कन्या सृष्टि सृजन श्रंखला का अंकुर होती हैं ये पृथ्वी पर प्रकृति स्वरुप मां शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे सांस लिए बगैर आत्मा नहीं रह सकती वैसे ही कन्याओं के बिना इस सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कन्या प्रकृति रूप ही हैं अतः वह सम्पूर्ण है। मार्कन्डेय पुराण के अनुसार सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा, व्यस्थापाक रूपी नौ ग्रह, चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार संचालन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
नवरात्रि में नौ कन्या का महत्व
जिस प्रकार किसी भी देवता के मूर्ति की पूजा करके हम सम्बंधित देवता की कृपा प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात भगवती की कृपा पा सकते हैं। इन कन्याओं में मां दुर्गा का वास रहता है शास्त्रानुसार कन्या के जन्म का एक संवत (वर्ष) बीतने के बाद कन्या को कुवांरी की संज्ञा दी गई है अतः दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को अ+उ+म त्रिदेव-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के समान मानी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है।
कन्या पूजन विधि
कन्याओं का पूजन करते समय पहले उनके पैर धुलें पुनः पंचोपचार विधि से पूजन करें और बाद में सुमधुर भोजन कराएं और प्रदक्षिणा करते हुए यथा शक्ति वस्त्र, फल और दक्षिणा देकर विदा करें। इस तरह नवरात्रि पर्व पर कन्या का पूजन करके भक्त मां की कृपा पा सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि “कुमारीं पूजयित्या तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्” अर्थात दुर्गापूजन से पहले कुवांरी कन्या का पूजन करने के पश्चात ही मां दुर्गा का पूजन करें। भक्तिभाव से की गई एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग, तीन की चारों पुरुषार्थ, और राज्यसम्मान, पांच की पूजा से बुद्धि-विद्या, छ वर्ष की पूजा से कार्यसिद्धि, सात की पूजा से परमपद, आठ की पूजा से अष्टलक्ष्मी और नौ कन्या की पूजा से सभी एश्वर्य की प्राप्ति होती है।
पुराण के अनुसार इनके ध्यान और मंत्र इस प्रकार हैं
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्। नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि । पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
!! कुमार्य्यै नम:, त्रिमूर्त्यै नम:, कल्याण्यै नमं:, रोहिण्यै नम:, कालिकायै नम:, चण्डिकायै नम:, शाम्भव्यै नम:, दुगायै नम:, सुभद्रायै नम: !!