गतिशील लोकतंत्र के लिए मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना जरूरी है। लोकतांत्रिक मशीनरी को ठीक से चलाने के लिए मतदाताओं की सहभागिता तेल की तरह काम करती है।इसके अलावा मतदातओं की बढ़ी हुई सहभागिता विविध जगहों के लोगों को मुख्यधारा में लाकर सामाजिक रूप से एकीकृत करती है। यह एकीकरण उम्र उदाहरण के तौर परयुवाओं का समाज से एकीकरण लिंग, श्रेणी, क्षेत्र और कई अन्य उप समूहों के बंधनों को तोड़ देता है। इसलिए चुनाव सहभागिता सामाजिक समावेश सुनिश्चित करती है। साथही ऐसी नीतियों की ओर उन्मुख करती है जो समाज के विभिन्न खंडों और विविध हितों का ध्यान रखती हैं।
भारत के संदर्भ में यह अभिकथन इस मायने में ज्यादा महत्वरखता है जहां राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों की तरफ से मतदाताओं को जानबूझकर हिस्सों में बांटना एक आम रणनीति है। कई बार पार्टी और उसके प्रत्याशी अपनेवोट बैंक का उल्लेख करते हैं। ये वोट बैंक प्रत्याशियों की तरफ से जाति, धर्म और क्षेत्र की छोटी संकुचित सोच के आधार पर बनाए जाते हैं। वर्तमान की एफपीटीपी व्यवस्थामें (झूठ और धोखे के कारण जो कि भारत में व्याप्त हैं) अगर कोई प्रत्याशी अपने क्षेत्र में किसी बेहद छोटे और अमहत्वपूर्ण समूह को अपने पक्ष में कर लेता है तो सीटहासिल करना आसान होता है। इसीलिए प्रत्याशी या राजनीतिक दल एक छोटा मतदाता वर्ग बनाने की रणनीति पर केंद्रित करते हैं या संकीर्ण सोच के आधार पर विशेष वोटबैंक पर निर्भर रहते हैं। यह कोशिश हमारे देश के लोकतंत्र को बर्बाद करने वाली है क्योंकि यह राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं को गलत तरीके से बदल देती है। उनकाध्यान बिंदु सभी के विकास के लिए नीतियां बनाने और इसे लागू कराने की जरूरत से बदल जाता है। उपचार के तौर पर वह लोग जो किसी विशेष वोट बैंक का हिस्सा नहींहैं और अगर उनकी भागीदारी बढ़ाई जाए तो अलग-अलग राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों के लिए ये लोग महत्वपूर्ण होंगे और वे संकीर्ण सोच को व्यापक करने कोमजबूर होंगे।
यह स्पष्ट है कि कई जनतंत्रों में मतदाताओं की सहभागिता लगातार गिरावट की ओर है। कई देश इस गिरावट को रोकने के लिए नए रास्ते निकाल रही हैं। इन सभी प्रयासोंका मुख्य उद्देश्य मतदान न करने की प्रवृत्ति कम करना है। यह कई तरीकों जैसे पंजीकरण करने की प्रक्रिया को कम कष्टकर और कम महंगा बनाने, मतदाताओं का श्रम घटानेजिससे सहभागिता घटती है, चुनावों की बारंबारता और जटिलता घटाने, जागरूकता अभियान चलाकर मतदान को आदत और सामाजिक नियम बनाने से किया जा रहा है। भारतमें चुनाव सुधारों के क्षेत्र में सक्रिय लोगों ने कई सुझाव दिए हैं।
उदाहरण के तौर पर चुनाव सुधार के क्षेत्र के चमकते तारे प्रोफेसर सुभाष कश्यप ने मतदान को संवैधानिक तौर पर हर नागरिक को मौलिक कर्तव्य बनाने का सुझाव दिया है।इसे मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहनों और दंडात्मक कार्रवाई की एक श्रृंखला का भी सुझावदिया है। उनके अनुसार, हर मतदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पास मतदान का प्रमाणपत्र हो। यह प्रमाणपत्र अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों जैसे गरीबी रेखा के नीचेका राशन कार्ड आदि के लिए मुख्य प्रपत्र के तौर पर काम करेगा। प्रोफेसर कश्यत खास तौर पर मतदान सहभागिता में शहरी आबादी के घटते रुझान से चिंतित हैं। इसके लिएवह सुझाव देते हैं कि पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस सिर्फ मतदान प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की दशा में ही जारी किए जाने चाहिए।
हालांकि वक्त की जरूरत परंपरागत तरीकों के साथ ही तकनीक में हुई प्रगति का निर्वाचन प्रक्रिया में प्रयोग है। इससे मतदान प्रक्रिया में समय और लागत दोनों घटेंगे। ऐसा हीएक विकल्प ई-मतदान है जिसका कई देशों में प्रयोग किया जा रहा है। यह विकल्प प्रयोग करने वाले कई देशों में मतदाताओं की सहभागिता और आम नागरिकों के उत्साह मेंकाफी अच्छे नतीजे आए हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है, हम भी मतदान सहभागिता में गिरावट के चिंताजनक मुद्दे से लड़ रहे हैं। यद्यपि भारत के चुनाव आयोग ने कई सालोंमें इस संबंध में प्रशंसनीय और गंभीर कदम उठाए हैं लेकिन परिणाम संतुष्टिजनक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, शहरी उच्च मध्य वर्ग नागरिक लगातार राजनीतिक प्रक्रिया के प्रतिउदासनीता दिखा रहे हैं। उनकी सहभागिता भी चिंता का एक विषय है। इसलिए चुनाव क्षेत्र में नए आविष्कारों की तत्काल जरूरत है जिससे आबादी के इस हिस्से में वोट नडालने की आदत को बड़े पैमाने पर घटाया जा सके।
गुजरात के पालिका चुनावों में कुछ क्षेत्रों में ई-मतदान का सहारा लेकर इस संबंध में राह दिखाई गई है। यह मॉडल विशेष तौर पर उच्च मध्यम वर्ग को लक्षित करने मेंउपयुक्त हो सकता है ताकि इनकी वोट न डालने की आदत खत्म की जा सके और इनको चुनावों में बड़े पैमाने पर भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ई-मतदान कीउपयुक्तता को तलाशने और अन्य राज्यों में इसे लागू करने या न करने पर गंभीर शोध किए जाने चाहिए। इसे शुरू करने के लिए हम सभी राज्यों के स्थानीय निकाय केचुनावों में इसकी शुरुआत कर सकते हैं। अगर परिणाम सकारात्मक आएं तो धीरे-धीरे हर तरह के चुनावों में हम इस व्यवस्था का प्रयोग करना चाहिए।
काफी जनसंख्या होने के कारण भारत में चुनाव कराना एक बड़ी करसत है। कई बार चुनाव प्रक्रिया बेहद लंबी हो जाती है। कई अवसरों पर यह आम आदमी की कल्पना से भीज्यादा जटिल हो जाती है। ई-मतदान की अवधारणा पूरी प्रक्रिया में जटिलताओं को खत्म करेगी और ज्यादा मतदाताओं की सहभागिता सुनिश्चित करेगी।
लेखक :-सत्यव्रत त्रिपाठी
(लेखक इंटरनेशनल सोसिओ पोलिटिकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन नई दिल्ली में रिसर्च फेलो है )