पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में एक बार फिर मोदी का जादू लोगों के सिर चढक़र बोला। मोदी लहर का असर ही है कि पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा कमल खिलाने में सफल रही है। असम में भाजपा को सबसे बड़ी सफलता हाथ लगी। राज्य गठन के बाद पहली बार सरकार बनाकर भाजपा ने इतिहास रच दिया है। इतना ही नहीं इस बार भाजपा ने पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में अपना खाता खोलकर वोट परसेंट भी बढ़ा लिया है। पश्चिम बंगाल में जहां भाजपा को 7 सीटें मिली है वहीं केरल में 1 सीट पर जीत दर्ज कर मध्यप्रदेश के कोटे से राज्यसभा में रहे राजगोपाल ने पहली बार भाजपा के जीत का स्वाद चखने का अवसर प्रदान किया है।
केरल में जहां कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी वहां यू.डी.एफ ने जीत का परचम लहराया है। इन चुनाव परिणामों से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूर्ण होता दिख रहा है। कांग्रेस को वामदलों के साथ संयुक्त रूप से चुनाव लडऩे पर भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। 2011 के मुकाबले कांग्रेस को बहुत कम 47 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। पांडिचेरी में कांग्रेस एलायन्स ने जीत हासिल कर अपनी स्थिति बेहतर की।
असम में मिली सफलता पार्टी कार्यकाताओं, नेताओं एवं मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल के अथक प्रयासों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का असर है। असम विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत गठबंधन मिशन 84 के लक्ष्य को पार कर 15 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस को हटाकर पहली बार पूर्वोत्तर के किसी राज्य में सरकार बनाने के स्वप्न को साकार किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असम में भाजपा की जीत को ‘ऐतिहासिक’ और ‘अभूतपूर्व’ करार देते हुए कहा कि पार्टी राज्य के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी और राज्य को विकास की नयी उंचाइयों तक ले जायेगी। हालांकि बंगलादेशी घुसपेठियों पर कार्यवाही नागरिकता संबंधी मामलों के साथ-साथ स्थानीय और बाहरी मामले भी असम की जीत के कारक है।
भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार सर्वानंद सोनोवाल छात्र राजनीति के साथ-साथ संघ के अनुशांसिक संगठन भारत रक्षा मंच, अभाविपा के साथ मिलकर असम की महत्वपूर्ण समस्या बंगलादेशी घुसपैठियों को लेकर आंदोलन करते रहे है। इस जीत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी महत्वपूर्ण रोल प्ले किया है। लम्बे समय से आरएसएस कार्यकर्ता भाजपा के लिए मजबूत जनाधार तैयार करने में लगे थे और यही वजह है कि भाजपा ने संघ से बेहतर समन्वय स्थापित कर जीत की रणनीति तैयार करने का दायित्व संघ से भाजपा में आये राष्ट्रीय महासचिव राम माधव को सौंपा था। यह बेहतर रणनीति भाजपा की सफलता का कारण रही। देश के सबसे बड़े छात्र नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफल्ल महन्तो की पार्टी को भी अपेक्षा के अनुरूप सफलता मिली है। मैंने अपने पूर्व के लेख में पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी वापस लौटेंगी और ममता पर ही प्रदेश की जनता अपना ममत्व उड़ेलेगी और आज हुआ भी यही। जिन 5 राज्यों में चुनाव हुए हैं उनमें से तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पांडिचेरी में भाजपा का अस्तित्व ही नहीं था। इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी अपना खाता खोलकर नई इबारत लिखने के प्रयास में थी जिसमें उसे काफी हद तक सफलता भी प्राप्त हुई है।
प्रधानमंत्री ने ट्वीट में कहा, ‘असम में अभूतपूर्व जीत के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता को हृदय से बधाई । यह जीत सभी मानकों पर ऐतिहासिक है। ’ असम में भाजपा की जीत के सूत्रधारों में शामिल पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि राज्य में नयी सरकार की मुख्य प्राथमिकता वृहद असमिया समुदाय के हितों को सुरक्षा प्रदान करना होगा । दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने युवा नेता एवं केंद्रीय मंत्री सर्वानन्द सोनोवाल को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया और लोगों ने उनमें विश्वास जताकर पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार माने जाने वाले असम में भाजपा के सत्तासीन होने का मार्ग प्रशस्त किया। चार राज्यों और पुडुचेरी विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात तमिलनाडु में सामने आयी है जहां अन्नाद्रमुक ने शानदार जीत हासिल की है।
हालांकि मतदान बाद के सर्वेक्षणों में उसके सत्ता से बाहर जाने की भविष्यवाणियां जोर-शोर से की गयी थीं। जयललिता की अगुवाई में अन्नाद्रमुक ने भी नया चुनावी इतिहास रच दिया। 1989 के बाद से तमिलनाडु की जनता ने किसी भी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता नहीं सौंपी थी लेकिन अब की बार यह परंपरा टूट गयी। केरल ने अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए सत्तारूढ़ कांग्रेस नीत यूडीएफ गठबंधन को बाहर का रास्ता दिखाकर वाम लोकतांत्रिक मोर्चा को मौका दिया । दूसरी तरफ पुडुचेरी में सत्तारूढ़ एआईएनआरसी को पीछे छोड़ते हुए कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया। चुनाव आयोग के अनुसार इस केंद्र शासित प्रदेश की 30 सीटों में से कांग्रेस को 15 और उसकी सहयोगी द्रमुक को दो सीटे मिली हैं। मुख्यमंत्री एन रंगासामी के लिए यह बड़ा झटका है जो चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की कोशिश कर रहे थे।
कांग्रेस को 5 राज्यों में से केवल पांडिचेरी एक मात्र राज्य है जहां सफलता मिली है। तमिलनाडु की राजनीति में बीते तीन दशकों से यह लगभग स्थापित परिपाटी रही है कि हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन होता है, लेकिन इस बार जयललिता ने इस परिपाटी को तोड़ दिया और अपने राजनीतिक गुरू एमजी रामचंद्रन के बाद राज्य की सियासत में यह कारनामा करने वाली इकलौती नेता बन गईं। पिछले कई साल से तमिलनाडु में यह राजनीतिक परिपाटी रही है कि एक बार अन्नाद्रमुक और फिर दूसरी द्रमुक की सरकार बनती है। कई चुनावी पंडित इस बार भी ऐसा ही कयास लगा रहे थे, लेकिन कभी अभिनय से राजनीति में कदम रखने वाली 68 साल की जयललिता ने अपनी सियासी महारत से इन कयासों को झूठा साबित कर दिया। साल 2011 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 203 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। इसमें अन्नाद्रमुक को 150, डीएमडीके को 29, माकपा को 10 और भाकपा को नौ सीटें मिली थीं। इस बार भी अन्नाद्रमुक ने कुछ इसी तरह की शानदार चुनावी कामयाबी हासिल की है। इससे पहले एमजीआर ने 1984 के चुनाव में लगातार तीसरी जीत दर्ज करके सरकार बनाई थी और 24 दिसंबर, 1987 को हुई मृत्यु तक मुख्यमंत्री रहे।
पश्चिम बंगाल में 34 वर्ष तक जड़ें जमाकर रखने वाले वाम मोर्चा की सरकार को सत्ता से बेदखल कर वर्ष 2011 में राज्य की मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपना दबदबा साबित किया है और वह इस चुनाव में भी वाम-कांग्रेस गठबंधन तथा भाजपा को बहुत पीछे छोड़ते हुए एक बार फिर मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होंगी। असम में भाजपा कांग्रेस को पराजित कर पूर्वोत्तर के किसी राज्य में पहली बार सत्ता पर काबिज होने को उन्मुख दिख रही है तो पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस और तमिलनाडु में सत्तासीन अन्नाद्रमुक सरकार बनाने में कामयाब दिख रही है। केरल में सत्तारूढ कांग्रेस नीत यूडीएफ गठबंधन, वाममोर्चा नीत एलडीएफ गठबंधन के हाथों पराजित होता दिख रहा है। तमिलनाडु के 32 जिलों में 234 विधानसभा सीटें हैं लेकिन मतदान केवल 232 सीटों के लिए हुआ है क्योंकि चुनाव आयोग ने मतदाताओं के बीच धन बांटे जाने की शिकायतों के बाद अरावाकुरिची और तंजावुर विधानसभा सीटों के लिए मतदान टालने का निर्णय लिया था । इन दो सीटों के लिए 23 मई को मतदान होगा। इस चुनाव में अन्नाद्रमुक ने 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। द्रमुक 180 और कांग्रेस 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
साल 2011 के विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 203 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। इसमें अन्नाद्रमुक को 150, डीएमडीके को 29, माकपा को 10 और भाकपा को नौ सीटें मिली थीं। दूसरी तरफ द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन को महल 31 सीटें ही मिली थीं। द्रमुक को 23, कांग्रेस को पांच और पीएमके को तीन सीटें मिली थीं। पश्चिम बंगाल में छह चरणों में चुनाव हुए थे जिनकी शुरूआत चार अप्रैल को हुई थी। केरल में 140 विधानसभा सीटों के लिए 16 मई को हुए विधानसभा चुनाव में 2.61 करोड़ मतदाताओं में से 71.7 प्रतिशत ने मतदान किया था।