नई दिल्ली: अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पाने वाले अभिजीत बनर्जी ने कहा है कि राष्ट्रवाद गरीबी जैसे मुद्दों से ध्यान खींचता है, खासकर भारत जैसे देश में। उनका कहना है कि किसी प्रकार की न्यूनतम आय गारंटी योजना देश के लिए बेहद आवश्यक है। उन्होंने गरीबी के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की है।
वह कहते हैं कि एक ऐसा स्थान होना बहुत जरूरी है, जिसमें राष्ट्रवाद क्या है और आर्थिक प्रगति क्या है, इनके मूल विचारों पर असहमति हो सके। इंडिया टुडे को दिए साक्षात्कार में उन्होंने ये बातें कही हैं। गरीबी पर अपने विचार साझा करने के अलावा, बनर्जी ने यह भी बताया कि कैसे जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) में उन्हें भारतीय राजनीति की बेहतर समझ मिली है।
नोबेल पुरस्कार विजेता ने अपनी सहयोगी और पत्नी एस्थर डुफ्लो के साथ अपने संबंधों और भारतीय व्यंजनों के लिए अपने प्यार पर भी खुल कर बात की। जब अभिजीत से पूछा गया उन्होंने खुद को नोबेल मिलने की बात सुनकर कैसा लग रहा था, तो उन्होंने कहा कि वह खुद पर गर्व महसूस कर रहे थे। क्योंकि जो चीज उनके साथ हुई वह कुछ भाग्यशाली लोगों के साथ ही होती है। वह कहते हैं कि उन्हें भारतीय होने पर बहुत गर्व महसूस होता है और वह खुद को भी भारतीय आंखों से ही देखते हैं। उनका कहना है कि जब भी वो अपने देश की बात करते हैं, तो वो भारत ही है।
न्यूनतम आय गारंटी योजना पर अभिजीत का कहना है कि, उन्हें लगता है कि कुछ न्यूनतम आय, होनी चाहिए। फिर चाहे वह किसी योजना के तहत हो या ना हो। इसपर विचार करना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों का एक समूह है जो अचानक भारी जोखिम का सामना कर रहे हैं। उनके जीवन में सब कुछ गायब हो जाता है क्योंकि बहुत अधिक बारिश होती है या बहुत कम बारिश होती है या अचानक एक पुल ढह जाता है और उसकी वजह से इमारतों का निर्माण रुक जाता है।
इसलिए बहुत सारे लोग अपनी नौकरी खो देते हैं। उस जोखिम को किसी भी तरह कम करने की जरूरत है। हम लोगों को भारी मात्रा में जोखिम के अधीन कर रहे हैं, खासकर आज की नाजुक अर्थव्यवस्था में। जोखिम वाले लोगों के लिए सुरक्षा जैसा कुछ होना महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि गरीबी के लिए कुछ लोगों को आलसी कह दिया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है, उनकी नौकरी चली जाती है, अधिक बारिश से उन्हें नुकसान पहुंचता है, ये लोग बहुत मेहनत करते हैं। वह कहते हैं कि उनका मानना है, अच्छी तरह से काम करने वाली अर्थव्यवस्था होने और सबसे बुरे लोगों से उदार होने के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। कर की उच्च दर अधिक विघटन पैदा करती है। उच्च कर की दर से लोग अपने पैसे को छुपाना चाहते हैं। अभिजीत ने कहा कि उन्होंने हाल की मंदी और उसकी प्रतिक्रिया के बारे में बताया था। उन्हें लगता है कि सरकार ने अमीरों पर कर बढ़ाने का सही तरीका अपनाया है और फिर मूल रूप से इसे वापस काट दिया गया क्योंकि यह अर्थव्यवस्था को बचाने वाला है। लेकिन उन्हें नहीं लगता कि यह अर्थव्यवस्था को बचाने वाला है। एक स्थिर अर्थव्यवस्था की ओर पहला कदम होगा अमीरों पर कर लगाना।