प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले दलितों के बारे में साहसिक बयान दिया और अब कश्मीर के बारे में! कश्मीर के बारे में उन्होंने कहा कि कश्मीरियों को वही आजादी है, जो शेष भारतीयों को है। कश्मीर के बच्चों के हाथ में पत्थर नहीं, लेपटॉप होने चाहिए।
दोनों बातें बहुत बढ़िया हैं लेकिन दोनों अधूरी हैं। पहले आजादी की बात। मैं हमेशा लिखता रहा हूं और टीवी चैनलों पर कहता भी रहा हूं कि मैं कश्मीर की आजादी का पूर्ण समर्थक हूं लेकिन अलगाव का नहीं।
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कश्मीर को भारत से अलग करने का मतलब है, उसको दस खसम की खेती बना देना। यदि जिलानी-जैसे लोग अभी कश्मीर को भारत का गुलाम कहते हैं तो मैं उनसे कहता हूं कि कश्मीर यदि भारत से अलग हो गया तो वह दसियों ताकतों का गुलाम बन जाएगा।
बड़े देश तो बड़े देश, छोटे-छोटे देश भी उस पर आंखें गड़ाए रखेंगे। कश्मीर चारों तरफ जमीन से घिरा हुआ है। वह रास्ते के लिए मोहताज़ रहेगा। उसके पास उद्योग-धंधे नहीं हैं। बेरोजगारी है। इस खूबसूरत प्रांत के मासूम लोगों की हालत मंडी में खड़े माल की तरह हो जाएगी। अंतरराष्ट्रीय जंगल के खूंखार पंछी इसे नोच खाएंगे।
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अब पत्थर और लेप-टॉप की बात! मोदी ने कहा कि कुछ कश्मीरी नेताओं ने नौजवानों के हाथ में पत्थर पकड़ा दिए। यह ठिक नहीं है। कश्मीर के आज के हालात में कश्मीर के नौजवानों को भड़कने के लिए पाकिस्तान या हुर्रियत नेताओं की जरुरत नहीं है। वे खुद भड़के हुए हैं।
सरकार के पास ऐसे लोग ही नहीं हैं, जो उन बागी बच्चों से बात कर सकें। जिसके हाथ में पत्थर है, वह पत्थर चलाएगा और जिसके हाथ में बंदूक है, वह बंदूक चलाएगा। पत्थर और बंदूक से कोई हल नहीं निकलने वाला है।
यदि आप कश्मीरी नौजवानों के हाथों में पत्थर नहीं, लेपटाप, किताब और क्रिकेट का बल्ला देखना चाहते हैं तो पहले उन्हें यह महसूस करवाइए कि वे आपके बच्चे हैं। वे गुस्साए हुए हैं लेकिन वे आपके हैं। अगर हमारे दर्जनों बच्चे मारे जाएं और अंधे हो जाएं तो क्या हम 32 दिन तक चुप बैठे रह सकते हैं? जरा सोचिए।
लेखक:- @वेदप्रताप वैदिक