बर्मा : पड़ोसी देश म्यांमार में सोमवार को तख्तापलट हो गया है। म्यांमार की सेना ने देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत कई वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में ले लिया है। सेना ने देश में एक साल के लिए आपातकाल की घोषणा करते हुए सत्ता पर कब्जा कर लिया है। म्यांमार सैन्य टेलीविजन के मुताबिक, सेना ने एक साल के लिए देश पर नियंत्रण कर लिया है। सेना के कमांडर-इन-चीफ मिन आंग ह्लाइंग के पास सत्ता जाती है।
म्यांमार में मचे इस सियासी भूचाल पर वहां की सेना का कहना है कि चुनाव में हुई धोखाधड़ी के जवाब में तख्तापलट की कार्रवाई की गई है। तख्तापलट के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में सेना की टुकड़ियों की तैनाती कर दी गई है। म्यांमार के मुख्य शहर यांगून में सिटी हॉल के बाहर सैनिकों को तैनात किया गया है ताकि कोई तख्तापलट का विरोध न कर सके।
इससे पहले, सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के प्रवक्ता न्यंट ने आंग सू की और राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं को सेना द्वारा हिरासत में लिए जाने की पुष्टि की। साथ ही उन्होंने कहा, ”हम अपने लोगों से कहना चाहते हैं कि वे जल्दबाजी में जवाब न दें। वे कानून के मुताबिक कार्रवाई करें।”
We have noted the developments in Myanmar with deep concern. India has always been steadfast in its support to the process of democratic transition in Myanmar. We believe that the rule of law and the democratic process must be upheld. We are monitoring the situation closely: MEA pic.twitter.com/annipyQAh8
— ANI (@ANI) February 1, 2021
म्यांमार में लंबे समय तक सैन्य शासन रहा है। वर्ष 1962 से लेकर साल 2011 तक देश में सैन्य तानाशाही रही है। वर्ष 2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए और 2011 में म्यांमार में ‘नागरिक सरकार’ बनी, जिसमें जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ देश की कमान सौंपी गई। नागरिक सरकार बनने के बाद भी असली ताकत हमेशा सेना के पास ही रही। इसलिए आज की घटना राजनीतिक संकट का वास्तविक रूप है।
भारत ने म्यांमार के राजनीतिक घटनाक्रम पर चिंता जताई है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा,” म्यांमार के घटनाक्रम से बेहद चिंतित हैं। भारत हमेशा से म्यांमार में लोकतंत्र प्रक्रिया के समर्थन में रहा है। हमारा मानना है कि देश में काननू और लोकतंत्र प्रक्रिया को बरकरार रखा जाए। म्यांमार की स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं।” भारत के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने तख्तापलट पर चिंता जताई है। साथ ही म्यांमार की सेना से कानून का सम्मान करने की अपील की है।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि म्यांमार की सेना ने देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की और अन्य वरिष्ठ नागरिकों को गिरफ्तार कर देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को खत्म करने का कदम उठाया है। अमेरिका ने म्यांमार की सेना को चेतावनी देते हुए कहा कि अमेरिका ने हाल के चुनावों के परिणामों को बदलने या म्यांमार के लोकतांत्रिक व्यवस्था को बाधित करने के किसी भी प्रयास का विरोध किया है। अगर ये तख्तापलट खत्म नहीं हुआ, तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। वहीं ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री मरिज पायने ने सू की की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि हम नवंबर 2020 के आम चुनाव के परिणामों के अनुरूप नेशनल असेंबली के शांतिपूर्ण पुनर्गठन का पुरजोर समर्थन करते हैं।
बता दें कि म्यांमार के सांसदों को पिछले साल के चुनाव के बाद से संसद के पहले सत्र के लिए राजधानी नयापीटा में सोमवार को इकट्ठा होना था।
सेना ने कहा है कि चुनाव परिणामों में हुई धांधली के बाद कार्रवाई की गई है। दरअसल, नवंबर, 2020 के चुनावों में संसद के संयुक्त निचले और ऊपरी सदनों में सू की की पार्टी ने 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन सेना के पास 2008 के सैन्य-मसौदा संविधान के तहत कुल सीटों का 25 फीसदी आरक्षित हैं। कई प्रमुख मंत्री पद भी सेना के लिए आरक्षित हैं। तभी से सेना आरोप लगा रही थी कि चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। हालांकि, सेना चुनाव में धांधली का सबूत नहीं दे पाई।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने म्यांमार में तख्तापलट और नेताओं को सैन्य हिरासत में लिए जाने की निंदा की है।