देश के किसी बड़े और व्यस्त रेलवे स्टेशन के भीड़भाड़ वाले प्लेटफार्म पर यदि मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारा, चर्च या मजार हो तो क्या हो? वह भी ठीक उस जगह, जहां से यात्रीगण ट्रेन में चढ़ते-उतरते हैं। आप कहेंगे, ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन कानपुर में ऐसा ही है।
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन देश के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है। इसके प्लेटफार्म नंबर तीन में एक मजार के होने का दावा किया जा रहा है। मजार पर हर गुरुवार अकीदतमंदों की भीड़ जुटती है। प्लेटफार्म पर बाकायदा बोर्ड भी लगा हुआ है। जिस पर लिखा है, हजरत सैयद लाइन शाह बाबा मजार, प्लेटफार्म नंबर 3, कृपया सफाई का विशेष ध्यान रखें। बताया जा रहा है कि मजार बहुत पुरानी है।
हर गुरुवार को होती है अकीदत
प्लेटफार्म के जिस हिस्से के नीचे मजार होने की बात की जा रही है, वहां पर हर गुरुवार को अकीदतमंदों की भीड़ जुटती है। यह सिलसिला कई सालों से चल रहा है। चादर चढ़ाई जाती है। फूल चढ़ाए जाते हैं। अगरबत्तियां और मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। शाम से लेकर रात तक कुछ घंटे को प्लेटफार्म का यह हिस्सा आस्था स्थल के रूप में तब्दील हो जाता है। समस्या यह है कि जितनी देर इबादत चलती है यात्रियों की सुविधाएं प्रभावित होती हैं और इबादत समाप्त होने के बाद मजार का सम्मान चोटिल होता है। क्योंकि सामान्य दिनों में लोगों को यह मालूम नहीं होता है कि जिस जगह के ऊपर वे खड़े हैं या आ-जा रहे हैं, उसके नीचे कोई मजार है।
सफेद रंग की पट्टी के नीचे
गीता प्रेस की ओर से जो सीढ़ियां प्लेटफार्म नंबर तीन पर आती हैं, उसी के पास यह मजार है। मजार को चिन्हित करने के लिए पंद्रह फुट लंबी और दो फुट चौड़ी जगह पर सफेद रंग पोता गया है। लेकिन आम यात्री यह अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि इस सफेद पट्टी के नीचे मजार है।
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गुरुवार को जब यहां पर अकीदतमंदों की भारी भीड़ जमा होती है, तब पता चलता है। समस्या यह है कि ट्रेन रुकने पर गेट ठीक मजार के सामने आता है। उतरते हुए यात्रियों का पहला कदम मजार के ऊपर ही पड़ता है। गुरुवार के दिन चादरपोशी के समय भीड़ यात्रियों को उतरने नहीं देती तब अजीब सा माहौल पैदा हो जाता है। दूसरी दुविधा यह है कि गुरुवार के इन चंद घंटों के अलावा मजार के सम्मान पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता।
बहुत पुरानी है मजार
मजार के इतिहास को लेकर किसी के पास कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन लोग बताते हैं कि यह मजार सेंट्रल स्टेशन की स्थापना के समय से यहीं पर है। मान्यता यह है कि बाबा रेल पटरियों की सुरक्षा करते हैं।
इन्होंने कहा…
यह अजीबोगरीब मामला है। वैसे तो मजार को कहीं और शिफ्ट (स्थानांतरित) करने का कोई नियम इस्लाम में नहीं है, लेकिन इस मामले में अगर और कोई हालात नहीं बनते तो ससम्मान मजार की शिफ्टिंग पर विचार विमर्श के बाद फैसला लिया जा सकता है। इससे धार्मिक स्थल को बेअदबी से बचाया जा सकेगा।
-मौलाना आलम रजा खां नूरी, शहर काजी
आरपीएफ ने रोकी इबादत
सोशल मीडिया में इस मामले के आने के बाद रेलवे ने इस खबर का संज्ञान लिया। रेलवे रिकार्ड में इस मजार को कोई जिक्र नहीं मिलने पर रेलवे ने यहां चादरपोशी करने पर रोक के आदेश दिए हैं। पिछले गुरुवार को चादरपोशी आरपीएफ ने नहीं होने दी। स्टेशन डायरेक्टर डॉ. जितेंद्र कुमार ने बताया, उच्चाधिकारियों के आदेश का पालन किया जा रहा है। चादरपोशी रोकने का आदेश दे दिया गया है।