ज़रा सोचिये कि विधानसभा में बैठकर पोर्न फ़िल्म देखने में मशग़ूल रहने वाले नेता की मानसिक सोच कैसी होगी और यदि ऐसे व्यक्ति के हाथों में “बेटी बचाओ” मिशन की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाए तो बेटियां बचने की क्या गारंटी हो सकती है ?निश्चित रूप से सरकार का “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” मिशन क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।
गत पांच वर्षों से देश में “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का नारा सरकारी स्तर पर पूरे ज़ोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है। कन्याओं को माता पिता द्वारा “बोझ” समझे जाने जैसी बढ़ती प्रवृति को रोकने तथा इसके चलते कन्या भ्रूण हत्या की दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही घटनाओं की वजह से देश के कई राज्यों में लड़के व लड़कियों के बिगड़ते जा रहे अनुपात को नियंत्रित करने की ग़रज़ से सरकार द्वारा माता पिता को प्रोत्साहित करने हेतु यह योजना राष्ट्रीय स्तर पर शुरू की गयी थी।
कई राज्यों का यह दावा भी है कि “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ”योजना के लागू होने के बाद कन्याओं के जन्म का अंतर पहले से कम भी हुआ है। केंद्र की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राजग सरकार व भाजपा शासित राज्यों द्वारा “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” नारे को प्रचारित करने हेतु सैकड़ों करोड़ रूपये भी ख़र्च किये जा चुके हैं।
कई मशहूर हस्तियों व अभिनेत्रियों को इस योजना का ब्रांड अम्बेस्डर भी बनाया गया। परन्तु कन्याओं के आदर व मान सम्मान को लेकर ख़ास तौर पर भाजपा के ही कई नेताओं का रवैय्या देखकर यह सवाल पैदा होता है कि भाजपा सरकार का यह नारा क्या सिर्फ़ आम जनता को सुनाने व अमल कराने के लिए ही है? आख़िर स्वयं भाजपा नेता बेटियों को बचाने हेतु आम लोगों को प्रेरित करने के लिए स्वयं कैसा चरित्र प्रस्तुत कर रहे हैं?केवल नेता ही नहीं बल्कि पिता तुल्य समझे जाने वाले अनेक धर्मगुरु भी कन्या को केवल भोग की वस्तु समझ रहे हैं।
कुछ हस्तियां ऐसी भी हैं जिन्होंने भगवा धारण कर स्वयं को धार्मिक आवरण में भी लपेट रखा है और इसी बाने की बदौलत राजनीति में भी बुलंदी हासिल की है,परन्तु “बेटी बचाओ” को लेकर उनका भी रिकार्ड नारी का शारीरिक शोषण करने वाला ही रहा है। ऐसे में “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” के नारे को किस तरह साकार किया जा सकता है ?
उन्नाव रेप मामले में सज़ा काट रहे विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से निष्कासित कर भारतीय जनता पार्टी ने यह सन्देश देने की कोशिश तो ज़रूर की है कि पार्टी बलात्कारियों व हत्यारों के साथ नहीं खड़ी है। एक जनप्रतिनिधि व विधायक होने के बावजूद इस दरिंदे ने बलात्कार,फिर हत्या दर हत्या व हत्याओं की साज़िश का एक ऐसा कुचक्र चलाया कि संभवतः पूरे देश में इसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिल सकती।
किस तरह फ़िल्मी अंदाज़ में इस आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति ने आरोपी लड़की सहित उसके पूरे परिवार को कार दुर्घटना की आड़ में समाप्त करने की जो जुर्रत की यह पूरी दुनिया ने देखा। क्या ऐसे हत्यारे व बलात्कारी व्यक्ति के शक्तिशाली होने ख़ास तौर पर सत्ताधारी दल से जुड़े होने के बाद इस जैसे शख़्स से “बेटी बचाओ ” की उम्मीद की जा सकती है ? आज भी भाजपा के कई सांसद व विधायक ऐसे दुष्ट व राक्षसी प्रवृति के व्यक्ति का महिमांडन व उसकी पैरवी करते दिखाई देते हैं।
इन दिनों इस से भी कहीं बुलंद राजनैतिक क़द रखने वाले पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री एवं साधू वेशधारी चिन्मयानंद का नाम एक बार फिर चर्चा में है।ग़ौरतलब है कि जौनपुर से सांसद रह चुके स्वामी चिन्मयानंद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रह चुके हैं। इन “महानुभाव” पर अनेक बार कई महिलाएं बलात्कार व शारीरिक शोषण का आरोप लगा चुकी हैं।
इनमें चिन्मयानंद की ही एक कथित शिष्या से लेकर शाहजहांपुर स्थित उन्हीं के एक विद्यालय की प्रधानाचार्य तक शामिल है। और अब ताज़ा तरीन मामला क़ानून की एक छात्रा से जुड़ा सामने आया है जिसका आरोप है की चिन्मयानंद ने लगभग एक वर्ष तक डरा धमका कर उसके साथ बलात्कार किया। इस छात्रा ने एक वीडीओ जारी कर यह आरोप चिन्मयानंद पर लगाए थे -उसने कहा “मैं एसएस लॉ कॉलेज में पढ़ती हूं। एक बहुत बड़ा नेता बहुत लड़कियों की ज़िंदिगी बर्बाद कर चुका है।
मुझे और मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देता है। मैं इस टाइम कैसे रह रही हूं, मुझे ही पता है। मोदी जी प्लीज़… योगी जी प्लीज़ मेरी हेल्प करिए आप। वह संन्यासी, पुलिस और डीएम सबको अपनी जेब में रखता है। धमकी देता है कि कोई मेरा कुछ नहीं कर सकता। मेरे पास उसके ख़िलाफ़ सारे सबूत हैं। आपसे अनुरोध है कि मुझे इंसाफ़ दिलाएं।”
परन्तु आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जिस पार्टी ने सत्ता में आने के लिये ‘बेटियों के सम्मान में, भाजपा मैदान में’ जैसा लोकप्रिय प्रतीत होने वाला नारा लगवाया था उसी पार्टी ने सत्ता में आने के बाद बेटियों का सम्मान करने के बजाए बलात्कारियों व महिलाओं का शोषण करने वाले भगवा वेश धारी व शक्तिशाल लोगों के मान सम्मान की फ़िक्र करनी शुरू कर दी।
गत वर्ष उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसी पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के विरुद्ध चल रहे बलात्कार के धारा 376 और 506 अर्थात डराने धमकाने के तहत दर्ज मुक़दमा वापस लिए जाने का आदेश ज़िला प्रशासन को जारी किया था। जबकि दूसरी ओर कथित बलात्कार पीड़िता ने राष्ट्रपति को इस सम्बन्ध में एक पत्र भेजकर सरकार के इस क़दम पर आपत्ति दर्ज कराते हुए चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ वारंट जारी करने की मांग की थी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ स्वयं भी चिन्मयानंद के आश्रम में आयोजित मुमुक्ष युवा महोत्सव में भाग ले चुके हैं। इसके अलावा भी स्वामी चिन्मयानंद से मिलने उनके आश्रम पर अनेक आला अधिकारियों के आने जाने का सिलसिला बना रहता है। ऐसे में इस प्रकार के “विशिष्ट ” लोगों से बेटी की हिफ़ाज़त की उम्मीद कैसे की जाए और इनके विरुद्ध कार्रवाई करने का साहस भी कौन करे ? यही वजह है कि इस बार क़ानून की छात्रा के आरोपों के मामले में माननीय न्यायालय द्वारा स्वयं संज्ञान लेना पड़ा।
इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जिनसे यह पता चलता है कि ऐसे दुश्चरित्र लोगों की सरकार द्वारा समय समय पर हौसला अफ़ज़ाई ही की गयी है। गत माह कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के मंत्रिमंडल में तीन उप मुख्यमंत्री शामिल किये गए। इन तीन में से एक लक्ष्मण सावदी नाम के वही बीजेपी नेता हैं जिन्हें विधान सभा में पोर्न फ़िल्म देखते हुए पाया गया था। येदियुरप्पा के नए मंत्रिमंडल में उन्हें परिवाहन विभाग भी दिया गया है। इनकी नियुक्ति का सत्ता व विपक्ष दोनों ही ओर विरोध किया गया था। लक्ष्मण सावदी कर्नाटक विधान सभा का चुनाव भी हार गए थे। उसके बावजूद उन्हें परिवाहन विभाग के मंत्री व उपमुख्मंत्री पद से नवाज़ा गया।
ज़रा सोचिये कि विधानसभा में बैठकर पोर्न फ़िल्म देखने में मशग़ूल रहने वाले नेता की मानसिक सोच कैसी होगी और यदि ऐसे व्यक्ति के हाथों में “बेटी बचाओ” मिशन की ज़िम्मेदारी सौंप दी जाए तो बेटियां बचने की क्या गारंटी हो सकती है ?निश्चित रूप से सरकार का “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” मिशन क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।
परन्तु इसको अमली जामा पहनाने के लिए यह सबसे ज़रूरी है कि सत्ता से जुड़े,शक्तिशाली व प्रतिष्ठित एवं रुतबा धारी जो लोग बेटियों को बेटियां समझने के बजाए उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाने का एक ज़रिया मात्र समझते हैं उन्हें आम गुनहगारों से भी अधिक व त्वरित सज़ा दिलाए जाने की व्यवस्था की जाए। और यदि सत्ता प्रतिष्ठान की तरफ़ से ऐसे किसी आरोपी को उसके रूतबे को देखते हुए सम्मानित या उपकृत किया जा रहा है तो ऐसा करने वालों के विरुद्ध भी कार्रवाई की जानी चाहिए।अन्यथा “बेटी बचाओ” का नारा बेमानी तो साबित ही होगा साथ साथ यह सवाल ज़रूर उठता रहेगा की आख़िर बेटियों की आबरू और इस्मत को किस किस से और कैसे बचाया जाए ?
निर्मल रानी