अहमदाबाद : शुक्रवार (20 अप्रैल) को नरोदा पटिया दंगा केस में गुजरात हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद नरोदा पटिया में एक अजीब तरह का सन्नाटा पसरा रहा। अधिकांश लोग अपने-अपने काम पर से शाम को जल्दी वापस आ गए। इसके बाद नूरानी मस्जिद से लाउडस्पीकर पर नमाज के लिए बुलावा आया। यह वही मस्जिद है, जहां साल 2002 में गोधरा दंगों के बाद भड़के दंगे में भीड़ ने धावा बोल दिया था। नरोदा गाम के कुछ निवासियों ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद इलाके के जवाहर नगर, हुसैन नगर में जाकर मुआयना किया और हालात का जायजा लिया। यहां भड़के दंगों से जुड़े नौ केस अभी भी ट्रायल कोर्ट में लंबित हैं। बता दें कि शुक्रवार को गुजरात हाईकोर्ट ने बीजेपी नेता माया कोडनानी को नरोदा पटिया केस से बरी कर दिया जबकि बाबू बजरंगी को ताउम्र कैद की सजा सुनाई है।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित समाचार के अनुसार फैसले पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए 45 साल की शरीफाबेन शेख, जिसने दंगे में अपने 18 साल के बेटे शरीफ को खो दिया, ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, आज भी बंद से हम सहम उठते हैं। साल 2002 में भी दंगे के दिन बंद बुलाया गया था। अब जब कभी भी बंद बुलाया जाता है, तब हमलोग अपने रिश्तेदारों के यहां वाटवा चले जाते हैं। अब तो वे लोग (केस के आरोपी) कोर्ट से छूट चुके हैं, वो अब आजाद रहेंगे, ऐसे में हम अब सुरक्षित कैसे रहेंगे? शरीफाबेन दंगे की चश्मदीद गवाह हैं। उन्होंने कोर्ट में खौफनाक मंजर की गवाही भी दी थी, जब उनके बेटे को दंगाइयों ने जिंदा जला दिया था। वो कहती हैं कि उनका बेटा शरीफ तब 18 साल का था। दंगाइयों ने उनकी आंखों के सामने उसे जिंदा जला दिया था। वो कहती हैं, तब वो अपने पति से अलग तीन बच्चों के साथ नरोदा में रहती थी। इस हादसे के बाद रिलीफ कैम्प में फिर से पति के साथ रहने लगी। उनके पति 47 साल के इकबाल भाई रिक्शा चलाते हैं।
शरीफा बेन कहती हैं कि उन्हें अब खुद और अपने बच्चों समेत पूरे परिवार की चिंता हो रही है। शरीफा ने कहा, “तब तो हमने कुछ नहीं किया था, तब वे लोग आए, हमारे घरों में गुसे और मारकर चल दिए। अब तो हमने उन सबको पहचाना और कोर्ट में उनके खिलाफ गवाही दी। ऐसे में अब हमारी रक्षा कौन करेगा?” केस में दूसरी चश्मदीद इशरत जहां सैयद कहती हैं कि आठ साल में 2002 से 2010 के बीच 64 में से 32 आरोपी जब छूट गए तो और भी आरोपी छूट जाएंगे। माया कोडनानी से इसकी शुरुआत हुई है।