नई दिल्लीः भारत के असम में बसे अवैध नागरिकों को बाहर का रास्ता दिखाने वाले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को पूरा करने का काम अपने अंतिम चरण में है। सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी के प्रकाशन के लिए अंतिम तिथि 31 अगस्त निर्धारित की है। इसमें असम के नागरिकों की सूची प्रकाशित की जाएगी, जिससे यहां के सही निवासियों की पहचान की जाएगी और अवैध घुसपैठियों को उनके देश वापस भेजा जाएगा।
असम के करीब 41 लाख लोगों की नागरिकता का भविष्य इसी एनआरसी के प्रकाशन के बाद तय होगा। बता दें कि असम में अवैध तरीके से घुस आए बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ असम में करीब छह साल से जन आंदोलन चल रहा था। यह राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर इसी का नतीजा है।
इस रजिस्टर को किस तरह तैयार किया जा रहा है और लोगों की नागरिकता को किस पैमाने पर परखा जाएगा, यह जानने से पहले जरूरी है कि हम जान लें कि आखिर एनआरसी है क्या। आसान शब्दों में कहें तो यह असम में रह रहे भारतीय नागरिकों की एक सूची है, जो यह तय करती है कि कौन भारत का नागरिक नहीं है और फिर भी भारत में रह रहा है।
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में करीब चार साल से चल रही कार्रवाई 31 अगस्त को सबके सामने होगी। पिछले साल 31 जुलाई को जारी किए गए एनआरसी के ड्राफ्ट में 40.7 लाख लोगों के नाम सूची से बाहर कर दिए गए थे। इसके बाद 26 जून 2019 को एक अतिरिक्त ड्राफ्ट अपवर्जन सूची आई जिसमें करीब एक लाख और लोगों के नाम सूची से बाहर निकाले गए थे। कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से करीब 2.9 करोड़ लोगों को एनआरसी में शामिल किया गया है। ऐसे लोग जिनका नाम एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं है, उन्हें खुद को भारत का वैध नागरिक साबित करने के लिए बड़ी जंग लड़नी पड़ेगी।
एनआरसी की वर्तमान लिस्ट में शामिल होने के लिए व्यक्ति के परिजनों का नाम साल 1951 में बने पहले नागरिकता रजिस्टर में होना चाहिए या फिर 24 मार्च 1971 तक की चुनाव सूची में होना चाहिए। इसके लिए अन्य दस्तावेजों में जन्म प्रमाणपत्र, शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र, भूमि और किरायेदारी के रिकॉर्ड, नागरिकता प्रमााणपत्र, स्थायी आवास प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, एलआईसी पॉलिसी, सरकार द्वारा जारी लाइसेंस या प्रमाणपत्र, बैंक या पोस्ट ऑफिस खाता, सरकारी नौकरी का प्रमाण पत्र, शैक्षिक प्रमाण पत्र और अदालती रिकॉर्ड शामिल हैं।
एनआरसी की अंतिम सूची में जो जरूरतमंद लोग शामिल नहीं हो पाएंगे, उन्हें सरकार मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए जरूरी प्रबंध करेगी। असम के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह एवं राजनीतिक विभाग) कुमार संजय कृष्णा ने एक बयान में कहा कि एनआरसी सूची में जो लोग शामिल नहीं हो पाएंगे उन्हें तब तक किसी भी हालत में हिरासत में नहीं लिया जाएगा जब तक विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) उन्हें विदेशी नागरिक घोषित न कर दे।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि केवल एनआरसी में नाम न आने से कोई व्यक्ति विदेशी नागरिक घोषित नहीं हो जाएगा। जिनके नाम इसमें शामिल नहीं हैं, उन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल (एफटी) के सामने कागजातों के साथ पेश होना होगा। इसके लिए व्यक्ति को 120 दिन का समय दिए जाने का प्रावधान है। आवेदक के भारत का नागरिक होने या न होने का फैसला एफटी के हाथ में होगा। हालांकि, यदि आवेदक एफटी के फैसले से असंतुष्ट है तो उसके पास हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के पास जाने का भी अधिकार है।
एनआरसी का पहला ड्राफ्ट पिछले साल 30 जुलाई को प्रकाशित हुआ था। जिसमें असम के 3.29 करोड़ लोगों में से 2.9 करोड़ लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं थे। जिसपर काफी विवाद हुआ था। इसके बाद जून 2019 में प्रकाशित हुई सूची में एक लाख लोगों के नाम नहीं थे। अब 31 अगस्त को अंतिम सूची प्रकाशित होगी। उच्चतम न्यायालय एनआरसी की प्रक्रिया की निगरानी कर रही है। इसका उद्देश्य असम में अवैध अप्रवासियों की पहचान करना है। यदि 2011 की जनगणना को देखा जाए तो राज्य की कुल जनसंख्या 3.11 करोड़ से ज्यादा थी।
एनआरसी का उद्देश्य देश के वास्तविक नागरिकों को दर्ज करना और अवैध प्रवासियों की शिनाख्त करना है। असम में ऐसा पहली बार साल 1951 में पंडित नेहरू की सरकार द्वारा असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई को शांत करने के लिए किया गया था। बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए बंगाली हिंदू शरणार्थियों को असम में बसाए जाने के खिलाफ थे।
साल 1980 के दशक में वहां के कट्टर क्षेत्रीय समूहों द्वारा एनआरसी को अपडेट करने की लगातार मांग की जाती रही थी। असम आंदोलन को समाप्त करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें 1971 के बाद आने वाले लोगों को एनआरसी में शामिल न करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।
अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में साल 2010 में एनआरसी को अपडेट करने की शुरुआत असम के दो जिलों- बारपेटा और कामरूप से की। लेकिन, बारपेटा में हिंसक झड़प के बाद यह प्रक्रिया ठप हो गई। हालांकि, एनआरसी का काम एक स्वयंसेवी संगठन असम पब्लिक वर्क्स द्वारा एक याचिका दायर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से ही फिर से शुरू हो सका। वर्ष 2015 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी का काम फिर से शुरू किया।