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में नौकरियां।
-वह सिर्फ दूसरों के बच्चों को ही उकसाते हैं। जब भी कश्मीर में कोई नौजवान मरता है तो अलगाववादी उसे हीरो बताकर दूसरे युवाओं को भी उसी रस्ते पर चलने को कहते हैं।
-अमरनाथ यात्रा शुरू होती है तो उसी समय अलगावादी संगठन हिंसा पर उतर आते हैं, लेकिन यह जानते हुए भी जम्मू-कश्मीर सरकार कानून व्यवस्था को बहाल रखने के लिए कोई अग्रिम नीति नहीं बना पाती।
-कश्मीर के युवाओं में गुस्सा और बगावत है, लेकिन उन्हें समझना पड़ेगा कि किसी भी समस्या का हल बंदूक उठाना नहीं है।