कानपुर- दादरी कांड के बाद से साहित्यकारों के पुरस्कार वापसी के मसले पर मशहूर शायर राहत इंदौरी ने कहा है कि अब यह मामला साहित्यिक नहीं बल्कि सियासी हो गया है। जहां सियासत आ जाती है, वहां से शराफत अपने कदम पीछे उठा लेती है। वह शनिवार को आईआईटी के ‘अंतराग्नि’ कार्यक्रम में हिस्सा लेने शहर आए थे और देर रात परेड के एक होटल में हुई बातचीत में उन्होंने यह बात कही।
उन्होंने कहा कि शुरू में सरकार के लिए पुरस्कार वापसी ठीक उसी तरह थी जैसे भगत सिंह ने एसेंबली में बम फेंक दिए हों। लेकिन अब इसमें सियासत होने लगी है। अब पुरस्कार वापसी साहित्यिक नहीं सियासी मुद्दा बन चुका है। शायर मुनव्वर राना के साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने के सवाल पर राहत इंदौरी ने कहा कि उन्हें लगता है कि मुनव्वर ने जज्बात में आकर अवार्ड वापस किया।
उसके बाद आए उनके बयानों से लगा कि शायद यह कदम उन्होंने जल्दबाजी में आकर उठाया था। मुनव्वर राना का यह कदम संजीदगी से विचार करने के बाद उठाया गया नहीं लगता है। इंदौरी का कहना है कि साहित्य वह हथियार है, जिसकी मारक क्षमता बहुत दूर तक है। साहित्यकारों को साहित्यिक अंदाज में विरोध जताना चाहिए था।
वहीं प्रख्यात बांसुरी वादक पद्मविभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने लेखकों और कलाकारों की ओर से लौटाए जा रहे पुरस्कारों को गलत परंपरा बताया।उन्होंने कहा कि पुरस्कार लौटाने का औचित्य समझ से परे है।
लेखकों और कलाकारों की ओर से विरोध के और भी तरीके अपनाए जा सकते हैं। पुरस्कार लौटाने से समाज में गलत संदेश जा रहा है, जिससे हाल-फिलहाल एक औचित्यहीन बहस छिड़ गई हे। सम्मान लौटाने के पीछे कन्नड़ लेखक कलबुर्गी एवं दादरी में एखलाख की हत्या जैसे तर्क देना असंगत है।
एक कार्यक्रम में शामिल होने रविवार को संगमनगरी पहुंचे पद्मविभूषण पंडित चौरसिया ने कहा, उक्त घटना को ऐसा रंग देना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि जीवन और मृत्यु विधि का विधान है, उसे ऐसी किसी पहल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। जहां तक मेरे पुरस्कार लौटाने की बात है, तो यह संभव नहीं है।
मुझे जो भी पुरस्कार मिले हैं, वह मेरे लिए राष्ट्र और समाज से मिली अमूल्य धरोहर है, उसे लौटाकर मैं समाज और राष्ट्र का अपमान नहीं कर सकता। यह परंपरा अनुचित और आहत करने वाली है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, इलाहाबाद आना तो मेरे लिए सुखद और सौभाग्य है, यह तो मेरा घर है।