नई दिल्ली- आज आजाद हिंद फौज का गठन करके अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले फ्रीडम फाइटर सुभाषचंद्र बोस की 120 वीं जयंती है। बता दें कि आज भारत की स्वतंत्रता के लिए तकरीबन पूरे यूरोप में अलख जगाने वाले महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में कई कहानियां मशहूर हैं। नेताजी के जीवन और मृत्यु से जुड़े कई ऐसे राज हैं, जिनसे आज भी लोग अनजान हैं।
कई लोग तो यह भी मानते हैं कि भारत सरकार ये जानती थी कि नेताजी विमान दुर्घटना में नहीं मरे, लेकिन उन्होंने जनता से यह सच्चाई छुपाई। इस सच्चाई को छुपाने का एक बहुत बड़ा कारण यह कहा जाता था कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस महात्मा गांधी के विरोधी थे और कोई भी कांग्रेसी गांधी के विरोधी को पसंद नहीं करती थी।
नेताजी से जु़ड़े ऐसे तमाम दिलचस्प किस्से हैं। उन्हीं में से एक है नेताजी का कारों के प्रति खास लगाव। कुछ ही लोग जानते हैं कि नेताजी कारों के बेहद शौकीन थे, हालांकि दिलचस्प बात यह भी है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई कार नहीं खरीदी।
नेताजी के पौत्र चंद्र कुमार बोस ने इस बात का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि नेताजी कारों के शौकीन थे। जहां तक मुझे पता है नेताजी ने कभी कोई कार नहीं खरीदी थी। वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी गतिविधियों में इतना व्यस्त रहते थे कि उनके पास इसके लिए समय ही नहीं था कि वे अपने लिए कार खरीद सकें।
उनके बड़े भाई शरत बोस जो कारें खरीदते थे, नेताजी उन्हीं में बैठकर आया-जाया करते थे। शरत बोस को भी कारों का शौक था और उनके पास विलिज नाइट व फोर्ड समेत छह-सात कारें थीं। ऑडी वांडरर डब्ल्यू-24 उन्हीं में से एक थी, जिसमें बैठकर नेताजी एल्गिन रोड स्थित अपने घर में नजरबंदी के दौरान अंग्रेजों को चकमा देकर निकले थे। इस घटना को इतिहास में ‘द ग्रेट एस्केप’ के नाम से जाना जाता है। नेताजी के भतीजे डॉ. शिशिर बोस उस कार को चलाकर गोमो ले गए थे।
नेताजी पर शोध करने वालों का कहना है कि यूं तो नेताजी भवन में कई कारें रखी हुई थीं, लेकिन वांडरर कार छोटी और सस्ती थी और इस कार का आमतौर पर मध्यम आय वर्ग के लोग ही ग्रामीण इलाकों में इस्तेमाल किया करते थे। नेताजी भवन में रखी वांडरर कार का ज्यादा इस्तेमाल नही होता था, इसलिए जल्दी किसी का ध्यान इस पर नहीं जाता था।
विलक्षण बुद्धि के मालिक नेताजी भली-भांति जानते थे कि किसी और कार का इस्तेमाल करने पर वे आसानी से उनपर नजर रख रही ब्रिटिश पुलिस की नजर में आ सकते हैं, इसी कारण अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उन्होंने इस कार को चुना था। 18 जनवरी, 1941 को इस कार से नेताजी शिशिर के साथ गोमो रेलवे स्टेशन (तब बिहार में, अब झारखंड में) पहुंचे थे और वहां से कालका मेल पकड़कर दिल्ली गए थे।
नेताजी से जुड़ी कुछ अन्य दिलचस्प बातें :
* आजाद हिंद फौज का गठन करके अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले फ्रीडम फाइटर सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उ़डीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था।
* सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी भगत सिंह की फांसी रुकवाने का भरसक प्रयत्न किया। उन्होंने गांधी जी से कहा कि वह अंग्रेजों से किया अपना वादा तोड़ दें लेकिन वह भगत सिंह को बचाने में नाकाम रहे।
* सबसे पहले गांधीजी को राष्ट्रपिता कह कर सुभाष चंद्र बोस ने ही संबोधित किया था। और सुभाषचंद्र बोस जी को नेताजी कहने वाला पहला शख्स एडोल्फ हिटलर ही था।
* सन् 1938 में सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। अध्यक्ष पद के लिए गांधी जी ने उन्हें चुना था। गांधी जी तथा उनके सहयोगियों के व्यवहार से दुःखी होकर अन्ततः सुभाष चन्द्र बोस ने 29 अप्रैल, 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
* अपने जीवनकाल में नेताजी को कुल 11 बार कारावास की सजा काटनी पड़ी. आखिरी बार 1941 को उन्हें कलकत्ता कोर्ट में पेश होना था लेकिन नेताजी अपने घर से भागकर जर्मनी चले गए और हिटलर से मुलाकात की।
* नेताजी ने दुनिया की पहली महिला फौज का गठन किया था. सुभाषचंद्र बोस 1934 में अपना इलाज करवाने आस्ट्रिया गए थे, जहां उनकी मुलाकात एक एमिली शेंकल नाम की टाइपिस्ट महिला से हुई। नेताजी इस महिला से अपनी किताब टाइप करवाने के लिए मिले थे. इसके बाद नेताजी ने 1942 में इस महिला से शादी कर ली।