केन्द्र की मोदी सरकार ने अपने पांच वर्षीय कार्यकाल के दो वर्ष पूर्ण कर लिए है और जिस तरह इस सरकार ने दो साल पूरे किए है उसी तरह वह पांच सालों का कार्यकाल भी आसानी से पूरा कर लेगी क्योंकि लोकसभा में उसके पास इतना विशाल बहुमत है कि कार्यकाल दो, तीन या पांच साल पूरे करना कोई मायने नहीं रखता। असल मुद्दे की बात तो यह है कि सरकार ने इन दो सालों में जनता की भलाई के लिए क्या-क्या कदम उठाए है और जिन वादों के साथ वह सत्ता में आई थी उनको पूरा करने के लिए ईमानदारी के साथ उसने कितने प्रयास किए हैं।
मोदी सरकार के गत दो वर्षों के कामकाज, नीतियों, कार्यक्रमों और कार्यशैली के आधार पर अगर हम सरकार के मूल्यांकन से इस नतीजे पर पहुंचते है कि उसने जनता की कसौटी पर खरा उतरने में सफलता पाई तो हमें यह मान लेने में भी कोई संकोच नहीं करना चाहिए कि सरकार बाकी बचे हुए तीन सालों के कार्यकाल में और भी कुछ बेहतर कर दिखाएगी। केवल यह शोर मचा देने से कि अच्छे दिन अभी तक क्यों नहीं आए, सरकार की उन उपलब्धियों को नहीं नकारा जा सकता जो इन दो सालों में अपने विरोधी दलों के असहयोगात्मक रवैये के बावजूद अर्जित की है।
गत लोकसभा चुनावों में आधा सैकड़ा सीटें जीत पाने में असफल रही कांग्रेस पार्टी की तो इन दो सालों में केवल एक ही नीति रही है कि येनकेन प्रकारेण संसद की कार्यवाही में अवरोध पैदा करके अपनी उपस्थिति से सरकार के द्वारा पेश महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित होने से रोका जाए। जीएसटी और कुछ अन्य विधेयकों पर सरकार को विपक्ष ने अपने पूर्वाग्रही रवैए के कारण मुश्किलों का सामना करने के लिए विवश करने में सफलता भी पाई है परंतु दरअसल सरकार को मुश्किल में डालकर मन ही मन खुशी का अनुभव करने वाली कांग्रेस पार्टी और वामपंथी दलों को हाल के विधानसभा चुनावों में जिस फजीहत का समाना करना पड़ा है।
उससे यह भी संदेश मिल जाता है कि विपक्ष के नकारात्मक रवैए को जनता ने नकार दिया है और आज कांग्रेस जैसी पार्टियां इतनी मायूस नजर आ रही है कि सरकार के दो सालों के कामकाज पर अंगुली उठाने का साहस उनके अंदर नहीं बचा हैं। इन विधानसभा चुनावों के नतीजों ने यह भी साबित कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ आज भी ऊंचाई को स्पर्श कर रहा है जिस ऊंचाई पर वह 2014 के लोकसभा चुनावों में था।
गत बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार पर मन ही मन प्रफुल्लित होकर अपने सुखद भविष्य की रंगीन कल्पनाओं में खो जाने वाले विरोधी दलों को अब इस हकीकत का अहसास भी हो गया होगा कि उन चुनावों में भाजपा को केवल इसलिए अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी क्योंकि जातिगत समीकरणों को जरूरत से ज्यादा महत्व प्रदान कर दिया गया। बिहार में सत्तारूढ़ बेमेलगठबंधन की सरकार को आगे किन किन मुश्किलों से गुजरना पड़ेगा इसके संकेत तो अभी से मिलने लगे है।
केन्द्र में मोदी सरकार की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर भाजपा के खेमें में हर्षोल्लास का माहौल है तो कांग्रेस और वामपंथी दलों के खेमों में मायूसी छाई हुई है और मायूसी भी इतना स्थायी रूप धारण कर सकती है कि उक्त पार्टियां 2019 के लोकसभा चुनावों तक भी इससे उबरने में सक्षम नहीं हो पाएगी। मोदी सरकार की दूसरी वर्षगांठ विरोधी दलों के लिए यह संदेश भी लेकर आई है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को चुनौती देने की सामथ्र्य उनके अन्दर समाप्त हो चुकी है। मोदी अजेय थे, अजेय है और अजेय रहेंगे।
देश में इन दो वर्षों में भाजपा का जनाधार जिस तेजी से बढ़ा है उसके पीछे निसंदेह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रिया का सबसे बड़ा हाथ है। कांग्रेस के पास कर्नाटक को छोडक़र किसी बड़े राज्य में सत्ता की बागडोर नहीं है जबकि भाजपा को अब पूर्वोंत्तर के महत्वपूर्ण राज्यों असम की जनता ने भी राज्य के विकास की जिम्मेदारी सौंप दी है। भाजपा के लिए निसंदहे ऐतिहासिक सफलता है और पं. बंगाल विधानसभा चुनावों में 7 तथा केरल विधानसभा चुनावों में एक स्थान पर मिली सफलता भी विशेष मायने रखती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सबका साथ सबका विकास’ की नीति पर चलने की जो प्रतिबंद्धता व्यक्त की है उसका एक मात्र संदेश ही यही है कि वे देश के प्रत्येक राज्य की जनता तक विकास योजनाओं का लाभ पहुंचने के लिए कृत संकल्प हैं।
केन्द्र की पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कार्यकाल में जिस तरह भयावह घोटाले हुए उसने देश की अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाई थी। केन्द्र में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के गठन के पश्चात के दो वर्षों में ऐसा कोई आर्थिक घोटाला नहीं हुआ जो केन्द्र सरकार की शर्मिंदगी का कारण बने। मेरे विचार से भ्रष्टाचार पर लगाम मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता है। कांग्रेस पार्टी को यह स्वीकार करने का नैतिक साहस दिखाना चाहिए कि वह अच्छे दिनों के आगमन का निश्चत संकेत है कि देश में भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने की इच्छाशक्ति रखने वाली सरकार केन्द्र में सत्तारूढ़ है।
जब विश्व के बड़े-बड़े और संपन्न देशों में आर्थिक मंदी के कारण ही हाहाकार मचा हुआ था तब भी भारत उसके प्रभाव से लगभग अछूता रहा। मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को संभाले रखने में सफलता प्राप्त की और इसी आर्थिक नीतियों एवं कार्यक्रमों के जरिए इतनी मजबूती प्रदान की कि दुनिया के दूसरे देश और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी अंचरज से भर गई। मेक इन इंडिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर प्रारंभ हुई ऐसी योजना है जिसने विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए न केवल प्रोत्साहित किया बल्कि उन्हें यह भरोसा भी दिलाया कि भारत में निवेश करके वे किसी भी तरह के जोखिम के बारे में निश्चिंत रह सकते हैं।
उद्योग जगत की शीर्ष संस्था एसोचैम ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर में भी संभाले रखने के लिए मोदी सरकार की सराहना करते हुए कहा है कि रेलवे, सडक़, राजमार्ग और ऊर्जा के क्षेत्रों में मोदी सरकार ने जो साहसिक कदम उठाए उससे व्यापक आर्थिक स्थिति को संभाले रखने में वह सफल हुई। एसोचैम का मानना है कि केन्द्र में दो वर्ष के अपने शुरुआती कार्यकाल में ग्र्रामीण आबादी और कृषि क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं का दृढ़ता के साथ समाना करने के लिए जो आक्रामक नीति अपनाए उसके अनुकूल परिणाम सामने आए है। एसोचैम ने मोदी सरकार के अब तक प्रदर्शन पर संतोष व्यक्त किया है।
किसी भी देश में युवाओं के असंतोष का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी की समस्या होती है और भारत में तो इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने स्टैण्ड अप योजना की घोषणा की है। इस योजना के माध्यम से युवाओं को न केवल रोजगार मिलेगा बल्कि वे स्वयं नियोक्ता भी बन सकेंगे। स्टैण्ड अप योजना की एक मुख्य विशेषता यह है कि समाज के पिछड़े वर्गों और महिलाओं को भी स्वयं के उद्योग स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। इसी तरह स्किल इंडिया के माध्यम से कुशल, अर्ध कुशल और दैनिक वेतन भोगी कर्मियों के लिए रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने की सरकार की मंशा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने इन दो वर्षों के कार्यकाल में ग्रामीण भारत को खुशहाल बनाने विशेष योजनाएं प्रारंभ की हैं।
इस बार के आम बजट में भी सरकार ने ग्रामीण आबादी के कल्याण हेतु ढेर सारी योजनाओं की घोषणा की थी जिनमें ग्रामीण महिलाओं की रोजमर्रा की दिक्कतों को दूर करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया था। इसी के अंतर्गत प्रधानमंत्री ने गत दिनों उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में उज्जवला योजना का शुभारंभ किया गया। उज्जवला योजना के अंतर्गत सरकार 2019 के अंत तक गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले पांच करोड़ ग्रामीण परिवारों को मुफ्त गैस सिलेण्डर प्रदान करेगी। इस योजना के माध्यम से सरकार यह चाहती है कि ग्रामीण महिलाओं को चूल्हे से निकलने वाले धुएं के कारण होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल सके।
सरकार ने ग्रामीण भारत की खुशहाली के लिए अनेक उल्लेखनीय योजनाएं प्रारंभ की हैं। गांवों को अंधकार से मुक्ति दिलाने के लिए प्रारंभ की गई ग्राम ज्योति योजना और प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों को होने वाले नुकसान के फलस्वरूप किसानों को निराशा से बचने के लिए प्रारंभ की गई फसल बीमा योजना ने मोदी सरकार में जनता के भरोसे को इतना मजबूत कर दिया है कि विरोधी दलों को पैरो तले की जमीन खिसकती महसूस होने लगी है।
मात्र दो वर्षों के कार्यकाल में ही सरकार ने इतनी जन कल्याणकारी योजनाओं की शुरूआत करने में सफलता पा ली है कि विरोधी दलों के पास उस पर आक्रमण करने के लिए तरकश में तीर ही नहीं बचे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सबका साथ सबका विकास की नीति पर चलने वाली मोदी सरकार अगले तीन वर्षों मे देश की तस्वीर में खुशहाली के इतने मनोहारी रंग भर देगी कि जनता को अच्छे दिनों का सुखद अहसास भी होने लगेगा। सरकार को अपने दो वर्ष पूर्ण होने के पूर्व ही बधाईयां मिलने का सिलसिला प्रारंभ हो चुका है और यह क्रम आगे भी यूं ही चलता रहेगा।
लेखक – कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं) संपर्क – krishanmohanjha@gmail.com